सबगुरु न्यूज। मानव सभ्यता जब शनैः शनैः ज्ञान की ओर बढने लगी तो उसे भान होने लगा कि मानव व जीवों के शरीर में एक प्राण वायु रूपी ऊर्जा होती है। यही ऊर्जा हृदय को संचालित करती है। यदि ऊर्जा इस शरीर से बाहर निकल जाए तो यह हृदय काम करना बंद कर देता है और जीव के शरीर को मृत घोषित कर दिया जाता है।
इसी प्राण वायु रूपी ऊर्जा को “आत्मा” के नाम से जाना गया और यही आत्मा जब तक शरीर में रहती है तो इससे शरीर का मंगल होता रहता है तथा शरीर की शक्ति का अधिपति बनकर मन इस शरीर को फिर अपने ही अनुसार चलाता है। शरीर में उपजने वाली हर व्याधियां शरीर को रोगी बना कर शनैः शनैः शरीर को आत्मा की मंगल ऊर्जा से वंचित करता है और शरीर का अमंगल हो जाता है। ऐसे में शरीर की शक्ति का संचालन करने वाले मन का कही कोई अता पता नहीं रहता भले ही इस मन ने मनोबल से जीवन भर इस शरीर से बहुत कुछ करवा लिया।
आत्म बल रूपी शिव जो शरीर का मंगल करता रहता है वह कभी निर्बल नहीं होता वरन मन ही अपनी मनोवृत्ति के कारण मनोबल को मजबूत और कमजोर करता रहता है साथ ही शरीर को आनंद व पीडा देकर उसका अमंगल करता है और जीवो के शरीर को आत्मा रूपी शिव नहीं रहने देता है और उसको शव बना देता है।
प्राण वायु रूपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहा जाता है, उसके शरीर से निकल जाने के साथ ही विज्ञान उस जीव की मृत्यु घोषित कर उसे अलविदा कह देता है, लेकिन आध्यात्मिक चिंतन और धर्म दर्शन इस आत्मा को अजर अमर अविनाशी मानकर उस विषय पर चिंतन मनन कर पुनर्जन्म, मोक्ष और आत्मा के अस्तित्व सिद्धांतों को स्थापित करता रहता है।
शरीर को दीर्घायु देने और जीवन तथा मृत्यु के जन्म बन्धन को काटने के लिए आध्यात्मिक चिंतन फिर ब्रह्मांड में जगत की आत्मा शिव के रूद्र रूप को महाकाल मान उससे प्रार्थना करते हैं कि हे रूद्र तुम जगत को मृत्यु देकर इस जगत को खत्म कर सकते हो। इस कारण हम आपकी शरण में हैं और आप कल्याणकर्ता शिव बनकर हमारी आत्मा की प्राण वायु रूपी ऊर्जा को मत निकालो। ।दीर्घायु होने पर अगर इसे आप निकालते हैं तो हे शिव हमारे जन्म मृत्यु के आवागमन के मार्ग को खत्म कर दो और हमें अमरता प्रदान करो।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, शरीर में बैठी प्राण वायु रूपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहा जाता है वही शिव है जो हृदय की घडकन में बैठकर जप तप कर रहे हैं और मन जिसकी उत्पति शरीर में प्रवेश करी आत्मा के कारण शरीर में हो गई है वह शक्ति एक महामाया है और यह शरीर एक मायावी संसार है।
जहां शिव है वहां शक्ति निश्चित रूप से होगी ही। जब शक्ति रूपी महामाया इस मायावी शरीर को जीवन भर खेल खिलाती है और एक दिन इस शरीर की माया खत्म कर उसे शव बनाकर छोड़ जाती है। अपने आत्मा रूपी शिव को शरीर से बाहर निकाल उसमें विलीन हो जाती है।
इसलिए हे मानव, तू इस मन को ना तो हठीला बना और ना ही लचीला बना, वरन मन की शक्ति को संतुलित रख ताकि शरीर में बैठी आत्मा इस शरीर का मंगल करती रहे अन्यथा मन रूपी शक्ति के उधेडबुन में यह मायावी शरीर ढह जाएगा।
महा शिवरात्रि की महाबेला पर हम आस्था के शिव को मनाते हैं और जल, आक, धतूरा चढाकर प्रार्थना करते हैं कि हे शिव तू हमारे लिए और इस जगत के लिए कल्याणकारी रहना और हर मौसमी बीमारियों में उत्पन्न होने वाले कीटाणुओं तथा रोगों से रक्षा करना ताकि हमारा यह शरीर स्वस्थ रह सके और मन रूपी शक्ति हमें सदा के लिए छोड़कर हमें शव ना बना जाए तथा प्राण वायु रूपी ऊर्जा जो शिव रूपी आत्मा है उसे अपने साथ ना ले जाए।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर