कोरोना वायरस पूरे दुनिया में तेजी के साथ तबाही मजा आ रहा है। कोरोना वायरस का इलाज तलाशने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक दिन-रात कोशिश कर रहे हैं। अब ब्रिटेन में इसकी वैक्सीन का टेस्ट शुरू हुआ है। गुरुवार को चुनिंदा मरीजों को टीके लगाए गए। यह दुनिया का सबसे बड़ा ड्रग ट्रायल बताया जा रहा है। अप्रत्याशित तेजी से इंसानों पर शुरू हुए इस पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।
वैज्ञानिकों ने परीक्षण में सफलता की 80 फीसदी संभावना जाहिर की है। ब्रिटेन में 165 अस्पतालों में करीब 5000 मरीजों का 1 महीने तक और इसी तरह से यूरोप और अमेरिका में सैकड़ों लोगों पर यह परीक्षण होगा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विभाग को प्रोफेसर पीटर हॉर्बी बताते हैं, यह दुनिया का सबसे बड़ा ट्रायल है। कोरोना से उपजे महानिराशा का दौर खत्म होने वाला है। पूरी दुनिया अब तक नाउम्मीद रही है कि कोरोना का खात्मा कब होगा और कैसे बेहिसाब मौत का आंकड़ा रुकेगा। लेकिन ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने लोगों में उम्मीद जगा दी है। इंसानों पर उसकी टेस्टिंग भी शुरू हो रही है। मतलब सुपर वैक्सीन करीब-करीब तैयार हो गई है।
सितंबर में अमल में लाई जा सकती है वैक्सीन
सब कुछ सामान्य रहता है तो कोरोना वायरस के लिए कारगर वैक्सीन सितंबर में अमल में लाई जा सकती है। इसमें कामयाबी मिली तो सितंबर तक 10 लाख वैक्सीन इस्तेमाल में लाई जाएगी। इस तकनीक को अलग अलग बीमारियों पर आजमाया जा चुका है। हम दूसरी बीमारियों पर 12 क्लिनिकल ट्रायल कर चुके हैं। हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। इसकी सिंगल डोज से इम्यूनिटी बेहतर हो सकती है।
अब तक माना जाता रहा है कि कोरोना वायरस का इंजेक्शन बनाने में 12 से 18 महीने लग सकते हैं, लेकिन ब्रिटेन बाजी मारने के करीब है। इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिकों को भरोसा इतना है कि ट्रायल के साथ-साथ दुनिया में 7 सेंटर पर वैक्सीन का प्रोडक्शन भी शुरू हो चुका है। भारत भी उनमें से एक सेंटर है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एड्रियन हिल के मुताबिक, हमने इस वैक्सीन को बनाने का जोखिम लिया है, वो भी छोटे स्तर पर नहीं। हम दुनिया के 7 अलग अलग उत्पादकों के नेटवर्क की मदद से वैक्सीन बना रहे हैं।
वैक्सीन बनाने में वैज्ञानिकों के सामने कम चुनौती नहीं है
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के तीन प्रकार अलग-अलग तरह से प्रकोप मचा रहे हैं। इस वजह से वैज्ञानिकों के सामने इसकी दवा को विकसित करना एक बड़ी चुनौती बन गई है। एक नई रिसर्च में ये बात निकलकर सामने आई है कि आने वाले छह महीने में जब तक दवा आएगी तब तक वायरस में कई बदलाव आ चुके होंगे। इसको देखते हुए वैज्ञानिकों को इस बात का भी डर सताने लगा है कि इसकी दवा विकसित होने के बाद भी ये जरूरी नहीं होगा कि वो दूसरे मरीज पर भी कारगर साबित हो।
लिहाजा वैज्ञानिकों के लिए असल चुनौती इस वायरस के अलग-अलग प्रकारों के लिए अलग-अलग दवाएं और टीके तैयार करने की होगी। आपको बता दें कि दुनिया में 70 से अधिक टीका बनाने के प्रोजेक्ट चल रहे हैं और इससे ज्यादा दवाओं के हैं। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 वायरस में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। इनमें से कई एकदम नए हैं जो आने वाले दिनों में वायरस की कार्यप्रणाली में भी बदलाव ला सकते हैं, जिसकी वजह से भविष्य में इसको लेकर बनने वाली कोई भी एक दवाई दूसरे मरीज पर कारगर साबित नहीं होगी।
इस महामारी से निपटने के लिए दुनियाभर में जंग और तेज हुई
इस महामारी से अब तक दुनियाभर में करीब दो लाख लोग मारे गए है और 28 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं। इस वैश्विक महामारी से जंग को तेज करने के लिए शुक्रवार को विश्वभर के नेताओं ने कोविड-19 के टेस्ट, दवाओं और वैक्सीन के काम में तेजी लाने का प्रण किया। इस वैश्विक रणनीति में उस समय फूट दिखाई दी जब अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस अभियान में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि अमेरिका ने कहा है कि वह इस जंग में पूरी दुनिया के साथ खड़ा है।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रान, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा समेत नेताओं ने वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए डब्ल्यूएचओ के इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी के खिलाफ ‘ऐतिहासिक सहयोग’ करार दिया है। इस बैठक का उद्देश्य कोरोना के खिलाफ सुरक्षित और प्रभावी दवा, टेस्ट और वैक्सीन बनाना है ताकि इस महामारी को रोका जा सके और कोविड-19 से फेफड़े को होने वाली बीमारी को ठीक किया जा सके।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार