नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक दिव्यांग व्यक्ति के व्यावसायिक हौसले को सलाम करते हुए कहा कि कुछ लोग कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानते हैं।
मोदी ने रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के हमीरपुर गांव में रहने वाले सलमान जन्म से ही दिव्यांग हैं। उनके पैर उन्हें साथ नहीं देते हैं। इस कठिनाई के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और खुद ही अपना काम शुरू करने का फैसला किया। साथ ही यह भी निश्चय किया कि, अब वो अपने जैसे दिव्यांग साथियों की मदद भी करेंगे।
सलमान ने अपने ही गांव में चप्पल और डिटरजेंट बनाने का काम शुरू कर दिया। देखते-ही-देखते, उनके साथ 30 दिव्यांग साथी जुड़ गए। सलमान को खुद चलने में दिक्कत थी लेकिन उन्होंने दूसरों का चलना आसान करने वाली चप्पल बनाने का फैसला किया। खास बात ये है कि सलमान ने, साथी दिव्यांगजनों को खुद ही प्रशिक्षण दिया। अब ये सब मिलकर उत्पादन और विपणन करते हैं।
अपनी मेहनत से इन लोगों ने, ना केवल अपने लिए रोजगार सुनिश्चित किया बल्कि अपनी कम्पनी को भी लाभ में पहुंचा दिया। अब ये लोग मिलकर, दिनभर में, डेढ़-सौ जोड़ी चप्पलें तैयार कर लेते हैं। इतना ही नहीं, सलमान ने इस साल 100 और दिव्यांगों को रोजगार देने का संकल्प भी लिया है।
उन्होंने कहा कि ऐसी ही संकल्प शक्ति, गुजरात के, कच्छ इलाके में, अजरक गांव के लोगों ने भी दिखाई है। साल 2001 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद सभी लोग गांव छोड़ रहे थे, तभी, इस्माइल खत्री नाम के शख्स ने, गांव में ही रहकर, ‘अजरक प्रिंट’ की अपनी पारंपरिक कला को सहेजने का फैसला लिया।
देखते-ही-देखते प्रकृति के रंगों से बनी ‘अजरक कला’ हर किसी को लुभाने लगी और ये पूरा गांव, हस्तशिल्प की अपनी पारंपरिक विधा से जुड़ गया। गांव वालों ने, न केवल सैकड़ों वर्ष पुरानी अपनी इस कला को सहेजा, बल्कि उसे, आधुनिक फैशन के साथ भी जोड़ दिया। अब बड़े-बड़े डिजाइनर, बड़े-बड़े संस्थान, ‘अजरक प्रिंट’ का इस्तेमाल करने लगे हैं।
बेटियां पुरानी बंदिशें तोड़ रही
नरेन्द्र मोदी ने माउंट अकोनकागुआ फतह करने के लिए 12 साल की काम्या कार्तिकेयन की उपलब्धियों पर गर्व करते हुए रविवार को कहा कि बेटियां पुरानी बंदिशों को तोड़कर नई ऊंचाइयां प्राप्त कर रही है।
मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा कि हमारी बेटियों की उद्यमशीलता, उनका साहस, हर किसी के लिए गर्व की बात है। अपने आस पास हमें अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं। जिनसे पता चलता है कि बेटियाँ किस तरह पुरानी बंदिशों को तोड़ रही हैं और नई ऊंचाई छू रही हैं।
काम्या ने सिर्फ बारह साल की उम्र में ही माउंट अकोनकागुआ को फ़तह करने का कारनामा कर दिखाया है। ये दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है, जो लगभग 7000 मीटर ऊंची है। हर भारतीय को ये बात छू जाएगी कि जब इस महीने की शुरुआत में काम्या ने चोटी को फ़तह किया और सबसे पहले, वहां, हमारा तिरंगा फहराया। देश को गौरवान्वित करने वाली काम्या, एक नए मिशन पर है, जिसका नाम है ‘मिशन साहस’। इसके तहत वो सभी महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फ़तह करने में जुटी है।