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‘मन की बात’ में मुकुटधारी बैगन की कहानी - Sabguru News
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‘मन की बात’ में मुकुटधारी बैगन की कहानी

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‘मन की बात’ में मुकुटधारी बैगन की कहानी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारों को जोड़े रखने के लिए कहानियों की महत्ता को रेखांकित करते हुए रविवार को इस परंपरा को आगे बढ़ाने के काम में जुटे लोगों की सराहना की और देश के लोगों से अपनी इस समृद्ध परंपरा से जुड़े रहने का आग्रह किया।

मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहानी कहने की परंपरा को जारी रखने के लिए काम करने वाले कुछ लोगों से बात की और यह जानने का प्रयास किया कि उन्हें इस काम की प्रेरणा कैसे मिली और किस तरह से वे अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। इस दौरान उन्होंने बेंगलूरु की स्टोरी टेलिंग सोसाइटी की अर्पणा अथरेया तथा उनके सहयोगियों से बात की और उनसे कहानी भी सुनाने का आग्रह किया। उन्होंने जो कहानी सुनाई वह इस प्रकार है।

चलिए चलिए सुनते हैं कहानी एक राजा की। राजा का नाम था कृष्ण देव राय और राज्य का नाम था विजयनगर। अब राजा हमारे थे तो बड़े गुणवान। अगर उनमें कोई खोट बताना ही था तो वह था अधिक प्रेम अपने मंत्री तेनाली रामा की ओर और दूसरा भोजन की ओर। राजा जी हर दिन दोपहर के भोजन के लिए बड़े आस से बैठते थे – कि आज कुछ अच्छा बना होगा और हर दिन उनके बावर्ची उन्हें वही बेजान सब्जियां खिलाते थे – तुरई, लौकी, कददू, टिंडा उफ़। ऐसे ही एक दिन राजा ने खाते-खाते गुस्से में थाली फ़ेंक दी और अपने बावर्ची को आदेश दिया या तो कल कोई दूसरी स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाना या फिर कल मैं तुम्हें सूली पे चढ़ा दूंगा।

बावर्ची बेचारा डर गया। अब नई सब्ज़ी के लिए वह कहां जाए। बावर्ची भागा -भागा चला सीधे तेनाली रामा के पास और उसे पूरी कहानी सुनाई। सुनकर तेनाली रामा ने बावर्ची को उपाय बताया। अगले दिन राजा दोपहर के भोजन के लिए आए और बावर्ची को आवाज़ दी। आज कुछ नया स्वादिष्ट बना है या मैं सूली तैयार कर दूं।

डरे हुए बावर्ची ने झटपट थाली सजाई और राजा के लिए गरमा-गर्म खाना परोसा। थाली में नई सब्जी थी। राजा उत्साहित हुए और थोड़ी -सी सब्ज़ी चखी। ऊंह वाह! क्या सब्जी थी! न तुरई की तरह फीकी थी न कददू की तरह मीठी थी। बावर्ची ने जो भी मसाला भून के, कूट के डाला था सब अच्छी तरह से चढ़ी थी।

उंगलिया चाटते हुए संतुष्ट राजा ने बावर्ची को बुलाया और पूछा कि यह कौन -सी सब्ज़ी हैं। इसका नाम क्या हैं। जैसे सिखाया गया था वैसे ही बावर्ची ने उत्तर दिया। महाराज ये मुकुटधारी बैंगन है। प्रभु ठीक आप ही की तरह यह भी सब्जियों का राजा है और इसीलिए बाकी सब्ज़ियों ने बैंगन को मुकुट पहनाया।

राजा खुश हुए और घोषित किया कि आज से हम यही मुकुटधारी बैंगन खाएंगे। सिर्फ हम ही नहीं हमारे राज्य में भी सिर्फ बैंगन ही बनेगा और कोई सब्ज़ी नहीं बनेगी। राजा और प्रजा दोनों खुश थे। यानी पहले-पहले तो सब खुश थे कि उन्हें नई सब्जी मिली है लेकिन जैसे ही दिन बढ़ते गए सुर थोड़ा कम होता गया। एक घर में बैंगन भरता तो दूसरे के घर में बैगन भाजा, तो कहीं यहां वांगी भात।

एक ही बैंगन बेचारा कितना रूप धारण करे। धीरे-धीरे राजा भी तंग आ गया। हर दिन वही बैंगन। एक दिन ऐसा आया कि राजा ने बावर्ची को बुलाया और खूब डांटा। तुमसे किसने कहा कि बैंगन के सिर पर मुकुट है। इस राज्य में अब से कोई बैंगन नहीं खाएगा। कल से बाकी कोई भी सब्ज़ी बनाना लेकिन बैंगन मत बनाना। जैसी आपकी आज्ञा महाराज, कहके बावर्ची सीधा गया तेनाली रामा के पास।

तेनाली रामा के पांव पड़ते हुए कहा कि मंत्री जी धन्यवाद, आपने हमारे प्राण बचा लिए। आपके सुझाव की वजह से अब हम कोई भी सब्जी राजा को खिला सकते हैं। तेनाली रामा ने हंसते हुए कहा वो मंत्री ही क्या जो राजा को खुश न रख सके। और इसी तरह राजा कृष्णदेवराय और मंत्री तेनाली रामा की कहानियां बनती रही और लोग सुनते रहे।

गुलामी के दौर की कहानियां प्रचारित करने का आग्रह

मोदी ने परिवार में किस्सा कहानी सुनाने की परंपरा को जारी रखने का लोगों से आग्रह करते हुए कहा है कि देश जल्द ही आजादी की 75वीं सालगिरह मानाने जा रहा है इसलिए गुलामी के दौर की कहानियों को भी प्रचारित और प्रसारित किया जाना चाहिए।

मोदी ने रविवार को रेडियो पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि कहानियां और किस्से कहने की हमारी समृद्ध परंपरा रही है और देश के कई लोग आज भी इस परंपरा को आगे बढाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने इस काम से जुड़े लोगों से गुलामी के दौर के किस्से और कहानियां भी कहने और उन्हें प्रचारित तथा प्रसारित करने का आग्रह किया है ताकि आज की पीढ़ी को उस दौर के संकट से रूबरू किया जा सके।

उन्होंने कहा कि मैं, कथा सुनाने वाले सबसे आग्रह करूंगा कि हम आज़ादी के 75 वर्ष मनाने जा रहें हैं, क्या हम हमारी कथाओं में पूरे गुलामी के कालखंड की जितनी प्रेरक घटनाएं हैं उनको कथाओं में प्रचारित कर सकते हैं। विशेषकर 1857 से 1947 तक हर छोटी-मोटी घटना से अब हमारी नई पीढ़ी को कथाओं के द्वारा परिचित करा सकते हैं। मुझे विश्वास है कि आप लोग ज़रूर इस काम को करेंगे। कहानी कहने की ये कला देश में और अधिक मजबूत बनें और अधिक प्रचारित हो और सहज बने इसलिए आओ हम सब प्रयास करें।

मोदी ने देश के लोगों से हर सप्ताह परिवार के लिए कुछ कहानियां कहने का आग्रह किया और कहा कि परिवार के हर सदस्य को हर सप्ताह एक विषय कहानी कहने के लिए कहें।