सिरोही/पिंडवाडा। सिरोही जिले की पिंडवाडा तहसील में अजारी गांव के पास अर्बुद पौराणिक मार्कंडेश्वरधाम स्थित गुप्त गंगा नदी में गुरूवार को हजारों की तादात में मछलियों की मौत हो गई, सुबह पूजा को आए पुजारी व श्रद्धालुओं ने हजारों की तादात में मृत मछलियों को
देखकर गहरी वेदना प्रकट की।
उपखण्ड अधिकारी को सूचना के बाद अतिरिक्त विकास अधिकारी हीरालाल, ग्राम विकास अधिकारी दलपत लौहार ने मौका निरीक्षण किया एवं मृत मछलियों को पानी से निकलवाकर जमीन में गडवाया।
जानकारी के अनुसार अजारी स्थित श्री मारकुंडेश्वरजी महादेव मंदिर जो 7वीं सदी का है और मां सरस्वती का मंदिर गुप्त कालीन मंदिर है। काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और धाम के दर्शन करते हैं। सबसे बड़ी बात कि यहां कई महान विद्वानों ने तपस्या भी की है। गुप्तकाल में निर्मित यह मंदिर कई सदियों से बुद्धि और ज्ञान का बल चाहने वालों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। साथ ही प्रदेश में इस मंदिर का एक खास पहचान है।
पिण्डवाडा से आबूरोड हाईवे मार्ग पर अजारी चौराहे से 5 किलोमीटर भीतर अजारी गाव के समीप दूर पर्वतीय नाले के पार वन क्षेत्र से घिरा हुआ सुंदर अर्बुद पौराणिक धाम मारकुंडेश्वरजी महादेव का 7वीं सदी का प्राचीन मंदिर है, प्राक्रतिक छठा व् हरे भरे पेड पौधो व खजूर के वृक्षों से घिरा यह मंदिर अपने आप में अनूठा है। मंदिर के सामने ही पञ्चतत्व जल बहता है। माना जाता है कि इस जल में बाण गंगा, सूर्य कुंड, गया कुंड आदि का भी जल एकत्र होता है। यह जल कभी नहीं सूखता था।
दंत कथा है की इसी गाव के एक भक्त की गंगा के प्रति असीम श्रृद्धा के कारण ही गंगा स्वयं इस गाव में आई थी, अत: इस पानी को गंगाजल ही माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए अस्तियां विसर्जन व पितृ पूजन की कर्मस्थली है। यहां प्रवाहित गंगा में सिरोही जिले सहित दूर दराज से लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए इसी कुंड में अस्थि प्रवाहित करते हैं साथ ही अकाल मृत्यु
के दरम्यान हिन्दु संस्कृति की मान्यताओं अनुसार पितृ शान्ति सहित विविध अनुष्ठान सम्पन्न करवाए जाते हैं।
बाल ऋषि मार्कण्डेय सहित कई विद्वानों की तपस्या स्थली के रूप में भी इस जगह की मान्यता है। मां सरस्वती की प्रतिमा अति प्राचीन है जो गुप्तकालीन सुंदर काले पत्थर की चमत्कारिक प्रतिमा है। लगभग 4 फुट ऊंचे आकार की मां सरस्वती की ऐसी सुंदर प्रतिमा देशभर में शायद ही कही होगी। दंतकथा अनुसार बालमहर्षि मार्कंडेय की भी यह तपो भूमि रही है। बताया जाता है बालमहर्षि मार्कंडेय की मृत्यु बारह वर्ष की उम्र में होनी निश्चित थी तब मार्कंडेय ने यम से बचने के लिए महामृत्युंजय का जाप व कठोर शिव की तपस्या के बल पर मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी।
मार्कंडेय अमरत्व प्राप्त होने से इस स्थल को मारकुंडेश्वरजी भी कहते है, यहां पर आज भी वो धुनी मौजूद है तथा इसी तपोस्थली पर महाकवि कालिदास ने भी ज्ञान प्राप्त किया था। वही यहां पर राजा कुमारपाल सोलंकी के गुरु हेमचंद्राचार्य एवं जगद्गुरु शांतिविजयजी ने पांच वर्षों तक मां सरस्वती की साधना कर अथाह ज्ञान प्राप्त किया था। मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यताओं और मां सरस्वती के इस खास दर्शनीय स्थल पर हजारों की संख्या में भक्त जुटते हैं और देवी की पूजा-अराधना करते हैं।
जल दोहन करने से सूखने लगी गंगा
करीब डेढ दशक पूर्व क्षेत्र में अकाल के दरम्यान अस्थायी विकल्प के रूप से गंगा के पास कुण्ड से अजारी गांव हेतू पेयजल व्यवस्था शुरू की गई थी। विभाग की लापरवाही कहे अथवा मनमानी तब से लगातार इस कुण्ड से अजारी गांव हेतू पानी का दोहन किया जाने लगा जिससे कभी न सुखने वाली गंगा में हर वर्ष पानी की कमी होने के साथ साथ मछलियों के मौत का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
समाप्त हो रही पवित्र गंगा कुंड की रौनक
डेढ दशक पहले मछलियों से इस पवित्र कुण्ड की भव्यता देखते ही बनती थी। सैकड़ों लोग दाना खिलाने पहुंचते थे, तब रौनक नजर आती थी। लोग मछलियों को दाना खिलाकर पुण्य कमाते थे। अब मछलियां नहीं होने से रौनक खत्म हो गई है। इस पवित्र तीर्थ में साफ-सफाई व जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण तीर्थ का जल दूषित और जहरीला हो गया है। गंगा कुण्ड का गंदा पानी होने से प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, जिससे मछलियां पानी में सांस नहीं ले पाती हैं। जिस कारण से भी प्रत्येक वर्ष इस जल के अंदर रहने वाली लाखों मछलियों की मौत हो जाती है।
स्थानीय प्रशासन की रही है अनदेखी
वैसे तो इस पवित्र तीर्थ को तत्कालीन मुख्यमंत्री भेरोसिंह शेखावत ने तीर्थ क्षेत्र घोषित कर विकास की घोषणा की थी लेकिन करीब ढाई दशकों से यह घोषणा अस्तित्व में नहीं आ सकी है। पूर्व में वर्ष प्रयन्त गतिमान रहने वाला गंगाजल पानी दोहन के कारण सूख गया अब मछलियों के जीवन बचाने के लिए महंत रेवानाथजी व श्रद्धालुओं द्वारा गंगा कुण्ड में टैंकरों से पानी डाला जाता है। कभी यहां आने वाले श्रृद्धालु पवित्र जल का आचमन लेते थे लेकिन कुण्ड में वर्षभर लगातार अस्थियां प्रवाहित करने एवं पानी की कमी से गंदगी से सना हुआ होने से लोग हाथ डालने से भी गुरेज करने लगे हैं।