पुष्कर। धार्मिक मान्यताओं में भी शक्ति अर्जन का सम्बन्ध बदलती ऋतुओं में उत्पन्न होने वाली गुप्त सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जोडा गया है जहां व्यक्ति मनन ओर चिंतन के साथ इन ऋतुओं की सकारात्मक ऊर्जा के संचय व अर्जन से लाभ उठाएं तथा नकारात्मक ऊर्जा से बचें रहें।
ज्योतिषाचार्य भंवरलाल ने बताया कि इन मान्यताओं में दो नवरात्रा प्रकट रूप से आमजन मनाते हैं और दो गुप्त रूप से साधक योगी और तपस्वी जन मनाते हैं। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक तथा आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक प्रकट नवरात्रा आमजन मनाते हुए इन ब्रह्मांडीय शक्ति का अर्जन करते हैं।
माघ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक तथा आषाढ़ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्रा साधक व योगीजन उस चिन्तन औरमनन में लगे रहते हैं और उसके आधार पर वे शक्ति के अर्जन से जन कल्याण करते रहें।
माघ मास के गुप्त नवरात्रा पर जोगणिया धाम पुष्कर में सातू बहना धिराणिया की पूजा अर्चना होगी तथा बंसत पंचमी पर मां के बंसत अर्पण में किया जाएगा। षष्ठी के दिन मां के मेहंदी रस्म व रातीजगा महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा। माई सातम को माता जी के सवा मण चावल लापसी का भोग लगाकर श्रद्धालुओं और गरीबों मे वितरित की जाएगी। दिन को भजन कीर्तन प्रस्तुत किए जाएंगे।
माई सातम को माता के चावल, लापसी, मेहंदी, मोली, रोली, काजल, लाख की चूडी, पीली ओढनी अर्पण की जाएगी और घर परिवार में सुख शांति उन्नति और खुशाली तथा बच्चों और पति के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए महिलाओं द्वारा मां के अर्पण किया जाता है। ऐसी मान्यताएं चली आ रही है।