महाराष्ट्र में एनसीपी के नेता अजीत पवार सत्ता के लालच में अपने चाचा शरद पवार को धोखा देकर भाजपा के पाले में जा मिले हैं। शरद पवार ही अजीत पवार को राजनीति में लेकर आए थे। अजीत को राजनीति में आगे बढ़ाने में अपने चाचा शरद पवार का योगदान रहा है। शरद पवार अजीत पर पूरा विश्वास करते थे और उनको एनसीपी विधायक दल का नेता भी बना रखा था। शनिवार को अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार के साथ विश्वासघात कर सत्ता की खातिर भाजपा के साथ जा मिले, जिसकी शरद पवार को भनक तक नहीं लगी थी।
शरद पवार की पुत्री और सांसद सुप्रिया सुले ने अजीत के इस निर्णय को परिवार में बिखराव बताया है। वहीं एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने साफ किया है कि वह अजीत पवार के साथ नहीं हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब राजनीति और सत्ता की खातिर परिवारों में बिखराव हुआ हो। इससे पहले राजनीतिक घरानों के परिवारों में टूट पड़ चुकी है।
वर्ष 1989 में हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल के परिवार में हुई थी टूट
1989 में हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल ने वीपी सिंह की सरकार में उप प्रधानमंत्री की शपथ ली। उप प्रधानमंत्री बनने से पहले देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। देवीलाल के डिप्टी पीएम बनते हुए उनका परिवार टूट गया। देवीलाल ने डिप्टी पीएम बनने के बाद राज्य की कमान ओम प्रकाश चौटाला के हाथ में दे दी। देवीलाल के दूसरे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में शामिल थे और जब 1987 में देवीलाल सीएम बने थे तो रणजीत चौटाला को सरकार में कृषि मंत्री का पद मिला। ओम प्रकाश चौटाला के सीएम बनने से नाराज होकर रणजीत चौटाला ने देवीलाल की पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। रणजीत चौटाला 2019 के विधानसभा चुनाव 32 साल बाद विधायक चुने गए हैं। रणजीत चौटाला फिलहाल खट्टर सरकार में कैबिनेट मंत्री है।
अभय और अजय चौटाला भी अलग हो गए
चौटाला परिवार में टूट की कहानी इतनी ही नहीं है। पिछले साल ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटे अभय और अजय भी अलग हो गए। अजय चौटाला ने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी बनाई है, जबकि अभय चौटाला के पास इंडियन नेशनल लोकदल की कमान है। अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला की मदद से हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनी है। दुष्यंत चौटाला को 2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद खट्टर सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया है।
बाल ठाकरे से अलग होकर राज ठाकरे ने बनाई थी अपनी पार्टी
सत्ता और राजनीति के लिए शिवसेना में बाल ठाकरे का परिवार करीब 15 साल पहले ही टूट चुका है। बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे हमेशा अपने चाचा के कदमों पर चला करते थे। माना जाता था कि बाल ठाकरे राज को ही पार्टी की कमान देंगे। लेकिन 2004 में बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद राज ठाकरे ने 2005 में खुद को शिवसेना से अलग कर लिया। 2006 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाई। हालांकि राज ठाकरे राजनीति में ज्यादा कामयाब नहीं हो पाए हैं। राज ठाकरे की पार्टी का 2014 और 2019 में 1-1 विधायक ही चुनाव जीत पाया है।
चंद्रबाबू नायडू ने एनटी रामाराव को हटाकर सीएम पद पर किया था कब्जा
1982 में अभिनेता से नेता बने एनटी रामा राव आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। 1985 में व दोबारा से सीएम बने। 1989 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 1994 में उनकी सत्ता में वापसी हुई। एनटी राव की बेटी की शादी चंद्रबाबू नायडू के साथ हुई थी। 1994 में नायडू ने एनटी राव को पार्टी अध्यक्ष के पद से हटा दिया और 1995 में पहली बार सीएम पद की शपथ ली। एनटी राव की पत्नी लक्ष्मी ने इस बात से नाराज होकर अलग पार्टी बनाई थी। 2014 में लक्ष्मी जगमोहन रेड्डी की वीआरएससी में शामिल हो गई हैं।
पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के परिवार में भी पड़ी थी दरार
2010 में पंजाब में बादल परिवार में टूट देखने को मिली थी। 2010 में प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल ने शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर पीपीपी बनाई थी। मनप्रीत बादल की प्रकाश सिंह बादल से नाराजगी 2007 में शुरू हुई। 2007 में अकाली दल की सरकार बनने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने अपने बेटे सुखबीर बादल को डिप्टी सीएम बनाया, जबकि मनप्रीत बादल को वित्त मंत्रालय दिया गया। लेकिन मनप्रीत बादल प्रकाश सिंह बादल द्वारा सुखबीर को अपना वारिस घोषित करने से नाराज हुए।
मनप्रीत बादल की पार्टी पीपीपी 2012 के चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाई। लेकिन 2014 में मनप्रीत बादल कांग्रेस में शामिल हो गए। 2017 में मनप्रीत बादल अमरिंदर सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने में कामयाब रहे। वहीं शिरोमणि अकाली दल की कमान अब पूरी तरह से सुखबीर बादल के हाथ में है।
तमिलनाडु में एम करुणानिधी के बेटों में पड़ी थी फूट
1969 से 2011 के बीच एम करुणानिधी पांच बार तमिलनाडु के सीएम बने। तमिलनाडु की राजनीतिक विरासत एक तरह से एमके स्टालिन के हाथ में ही थी, लेकिन स्टालिन के हाथ में कमान आना उनके भाई अलागिरी को मंजूर नहीं था।अलागिरी की बगावत को देखते हुए करुणानिधी ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था और पार्टी की कमान पूरी तरह से स्टालिन के हाथ में आ गई।
अलागिरी ने फूट डालने की वजह कहीं ना कहीं कनिमोझी भी रही। केंद्र की यूपीए 2 में कनिमोझी एक तरह से डीएमके की अगुवाई कर रही थीं, जबकि राज्य में करुणानिधी के बाद ज्यादातर फैसले स्टालिन ही लेते थे।
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के परिवार में भी हो चुका है घमासान
तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यंत्री रहे मुलायम सिंह यादव के परिवार में भी टूट देखने को मिली थी। 2016 के अंत में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के कुछ फैसलों पर नाराज होते हुए अपने भाई शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। अखिलेश को पिता का यह फैसला मंजूर नहीं था। अखिलेश उस समय यूपी के मुख्यमंत्री थे इसलिए पार्टी के ज्यादातर विधायकों का समर्थन उन्हें हासिल था।
अखिलेश यादव पार्टी मीटिंग बुलाकर 2016 में ही पार्टी के नए अध्यक्ष बन गए। मुलायम परिवार की लड़ाई चुनाव आयोग में भी पहुंची। चुनाव आयोग में बाजी अखिलेश के हाथ लगी और समाजवादी पार्टी का चिन्ह उन्हें मिल गया। वहीं शिवपाल यादव ने 2019 में अलग पार्टी बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता नहीं मिली। हालांकि मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से 2019 में सांसद बने।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार