नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में योग एवं आयुर्वेद के सम्मिलन को प्रमाण आधारित प्रभावी उपचार का माध्यम साबित होने पर खुशी जाहिर की और आशा जताई कि भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का प्रयोग देश में रोगों के उन्मूलन एवं किफायती उपचार में महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा।
माेदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम मन की बात में कहा कि यानि सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, जो प्रत्यक्ष है, उसे भी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन बात जब आधुनिक मेडिकल विज्ञान की हो, तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है – प्रमाण। सदियों से भारतीय जीवन का हिस्सा रहे योग और आयुर्वेद जैसे हमारे शास्त्रों के सामने प्रमाण आधारित शोध की कमी, हमेशा-हमेशा एक चुनौती रही है – परिणाम दिखते हैं, लेकिन प्रमाण नहीं होते हैं। लेकिन, ख़ुशी की बात है कि प्रमाण आधारित उपचार के युग में, अब योग और आयुर्वेद, आधुनिक युग की जांच और कसौटियों पर भी खरे उतर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सभी ने मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर के बारे में ज़रूर सुना होगा। इस संस्थान ने शोध, नवान्वेषण और कैंसर केयर में बहुत नाम कमाया है। इस सेंटर द्वारा किए गए एक गहन शोध में सामने आया है कि स्तन कैंसर के मरीजों के लिए योग बहुत ज्यादा असरकारी है। टाटा मेमोरियल सेंटर ने अपने शोध के नतीजों को अमरीका में हुई बहुत ही प्रतिष्ठित, स्तन कैंसर सम्मेलन में प्रस्तुत किया है।
इन नतीजों ने दुनिया के बड़े-बड़े विशेषज्ञों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। क्योंकि, टाटा मेमोरियल सेंटर ने प्रमाण के साथ बताया है कि कैसे मरीजों को योग से लाभ हुआ है। इस सेंटर के शोध के मुताबिक, योग के नियमित अभ्यास से, स्तन कैंसर के मरीजों की बीमारी के, फिर से उभरने और मृत्यु के खतरे में, 15 प्रतिशत तक की कमी आई है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में यह पहला उदाहरण है, जिसे, पश्चिमी तौर-तरीकों वाले कड़े मानकों पर परखा गया है।
साथ ही, यह पहला अध्ययन है, जिसमें स्तन कैंसर से प्रभावित महिलाओं में, योग से, जीवन की गुणवत्ता के बेहतर होने का पता चला है। इसके दीर्घकालिक लाभ भी सामने आये हैं। टाटा मेमोरियल सेंटर ने अपने अध्ययन के नतीजों को पेरिस में हुए यूरोपियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल ऑन्कोलॉजी सम्मेलन में प्रस्तुत किया है।
मोदी ने कहा कि आज के युग में, भारतीय चिकित्सा पद्दतियां, जितनी ज्यादा प्रमाण आधारित होंगी, उतनी ही पूरे विश्व में उनकी स्वीकार्यता, बढ़ेगी। इसी सोच के साथ, दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भी एक प्रयास किया जा रहा है। यहां, हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्दतियों को वैधानिकता प्रदान करने लिए छह साल पहले सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च की स्थापना की गई। इसमें अत्याधुनिक तकनीक और शोध विधियों का उपयोग किया जाता है। यह सेंटर पहले ही प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय शोधपत्रिकाओं में 20 शोधपत्र प्रकाशित कर चुका है।
अमरीकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र में सिन्कपी से पीड़ित मरीजों को योग से होने वाले लाभ के बारे में बताया गया है। इसी प्रकार, न्यूरोलॉजी जर्नल में, माईग्रेन में, योग के फायदों के बारे में बताया गया है। इनके अलावा कई और बीमारियों में भी योग के लाभों को लेकर अध्ययन किया जा रहा है जैसे हृदय रोग, अवसाद, अनिद्रा और गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्यायें।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही गोवा में विश्व आयुर्वेद कांग्रेस का आयोजन हुआ। इसमें 40 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए और यहां 550 से अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। भारत सहित दुनियाभर की करीब 215 कंपनियों ने यहां प्रदर्शनी में अपने उत्पाद को प्रदर्शित किया। चार दिनों तक चले इस एक्स्पो में एक लाख से भी अधिक लोगों ने आयुर्वेद से जुड़े अपने अनुभव का आनंद उठाया।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद कांग्रेस में भी मैंने दुनिया भर से जुटे आयुर्वेद विशेषज्ञ के सामने प्रमाण आधारित शोध का आग्रह दोहराया। जिस तरह कोरोना वैश्विक महामारी के इस समय में योग और आयुर्वेद की शक्ति को हम सभी देख रहे हैं, उसमें इनसे जुड़ा प्रमाण आधारित शोध बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगा। मेरा आपसे भी आग्रह है कि योग, आयुर्वेद और हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े हुए ऐसे प्रयासों के बारे में अगर आपके पास कोई जानकारी हो तो उन्हें सोशल मीडिया पर जरुर साझा करें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में हमने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी कई बड़ी चुनौतियों पर विजय पाई है। इसका पूरा श्रेय हमारे चिकित्सा विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और देशवासियों की इच्छाशक्ति को जाता है। हमने भारत से चेचक, पोलियो और ‘गिनी वार्म’ जैसी बीमारियों को समाप्त करके दिखाया है।
उन्होंने कहा कि आज ‘मन की बात’ के श्रोताओं को, मैं, एक और चुनौती के बारे में बताना चाहता हूं, जो अब, समाप्त होने की कगार पर है। ये चुनौती, ये बीमारी है – ‘कालाजार’। इस बीमारी का परजीवी यानि बालू मक्खी के काटने से फैलता है। जब किसी को ‘कालाजार’ होता है तो उसे महीनों तक बुखार रहता है, खून की कमी हो जाती है, शरीर कमजोर पड़ जाता है और वजन भी घट जाता है।
यह बीमारी, बच्चों से लेकर बड़ों तक किसी को भी हो सकती है। लेकिन सबके प्रयास से, ‘कालाजार’ नाम की ये बीमारी, अब, तेजी से समाप्त होती जा रही है। कुछ समय पहले तक, कालाजार का प्रकोप, 4 राज्यों के 50 से अधिक जिलों में फैला हुआ था। लेकिन अब ये बीमारी, बिहार और झारखंड के 4 जिलों तक ही सिमटकर रह गई है। मुझे विश्वास है, बिहार-झारखंड के लोगों का सामर्थ्य, उनकी जागरूकता, इन चार जिलों से भी ‘कालाजार’ को समाप्त करने में सरकार के प्रयासों को मदद करेगी।
‘कालाजार’ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों से भी मेरा आग्रह है कि वो दो बातों का जरूर ध्यान रखें। एक है – बालू मक्खी पर नियंत्रण, और दूसरा, जल्द से जल्द इस रोग की पहचान और पूरा इलाज। ‘कालाजार’ का इलाज आसान है, इसके लिए काम आने वाली दवाएं भी बहुत कारगर होती हैं। बस, आपको सतर्क रहना है। बुखार हो तो लापरवाही ना बरतें, और, बालू मक्खी को खत्म करने वाली दवाइयों का छिड़काव भी करते रहें। जरा सोचिए, हमारा देश जब ‘कालाजार’ से भी मुक्त हो जाएगा, तो ये हम सभी के लिए कितनी खुशी की बात होगी।
उन्होंने कहा कि सबका प्रयास की इसी भावना से, हम, भारत को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए भी काम कर रहे हैं। बीते दिनों, जब, टी.बी. मुक्त भारत अभियान शुरू हुआ, तो हजारों लोग, टीबी मरीजों की मदद के लिए आगे आए। ये लोग निक्षय मित्र बनकर, टीबी के मरीजों की देखभाल कर रहे हैं, उनकी आर्थिक मदद कर रहे हैं। जनसेवा और जनभागीदारी की यही शक्ति, हर मुश्किल लक्ष्य को प्राप्त करके ही दिखाती है।