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विष पीने वाले महादेव थे... - Sabguru News
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विष पीने वाले महादेव थे…

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विष पीने वाले महादेव थे…

सबगुरु न्यूज। उसे अंहकार था अपने वैभव पर, अपने सौंदर्य पर, अपने यौवन पर। क्योंकि दुनिया के चौदह रत्न उसके पास थे। इन रत्नों में जगत की लक्ष्मी, अष्ट सिद्धी व नव निधि के साथ अमृत की वर्षा करने वाला बादशाह चन्द्रमा व स्वास्थ और आरोग्य देने वाले धनवंतरि इनकी जगत में शोभा ही निराली थी।

अपने रूप, यौवन और धन के बल पर उसने एक ऐसे व्यक्ति पर प्रहार कर दिया जो शक्ल सूरत से बुजुर्ग व दाड़ी मूछों वाला। शमशान व पहाडों की गुफाओं व कंदराओं में रहने वाला। ऐसे व्यक्ति को भौतिक सुखों से गरीब और दीन हीन मलिन देख कर उस की पत्नी को बोला कि हे सुंदरी ये बुजुर्ग व दीन भिखारी की तरह रहने वाला तुझे क्या सुख देगा। तुम उसे छोड़ कर मेरे पास आ जाओ मैं तूझे अपनी रानी बना कर दुनिया के सभी वैभव से लाद दूंगा।

यह सुनकर उस बुजुर्ग से दिखने वाले व्यक्ति की पत्नी क्रोधित होकर अपने पति के पास गई और अपनी पीड़ा बताई। यह सुनकर उसका पति भी क्रोधित हो गया, अपने हाथ में त्रिशूल उठा कर उस महासागर की ओर फेंक दिया जिससे चौदह रत्न थे। उस त्रिशूल ने सागर के जल में एक भूकंप ला दिया ओर पृथ्वी भी घबरा गईं।

इस घटना से जगत का वास्तु संतुलन बिगड़ गया और सभी तरफ भारी हाहाकार मच गया। देव दानव सभी उस बुजुर्ग से प्रार्थना करने लग गए। बुजुर्ग भी अड गया कि इसे अहंकार है अपने रूप यौवन व धन तथा चौदह रत्न पर। उस सब को में मंथन करके बाहर निकाल कर ही रहूंगा। ओर उनसे ऐसा ही किया। समुद्र मंथन से सागर के चौदह रत्न बाहर निकाल दिए, सदा सदा के लिए उस महासागर का जल खारा बना दिया। उस मंथन से निकलने वाले जहर को वह पी गया और इस दुनिया का जगदीश महादेव शंकर भोले नाथ नीलकंठ कहलाया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव व्यक्ति की हैसियत का भान उसके रंग रूप सौंदर्य धन दौलत और शक्ति व यौवन से नहीं आंका जाता वरन उसके विचारों से, उसके उसके व्यवहार से ही आंका जाता है। आग की शक्ति का भान तो उसकी जलाने वालीं लपटों से मालूम होता है, जब वह सब कुछ जला कर राख कर देती है।

इसलिए हे मानव तू अपने पर अंहकार का लिबास मत ओढ और अपने रंग, रूप, सौंदर्य, धन, दौलत और यौवन के नशे को त्याग, क्योकि यह सब तेरे ही पतन का कारण बनकर तुझे कभी भी गहरी सोच का बुजुर्ग नहीं बनने देगी ना ही इस संसार के विष रूपी अहंकार को पीने देगी। तेरे चोदह रत्न जो सागर की तरह तेरी आत्मा में विराजे हैं जिससे तू जिन्दा कहलाता है उसको भी निकाल कर तूझे जिन्दा मुर्दा घोषित कर देगी।

सौजन्य : भंवरलाल