नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सरकार गठन से संबंधित दस्तावेज तलब किए हैं तथा केन्द्र सरकार को नोटिस भेजकर कल सुबह साढ़े दस बजे तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है। सोमवार साढ़े दस बजे इस मामले में फिर सुनवाई होगी।
रविवार को अवकाश के दिन भी सुप्रीमकोर्ट के दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश एनवी रमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय विशेष पीठ महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार गठन के खिलाफ शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस की रिट याचिका पर सुनवाई की।
न्यायमूर्ति रमन की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल रहे। न्यायमूर्ति भूषण कर्नाटक में 2018 के राजनीतिक संकट के दौरान फ्लोर टेस्ट का आदेश देने वाली तीन-सदस्यीय पीठ के सदस्य थे।
न्यायमूर्ति एनवी रमन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की विशेष पीठ ने रविवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हो रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश दिया कि वह उसे कल सुबह साढ़े 10 बजे तक राज्यपाल की ओर से भाजपा को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करने संबंधी पत्र तथा मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के पास विधायकों के समर्थन का पत्र उपलब्ध कराएं। न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले में कल सुबह साढे 10 बजे फिर से सुनवाई करेगा और अपना फैसला सुनाएगा।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति रमन ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि इस याचिका में यह मुद्दा उठाया गया कि क्या 23 नवम्बर को सरकार गठन का राज्यपाल का निर्णय क्या असंवैधानिक है? इस मामले के निपटारे के लिए हम तुषार मेहता से आग्रह करते हैं कि वह दोनों पत्र हमें कल सुबह साढे 10 बजे तक उपलब्ध कराएं, पहला- राज्यपाल की ओर से सरकार गठन को लेकर दिया गया पत्र और फड़नवीस के पास बहुमत का पत्र।
शिवसेना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्यपाल द्वारा फडणवीस को अचानक मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाए जाने को घोर असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि उनके पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा है तो फडणवीस सरकार को आज ही बहुमत सिद्ध करने के लिए फ्लोर टेस्ट के लिए कहा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम (शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस) आज ही बहुमत साबित करने के लिए तैयार हैं।
कुछ भाजपा विधायकों एवं दो निर्दलीय विधायकों की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस दलील का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने याचिका में राज्यपाल को निर्देशित किए जाने की मांग की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता राजनीतिक दल हैं और उन्हें अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
रोहतगी ने कहा कि जब याचिकाकर्ताओं के पास कोई संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है तो आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी आ गई थी कि रविवार को भी अदालती कार्यवाही चलाने की नौबत आ गई।
इस पर न्यायमूर्ति रमन ने कहा कि यह पीठ मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर गठित की गई है और वह सुनवाई के लिए निर्देश से बंधे हैं। उन्होंने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि यहां अर्जी का दायरा व्यापक है और कोई भी कुछ भी अनुरोध के साथ पहुंच सकता है।
राकांपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम को लोकतंत्र की हत्या करार देते हुए न्यायालय को झारखंड, उत्तराखंड और कर्नाटक में राजनीतिक संकट का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्यपाल को बहुमत से दूर किसी भी दल को सरकार बुलाने से पहले उससे समर्थन पत्र की प्रति मांगनी चाहिए थी।
इससे पहले सिब्बल ने कहा था कि राज्य में भाजपा-शिवसेना का चुनाव पूर्व गठबंधन फेल हो गया था उसके बाद शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस के साथ चुनाव बाद गठबंधन किया था और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार गठन का दावा पेश किया जाना था, लेकिन रात भर में सब कुछ पलटते हुए राज्यपाल ने सुबह सुबह फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिला दी।
सिब्बल ने कहा कि किसी को कुछ नहीं पता कि किस आधार पर शपथ दिलाई गई, या राज्यपाल किसके दिशानिर्देश पर काम कर रहे थे। सुबह पांच बजकर 47 मिनट पर राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया, जबकि इसके लिए मंत्रिमंडल की कोई बैठक भी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि अगर (भाजपा को) उन्हें लगता है कि उनके पास बहुमत है तो आज ही फ्लोर टेस्ट के लिए कहा जाना चाहिए।
न्यायालय ने पूछा कि भाजपा की तरफ से कब बताया गया कि उनके पास पर्याप्त समर्थन है। इस पर सिब्बल ने कहा कि किसी को कुछ नहीं पता, कुछ नहीं बताया गया। राज्यपाल ने कब फडणवीस को निमंत्रित किया, यह भी नहीं पता।
न्यायालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा गया कि वह किसकी ओर से पेश हो रहे हैं, उन्होंने कहा कि मैं सॉलिसिटर जनरल के रूप में पेश हो रहा हूं। मुझे नहीं पता कि मुझे किसके लिए पेश होना है।
सिंघवी ने कहा कि अजित पवार को उप मख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, लेकिन शाम को पार्टी ने उन्हें विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है। उन्होंने यह कहते हुए तत्काल फ्लोर टेस्ट की मांग की कि 1998 में उत्तर प्रदेश और 2018 में कर्नाटक मामले में शीर्ष अदालत ने तत्काल फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था।
इस पर रोहतगी ने कहा कि उनके मुवक्किल को कम से दो तीन दिन का समय दिया जाए। उधर, मेहता ने भी सरकार से निर्देश लेने के लिए परसों तक का समय मांगा लेकिन न्यायालय ने कहा कि वह कल सुबह साढे दस बजे तक राज्यपाल की ओर से सरकार गठन के निमंत्रण का पत्र और फडणवीस के पास बहुमत का पत्र उपलब्ध कराएं। तब वह इस मामले मेंं कल अंतिम आदेश जारी करेगा।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शनिवार सुबह शपथ दिलाए जाने के बाद शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस तीनों ने देर शाम संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत में याचिका दायर की और इसमें केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार, फडणवीस तथा राकांपा नेता अजित पवार को प्रतिवादी बनाया है। याचिकाकर्ताओं ने मामले की त्वरित सुनवाई का न्यायालय से अनुरोध किया था।