अजमेर। भारतीय संस्कृति में देव केवल एक प्रतिमा नहीं बल्कि विशिष्ठ आदर्शो का समूह भी है। शिव स्वयं भी कई विशिष्ठ आदर्शों का समुच्चय है। श्वि का अर्थ है ‘शुभ।’ शंकर का अर्थ होता है, कल्याण करने वाले। निश्चित रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को शिव के अनुरूप ही बनना पड़ेगा। ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत’ अर्थात शिव बनकर ही शिव की पूजा करें।
यह विचार प्रधानाचार्य भूपेन्द्र उबाना ने पुष्कर मार्ग स्थित आदर्श विद्या निकेतन में महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में आयोजित भजन सभा में व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने शिव की भांति सरल और अहंकार मुक्त होकर जनकल्याण के लिए हलाहल पीने को भी तैयार रहने वालों को वास्तविक शिव भक्त और शिव के नाम पर नए नए नशों को पालने वालो को समाज के लिए अभिशाप बताया।
उन्होंने शिव के स्वरूप और शिव परिवार का उद्धरण देते हुए कहा कि शिव के सिर पर गंगा और चंद्रमा, विचारों की पवित्रता और शीतलता का प्रतीक है, तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है जिसके खुलते ही काम वासना का अंत होता है तथा शिव परिवार में चूहा, सांप, मोर, सांड, शेर जैसे विरोधी स्वभाव के जीव भी परस्पर स्नेह से साथ रहते हैं, उसी प्रकार शिव भक्त भी विपरीत विचार के लोगों मे भी सामंजस्य स्थापित करता है।
इस भजन सभा में विद्यालय के हरेंद्र, पीयूष, उज्ज्वल, प्रिया, डिम्पल, विष्णु आदि कई विद्यार्थियों ने सुंदर भजनों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की संचालक एवं विद्यालय की सह-शैक्षिक गतिविधि प्रभारी आरती खंगारोत ने सभी को शिवरात्रि पर्व की बधाई देते हुए इस शिवरात्रि सभी के भीतर शिवत्व के जागरण की कामना की।