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Luo Zhaohui calls strengthening of India and China's civilizational relations will benefit humanity - भारत और चीन सभ्यतागत संबंधों के मजबूत होने से मानवता को लाभ होगा: चीनी राजदूत - Sabguru News
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भारत और चीन सभ्यतागत संबंधों के मजबूत होने से मानवता को लाभ होगा: चीनी राजदूत

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भारत और चीन सभ्यतागत संबंधों के मजबूत होने से मानवता को लाभ होगा: चीनी राजदूत
Luo Zhaohui calls strengthening of India and China's civilizational relations will benefit humanity
Luo Zhaohui calls strengthening of India and China's civilizational relations will benefit humanity
Luo Zhaohui calls strengthening of India and China’s civilizational relations will benefit humanity

नयी दिल्ली । चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने भारत एवं चीन के बीच सभ्यतागत संबंधों को मज़बूत बनाने पर बल देते हुए मंगलवार को कहा कि दोनों देशों की सबसे पुरानी जीवंत सभ्यता के बीच आध्यात्मिक एवं भौतिक संपर्क के उतने ही पुराने बीज मौजूद हैं और उनके बीच संवाद एवं आदान प्रदान बढ़ने से समूची मानव जाति को लाभ होगा।

चीन के दूतावास में यहां ‘भारत-चीन संबंध: सभ्यता के दृष्टिकोण’ विषय पर एक परिचर्चा में भाग लेते हुए लुओ झाअोहुई ने ये विचार व्यक्त किये। परिचर्चा में भारत सांस्कृतिक संबंध परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो. लोकेश चंद्र, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व अध्यक्ष सुधीन्द्र कुलकर्णी, वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी एवं मनीष चंद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीन विभाग के अध्यक्ष प्रो. बी आर दीपक तथा राष्ट्रीय संग्रहालय के डॉ. बिनय सहाय ने भाग लिया। चीनी दूतावास में मिनिस्टर एवं डिप्टी चीफ ऑफ मिशन जी बिजियान, सीनियर काउंसलर झू शिआओहोंग, प्रेस काउंसलर जी रोंग और प्रेस निदेशक यिलियांग सुन भी उपस्थित थे।

चीनी राजदूत ने कहा कि सभ्यताओं के दो पहलू होते हैं – आध्यात्मिक एवं भौतिक। उन्होंने कहा कि सभ्यताओं विशेष रूप से भारतीय सभ्यता के प्रति दिलचस्पी एवं प्रेम ही उन्हें चीन की विदेश सेवा में लेकर आया है। गंगा की सभ्यता से लेकर सिंधु घाटी की हड़प्पा मोहनजोदड़ो की सभ्यता से उन्हें आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत एवं चीन के बीच 3000 साल से अधिक सभ्यतागत आदान-प्रदान बहुत हुआ और बहुत सारी साझा भी बहुत चीज़ें हुईं। उन्होंने कहा कि हमें आगे बढ़ने के लिए इतिहास से सीख लेनी चाहिए। इसी विचार के कारण वुहान शिखर बैठक का आयोजन किया गया।

लुओ झाओहुई ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा द्वितीय एशियाई सभ्यता संवाद के आयोजन को इसी विचार का परिणाम बताया। उन्होंने वैश्वीकरण एवं व्यापार को भी इसी सभ्यतागत संपर्क का अंग बताया और कहा कि समकालीन संबंधों में एेसे उतार चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि अाज वैश्वीकरण एवं व्यापारिक उतार चढ़ाव को सभ्यताओं का संघर्ष कहा जा रहा है। उन्होंने इससे निपटने के लिए भारत एवं चीन के बीच सभ्यतागत संबंधों के इतिहास को उजागर करने पर बल दिया तथा दोनों देशों के बीच लंबित मसलों को सहयोग के इतिहास में बहुत तुच्छ एवं क्षुद्र करार दिया।

भारतीय ललित कला के शोधार्थी रहे चीनी राजदूत भारत में दो वर्ष अाठ माह के कार्यकाल के बाद विदेश उप मंत्री के रूप में बीजिंग लौट रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों देशों के बीच सभ्यतागत संपर्कों को बढ़ावा देने के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों के मजबूत होने का समूची मानव जाति को लाभ होगा।

उन्होंने सिक्किम में नाथू ला दर्रे से होकर हाेने वाले व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा उदासीनता बरते जाने पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने व्यापार को 30 वस्तुओं से आगे अन्य वस्तुओं को भी शामिल करने, सीमावर्ती क्षेत्र में संचार नेटवर्क दुरुस्त करने की भी अपेक्षा जतायी। उन्होंने कैलास मानसरोवर के यात्रियों के लिए नाथू ला से पार चीन के तिब्बत क्षेत्र में यादोंग में शानदार इंतजाम करने का उदाहरण दिया।

प्रो. लोकेश चंद्र ने भारत एवं चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के रूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बाज़ार या हाट की अवधारणा भारत से चीन में पहुंची थी। उन्होंने सम्राट समुद्र गुप्त के शासनकाल को भारत एवं चीन के बीच सहयोग का स्वर्णकाल बताया।

कुलकर्णी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल सितंबर में भारत एवं चीन के बीच दूसरी अनौपचारिक शिखर बैठक वुहान की भावना को और मज़बूत करेगी। उन्होंने भारत पाकिस्तान एवं चीन के बीच सभ्यतागत संपर्क को अधिक मजबूत करने में चीन से प्रभावी भूमिका निभाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि चीन की बेल्ट एंड रोड पहल केवल व्यापार या परिवहन संपर्क नहीं है बल्कि इसे सांस्कृतिक एवं सभ्यताओं के संपर्क के रूप में देखा जाना चाहिए।

उन्होंने अमेरिकी प्रशासन से चीन के साथ व्यापारिक युद्ध में अमेरिकी बयानों को नस्लीय करार दिया। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के यूनेस्को में दिये गये भाषण को उद्धृत करते हुए कहा कि सभी सभ्यताएं बराबर हैं और सभी में खूबियां एवं खामियां हैं। जरूरत है कि सभी एक दूसरे से संपर्क करके खामियों को दूर करना एवं खूबियाें को ग्रहण करना सीखें। कुलकर्णी ने दाेनों देशों के बीच मतभेदों को छोटे मसले बताया।

प्रो. दीपक ने कहा कि यह बात कल्पना से परे है कि सभ्यताओं की चर्चा में भारत एवं चीन की सभ्यताओं की चर्चा न हो तथा यह भी सोच से परे है कि भारत एवं चीन की सभ्यताओं में कोई संवाद नहीं हो। उन्होंने धर्म के एक दूसरे पर प्रभाव एवं आत्मसात करने की क्षमता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चीन ने बौद्ध धर्म को अपना स्वरूप देकर अपनाया। इसी प्रकार से चीन के ताओवाद एवं कन्फ्यूशियस धर्म ने भी बाहर असर डाला। उन्होंने चीन में भारत के ग्रंथों के अनुवाद की समृद्ध परंपरा का भी उल्लेख किया और कहा कि करीब 2500 बुद्ध सूत्रों का भारतीय ताड़पत्रों से चीनी भाषा में अनुवाद किया गया था। प्रो. दीपक ने दोनों देशों के बीच प्राचीन सभ्यतागत संवाद को बहाल किये जाने पर जोर दिया।

जोशी ने कहा कि अमेरिका द्वारा चीन के साथ व्यापार युद्ध विशेष रूप से चीनी कंपनी हुआवे पर प्रतिबंध लगाये जाने का कारण अमेरिका की वह चिंता है कि पहली बार प्रौद्योगिकी का संतुलन पश्चिम से पूर्व की ओर झुक रहा है। उन्होंने 5 जी तकनीक के विकास का उदाहरण भी दिया। उन्हाेंने चीन एवं भारत के रिश्तों में औपनिवेशिक काल को बहुत बड़ा विध्वंसकारी समय करार दिया और कहा कि दोनों देशों के बीच 4000 किलोमीटर लंबी सीमा के मसले का समाधान नहीं हो पाना हमारी विफलता है जबकि इसका समाधान कोई कठिन नहीं है।

डॉ. सहाय ने तिब्बत में सांस्कृतिक संबंधों की गहरी पड़ताल करने और राष्ट्रीय संग्रहालय में उनके चिह्नों को प्रदर्शित करने की इच्छा प्रकट की जबकि श्री मनीष चंद ने दोनों देशों की सांस्कृतिक एवं भाषायी समानताओं की पहचान करने और योग से लेकर बॉलीवुड तक के क्षेत्रों में सहयोग को तेजी से बढ़ाने पर जोर दिया।