नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परंपरागत भारतीय खेलों को बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए आज कहा कि इनकी विविधता में राष्ट्रीय एकता मौजूद है और इनसे पीढ़ियों के अंतर (जेनेरेशन गैप) को समाप्त किया जा सकता है।
मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 44वीं कड़ी में कहा कि कभी-कभी चिंता होती है कि कहीं हमारे ये खेल खो न जाएं और सिर्फ खेल ही नहीं खो जाएगा, कहीं बचपन ही खो जाएगा और फिर उस कविताओं को हम सुनते रहेंगे। उन्होेंने इसके लिए शायर सुदर्शन फाकिर की मशहूर गजल ‘यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी का उल्लेख किया।
उन्होेंने परंपरागत खेलों के संरक्षण करने और इनको बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए कहा कि पारंपरिक खेलों काे खोना नहीं है। आज आवश्यकता है कि स्कूल, मौहल्ले, युवा-मंडल आगे आकर इन खेलों को बढ़ावा दें। जनता के सहयोग से अपने पारंपरिक खेलों का एक बहुत बड़ा संग्रह बना सकते हैं। इन खेलों के वीडियो बनाए जा सकते हैं, जिनमें खेलों के नियम, खेलने के तरीके के बारे में दिखाया जा सकता है। ऐनिमेनेशन फ़िल्में भी बनाई जा सकती हैं ताकि नई पीढ़ी काे इनसे परिचित कराया जा सके।
मोदी ने कहा कि इन खेलों को खेलने की कोई उम्र तो है ही नहीं। बच्चों से ले करके दादा-दादी, नाना-नानी जब सब खेलते हैं तो पीढ़ियों का अंतर समाप्त हो जाता है। साथ ही यह संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान कराते हैं। कई खेल समाज, पर्यावरण आदि के बारे में भी जागरूक करते हैं।
मोदी ने कहा कि परंपरागत खेलों की विविधता में राष्ट्रीय एकता छिपी है। पिट्ठू खेल को कई नामों से जाना जाता है। कोई उसे लागोरी, सातोलिया, सात पत्थर, डिकोरी, सतोदिया के नाम से जानता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की विविधता के पीछे छिपी एकता इन खेलों में भी देखी जा सकती है। एक ही खेल अलग-अलग जगह, अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
मैं गुजरात से हूं मुझे पता है गुजरात में एक खेल है, जिसे चोमल-इस्तो कहते हैं। ये कोड़ियों या इमली के बीज या कोड़ियों के साथ और एक चाेकोर खाने के साथ खेला जाता है। यह खेल लगभग हर राज्य में खेला जाता था। कर्नाटक में इसे चौकाबारा कहते थे, मध्यप्रदेश में अत्तू। केरल में पकीड़ाकाली तो महाराष्ट्र में चम्पल, तो तमिलनाडु में दायाम और थायाम, तो कहीं राजस्थान में चंगापो न जाने कितने नाम थे लेकिन खेलने के बाद पता चलता है कि हर राज्य में यह खेला जाता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा कौन होगा, जिसने बचपन में गिल्ली-डंडा न खेला हो। गिल्ली-डंडा तो गांव से लेकर शहरों तक में खेले जाने वाला खेल है। देश के अलग-अलग भागों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश में इसे गोटिबिल्ला या कर्राबिल्ला के नाम से जानते हैं। उड़ीसा में उसे गुलिबाड़ी कहते हैं तो महाराष्ट्र में इसे वित्तिडालू कहते हैं।
मोदी ने ‘फिट इंडिया’ अभियान का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया सामने आयी है। इससे समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली का उल्लेख करते हुए कहा कि इस तरह से लोग खुद और दूसरे को भी ‘फिट’ रख सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने नोएडा की छवि यादव की चिंता की से सहमित जताई कि आजकल बच्चें अपना अधिकतर समय इंटरनेट पर बीता रहे हैं और पंरपरागत खेल पिटठू, ऊंच-नीच और खो-खो जैसे खेल खो गए हैं। मोदी ने कहा कि पिट्ठू हो या कंचे हो, खो-खो हो, लट्टू हो या गिल्ली-डंडा हो और अनगिनत खेल कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कामरूप तक हर किसी के बचपन का हिस्सा हुआ करते थे।
खेलों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि खेलों के माध्यम से लोग अपने आप को बेहतरी ढंग से व्यक्त कर पाते हैं। पारंपरिक खेल कुछ इस तरह से बने हैं कि शारीरिक क्षमता के साथ-साथ वे तर्क क्षमता, एकाग्रता, सजगता, स्फूर्ति को भी बढ़ावा देते हैं। खेल सिर्फ खेल नहीं होते हैं, बल्कि वे जीवन के मूल्यों को सिखाते हैं। अाधुनिक प्रबंधन में भी परंपरागत खेलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। खेलों से समग्र व्यक्तित्व का विकास होता है।
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