भोपाल। मध्यप्रदेश में शनिवार को कुछ स्थानों पर रात्रि में आकाश में तेज चमकदार ‘जलते हुए पिंडनुमा’ वस्तुओं के आकाश में देखे जाने पर लोग आश्चर्य में पड़ गए और अनेक लोगों ने इसके वीडियो भी बना लिए, जो सोशल मीडिया में वायरल हो गए।
वीडियो में दिखाई दे रहा है कि राकेटनुमा कुछ वस्तु आसमान में तेजी से जा रही है और यह सड़क पर चल रहे लोगों के लिए कौतुहल का विषय बन गया। इस संबंध में खंडवा और बड़वानी जिलों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इस बारे में अलग अलग कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि प्रशासन की ओर से तत्काल कोई आधिकारिक जानकारी नहीं आई है।
सोशल मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार इस तरह के नजारे रात्रि में लगभग आठ बजे के आसपास भोपाल, खंडवा, धार, खरगोन और कुछ अन्य जिलों में देखे गए। हालांकि यह पिंड आसमान में कहां खो गए, इसके बारे में भी स्थिति साफ नहीं हो पाई है।
खंडवा में रात्रि में लगभग आठ बजे कथित तौर पर उल्का वर्षा का नजारा देखने काे मिला। पहले लोगों ने समझा कि गुड़ी पड़वा पर कोई आतिशबाजी हुई है। लेकिन 30 सैकंड से ज्यादा देर तक यह नजारा आतिशबाजी से भिन्न नजर आया। इस दौरान इस घटना के अनेक लोगों ने वीडियो भी बना लिए। कुछ लोग इसे उल्का वर्षा (मेटेओर शॉवर) बताने लगे, लेकिन इस संबंध में स्पष्ट जानकारी तत्काल नहीं मिल सकी।
राज्य के पश्चिमी हिस्से में स्थित बड़वानी जिले से प्राप्त जानकारी के अनुसार बड़वानी और आसपास के जिलों में आज रात जलते हुए पिंड के कई टुकड़े आकाश में दिखायी देने की सूचनाएं हैं। लगभग आधा दर्जन जिलों के नागरिकों ने रात्रि में लगभग सात बजकर 45 मिनट पर जलते हुए पिंड के टुकड़े देखे।
कोई इसे रॉकेट का हिस्सा, खगोलीय घटना या उल्का पिंड मानकर सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर रहे हैं। इस तरह की सूचनाएं छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र राज्य से भी आ रही हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि देर रात तक नहीं हो सकी।
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के एक खगोल वैज्ञानिक राम श्रीवास्तव ने एक टीवी न्यूज चैनल से चर्चा में कहा कि धरती के चारों ओर प्राकृतिक और कृत्रिम पिंड घूम रहे हैं। प्राकृतिक पिंड को उल्का कहते हैं और मानव निर्मित उपग्रह, उन्हें छोड़ने वाले रॉकेट व उनके खोल हैं। उन्होंने कहा कि इनकी संख्या 5000 से अधिक है। और एक तरह से यह मृत उपग्रह हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है।
श्रीवास्तव ने बताया कि अंतरिक्ष का कचरा धरती के वायुमंडल के चारों ओर घूम रहा है। अक्सर परिधि कम होते होते धरती के गुरुत्वाकर्षण के कारण यह पृथ्वी से टकरा जाते हैं। और टकराने के पूर्व वायुमंडल के घर्षण के चलते जल जाते हैं।
उन्होंने आज रात्रि की घटना के वीडियो के बारे में संभावना जताते हुए कहा कि इसकी गति के मुताबिक यह उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर तेजी से आया और उसके बाद स्थिर गति से नीचे की ओर बढ़ता गया। इसके पहले दो हिस्से हुए और उसके बाद यह 4 से 5 टुकड़ों में विभाजित हो गया।
श्रीवास्तव का कहना है कि यदि यह उल्का पिंड होता तो अंत तक आग के गोले की तरह ही बना रहता। विकसित देशों में इस तरह के पिंड का नियमित अध्ययन और मापन होता है। उनका कहना है कि प्रतिदिन 15 से 50 की संख्या में उल्का पिंड धरती पर गिरते हैं, लेकिन उनका आकार काफी छोटा रहता है।