सबगुरु न्यूज। सौर वर्ष 365 दिन का तथा चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है। सौर वर्ष में 11 दिन अधिक होते हैं। दोनों वर्षों में समानता लाने के लिए हर तीसरे साल एक अधिक मास बन जाता है।
पंचाग में मासों की गणना चन्द्र मास से तथा वर्ष की गणना सौर मास से की जाती है। बारह चन्द्र मासों का वर्ष सौर वर्ष मास से लगभग 10 दिन के छोटा होता है। प्रायः प्रति तीन साल में जब यह अंतर एक चन्द्र मास के बराबर हो जाता है तो उस सौर वर्ष में 13 चन्द्र मास जोड दिए जाते हैं। यही अधिक मास या अधिमास या पुरुषोत्तम मास कहलाता है।
अधिक मास कौन सा माना जाए, क्योंकि मास तो बारह होते हैं अतः इस की सैद्धांतिक परिभाषा के अनुसार जिस मास में सूर्य की संक्रांति न हो तो वह असंक्रांति मास या अधि मास या मल मास कहा जाता है। इसके विपरीत यदि किसी एक चंद्र मास में दो संक्रांति सूर्य की पड जाए तो वह क्षय मास या घटा हुआ मास होता है।
सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ में बताया गया है कि क्षय मास कार्तिक मार्गशीष व पौष मास में ही होती है। फाल्गुन मास से आश्विन मास तक आठों मासों में अधिक मास होता है। माघ मास में न तो क्षय मास होता है और न ही अधिक मास। कार्तिक मास में क्षय व अधिक दोनों मास हो सकते हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार चंद्र और सौर मास के अंतर को अधिक मास कहा जाता है। चंद्र मास में जब सूर्य की एक ही सक्रांति में दो अमावस्या आ जाती है तब दूसरी अमावस्या वाले अधिक समय को “अधिक मास” कहा जाता है।
इस वर्ष ज्येष्ठ मास 1 मई से है, अधिक जेष्ठमास 28 जून तक रहेगा। प्रथम ज्येष्ठ मास 1 मई से 29 मई तक तथा द्वितीय ज्येष्ठ मास 30 मई से 28 जून 2018 तक रहेगा। ज्येष्ठ मास में पहली अमावस्या 15 मई को तथा दूसरी बार अमावस्या 13 जून को होगी। इसलिए 15 मई से 13 जून तक का समय अधिक मास माना जाएगा।
कुल मिलाकर 15 मई 2018 मंगलवार से 13 जून 2018 तक अधिक मास रहेगा, अतः अधिक मास में विवाह अन्य मुहूर्त व शुभ कार्य वर्जित है।
सौजन्य : भंवरलाल