भारत वर्ष 2019-20 को महात्मा गांधी के जन्म की सार्द्धशती (150वां वर्ष ) के रूप में मनाने का अवसर आया है। गांधी विचार का व्यवहार यदि देखा जा सकता है तो संघ के स्वयंसेवकों की कार्यशैली एवं जीवनशैली में। इस विषय में संघ और गांधी का संबंध के बारे में जानने की जिज्ञासा सभी को होगी।
संघ के कार्यालयों में दैनिक गाए जाने वाले एकात्मता स्तोत्रम के 29वें श्लोक में गांधी शब्द को समाविष्ट किया गया है, जो संघ का गांधी के प्रति सम्मान का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
गांधी जी की हरिजन यात्रा को डॉ. हेडगवार ने सामाजिक समरसता वाला राष्ट्रीय कार्यक्रम बताया था।
गांधी के वास्तविक अनुयायी के रूप में संघ के कार्यकर्ताओं को माना जा सकता है जो कि सदैव सादगी, स्वच्छता, रामराज्य, ग्राम स्वराज, मतांतरण का विरोध, गौ-रक्षण, मातृ भाषा का समर्थन एवं सर्व पंथसमभाव, सामाजिक समरसता जैसे आदर्शो के प्रति सम्मान का भाव मात्र ही नहीं अपितु संघ से ज़ुड़े लोगों की जीवन में स्पष्ट रूप से परिलक्षित भी होता है।
25 सितंबर 1934 में वर्धा में शीत शिविर में महात्मा गांधी की संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार से भेंट हुई जिसमें उन्होंने संघ की शिविर में व्यवस्थाओं को समझा एवं अस्पृश्यता निर्मलून में प्राप्त सफलता की सराहना की।
महात्मा गांधी संघ के शिविर में खिचड़ी भोग के समय सभी लोगों के एकसाथ भोजन करने पर प्रभावित हुए थे।
दिल्ली की हरिजन बस्ती में ठहरे गांधी जी की 1947 के दंगों में संघ के स्वयंसेवकों ने गांधी जी के निवास स्थान पर कई सप्ताह तक रात्रि रक्षक बनकर सुरक्षा दी।
बाद में 16 सितंबर 1947 में गांधी जी ने शाखा के स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया। संघ के अनुशासन की प्रशंसा की।
एक समय आया जब संघ की छवि को गांधी दर्शन के विपक्षी के रूप में स्थापित किया गया, कारण स्पष्ट है नाथूराम गोडसे के द्वारा गांधी की हत्या और गोडसे का संघ से संबंध का मिथ्या दुष्प्रचार। उक्त प्रसंग ने संघ की छवि को धूमिल ही नहीं वरन् कालगत रूप से समाज संगठन के उद्देश्यपूर्ति में पीछे छोड़ दिया।
संघ ने उच्च आदर्शों एवं मूल्यों के निरंतर पालन और सामयिक प्रयासों द्वारा अपनी स्वच्छ छवि को निस्संदेह प्राप्त कर ही लिया: न्यायालय से दो बार निर्दोष सिद्धि और एक स्वतंत्र आयोग – आत्माचरण आयोग द्वारा संघ को आरोपों से मुक्ति प्रदान की गई। संघ से प्रतिबन्ध हटा जो सत्य की ऐतिहासिक सनातन विजय थी।
गांधी वांग्मय में भी गुरु गोलवलकर जी एवं गांधी जी की बातचीत का दो बार उल्लेख किया गया है।
26 जनवरी 1963 में संघ को पंडित नेहरू ने परेड में सम्मिलित किया जो गांधी परिवार एवं देश के प्रधानमंत्री की गांधी में आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण है।