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शिवराज को बड़ी राहत, डंपर कांड की पुनरीक्षण याचिका खारिज - Sabguru News
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शिवराज को बड़ी राहत, डंपर कांड की पुनरीक्षण याचिका खारिज

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शिवराज को बड़ी राहत, डंपर कांड की पुनरीक्षण याचिका खारिज
Madhya Pradesh HC dismisses review petition on 'Dumper scam'
Madhya Pradesh HC dismisses review petition on 'Dumper scam'
Madhya Pradesh HC dismisses review petition on ‘Dumper scam’

जबलपुर। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नी साधना सिंह के खिलाफ बहुचर्चित डम्पर घोटाले में कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका जबलपुर उच्च न्यायालय ने बुधवार को खारिज कर दी। इसे शिवराज के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। न्यायाधीश एसके सेठ और न्यायमूर्ति एके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने याचिका को सुनवाई अयोग्य बताया और उसे खारिज कर दिया।

न्यायालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि दायर याचिका में उठाए गए सवाल सुनवाई योग्य नहीं हैं, लिहाजा इस याचिका को खारिज किया जाता है।

मिश्रा की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि शिवराज सिंह चौहान 29 नवम्बर, 2005 को प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। चार अप्रेल 2006 को चुनाव लड़ने के दौरान सिंह ने नामांकन भरा था, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी साधना सिंह के बैंक खाते में दो लाख 30 हजार रुपए बताए थे।

याचिका में कहा गया था कि उक्त राशि से दो करोड़ रुपए मूल्य के चार डम्पर नहीं खरीदे जा सकते। चारों डंपर साधना सिंह के नाम पर दर्ज थे, और उसमें पता जेपी नगर प्लांट रीवा का दर्ज था।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि इस मामले का खुलासा होने पर रीवा के आरटीओ कार्यालय के दस्तावेजों में हेराफेरी कर पूरा रिकार्ड नष्ट करा दिया गया। जेपी एसोसिएट्स को पहुंचाए जा रहे लाभों को चुनौती देकर नवम्बर 2007 में रमेश साहू की ओर से एक परिवाद दायर किया गया था।

परिवाद की सुनवाई करते हुए भोपाल जिला न्यायालय ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व अन्य के खिलाफ लोकायुक्त जांच के निर्देश जारी किए थे। लोकायुक्त ने साक्ष्य के आभाव में मुख्यमंत्री सहित अन्य के खिलाफ समापन रपट न्यायालय में पेश कर दी थी। जिसके आधार पर निचली अदालत ने परिवाद खारिज कर दिया था।

डम्पर घोटाले के संबंध में मिश्रा ने नए साक्ष्यों व तथ्यों के आधार पर एक परिवाद दायर किया था, जिसे निचली अदालत ने 28 फरवरी, 2017 को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था। निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि बिना सक्षम प्राधिकारी से अभियोजन की अनुमति के परिवाद प्रचलनशील नहीं हो सकता।

दायर याचिका में कहा गया था कि न्यायालय में पेश किए गए दस्तावेज के आधार पर अपराध घटित होने के संबंध में निर्णय लेना चाहिए था। पूर्व कार्यकाल के दौरान डम्पर घोटाला हुआ है, वर्तमान कार्यकाल में नहीं। इसलिए अभियोजन की अनुमति आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा, बुधवार को जारी आदेश में निचली अदालत के फैसले को विधि सम्मत ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी।