नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में राजनीतिक घमासान के बीच कांग्रेस ने असंतुष्ट नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निकाल दिया है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को सिंधिया को उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते तुरंत पार्टी से निष्कासित किए जाने को मंजूरी दी। इससे पहले सिंधिया ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए सोनिया गांधी को पत्र भेजा था।
सिंधिया ने आज सुबह पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उसके बाद दोनों नरेंद्र मोदी से मिलने प्रधानमंत्री आवास गए। इसके बाद कांग्रेस से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।
सिंधिया ने सुबह पहले गृह मंत्री अमित शाह के घर जाकर उनसे मिले और फिर शाह एवं सिंधिया पीएम मोदी से मुलाकात करने प्रधानमंत्री निवास गए। करीब एक घंटे तक चली बैठक के बाद सिंधिया और शाह एक साथ आए। इसके कुछ समय बाद सिंधिया ने ट्वीटर पर कांग्रेेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए अपनेे इस्तीफे को पोस्ट कर दिया। इस्तीफे पर सोमवार की तारीख अंकित है। इससे संकेत मिलता है कि उन्होंने शाह एवं मोदी से मिलने से पूर्व ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
सिंधिया ने सोनिया गांधी को भेजे पत्र में लिखा कि मैं पिछले 18 साल से पार्टी के प्राथमिक सदस्य था और अब समय आ गया है कि मैं पार्टी से अलग अपनी राह लूं। मैं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे रहा हूं। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य एवं लक्ष्य देश एवं अपने प्रदेश के लोगों की सेवा करना है। उन्हें महसूस हो रहा है कि वह कांग्रेस के भीतर यह काम आगे नहीं बढ़ा पाएंगे।
इस्तीफे में विगत लोकसभा चुनाव में गुना शिवपुरी सीट पर उनकी हार का दर्द भी छलक आया जिसके लिए वह कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की साजिश को जिम्मेदार मानते है और यह भी संकेत दिया था कि इससे आहत हो कर वह पिछले साल से ही कांग्रेस से बाहर जाने की सोच रहे थे।
सिंधिया के इस्तीफे का मध्यप्रदेश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ना तय है। ग्वालियर-चंबल और उत्तरी मालवा क्षेत्र में सिंधिया के प्रभाव के कारण पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक सफलता मिली थी। माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश में करीब 4 से 6 मंत्री और 15 से अधिक विधायक सिंधिया के समर्थन में इस्तीफा दे सकते हैं। उनके जैसे बड़े एवं व्यक्तिगत जनाधार वाला नेता कांग्रेस और भाजपा किसी भी दल में नहीं है। उनके कांग्रेस छोड़ने से भविष्य में मध्यप्रदेश के राजनीतिक पटल पर कांग्रेस के अस्तित्व के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में सम्मान नहीं मिलने के कारण नाराज चल रहे सिंधिया के समर्थक बीस से अधिक विधायक बेंगलूरु में हैं। बीते तीन चार दिनों से कांग्रेस के विधायकों के बगावत करने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात की थी। लेकिन वह सिंधिया को मनाने में विफल रहे।