मथुरा। उत्तर प्रदेश में मथुरा की जिला न्यायाधीश साधनारानी ठाकुर ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की जमीन के एक भाग में बनी शाही मस्जिद को हटाने संबंधी वाद स्वीकार कर लिया है।
न्यायाधीश ने इस मामले में प्रतिवादी पार्टियों उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ के चेयरमैन, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी आफ मैनेजमेन्ट ट्रस्ट के डीग दरवाजा मथुरा निवासी सचिव, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मैनेजिंग ट्रस्टी डीग गेट चैराहे के पास जन्मभूमि मन्दिर मथुरा एवं सचिव श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान डीग गेट मथुरा को 18 नवम्बर को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया है।
जिला जज ने वादकारियों के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से निचली अदालत में प्रस्तुत किये गए साक्ष्य आदि को 16 अक्टूबर को प्रस्तुत करने को कहा था।
सिविल जज सीनियर डिवीजन ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन के एक भाग पर बने शाही मस्जिद ईदगाह को खाली कराने संबंधी दायर किये गए वाद को 30 सितम्बर 2020 के निर्णय में खारिज कर दिया था तथा इसके बाद इस वाद के वादियों ने 12 अक्टूबर को जिला जज की अदालत में अपील करते हुए इन्चार्ज सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा के आदेश को रद्द करने तथा इस अपील को स्वीकार करने की प्रार्थना की थी।
अपील में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की 13.37 एकड़ जमीन के उस भू भाग को भी खाली कराने की प्रार्थना की गई है जिस पर वर्तमान में शाही मस्जिद ईदगाह है।
इस अपील की वादी भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशवदेव खेवट संख्या 255 मौजा मथुरा जिले के मथुरा बाजार सिटी में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ उनकी गोपी लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री एवं पांच अन्य हैं ।
रंजना अग्निहोत्री के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि कोड आफ सिविल प्रोसीजर 1908 की धारा 96 के अन्तर्गत दायर अपील में कहा गया है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया निर्णय त्रुटिपूर्ण, कानून एवं तथ्यों के विपरीत है।निर्णय भारतीय संविधान की आर्टिकल 25 में दिए राइट टु रिलीजन के विपरीत इसलिए है कि निचली अदालत ने कहा है कि हर भक्त को इस प्रकार का वाद दायर करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि एक महीने से वे न्याय की जो लड़ाई लड़ रहे थे जिला जज ने उनकी बात मानी है कि सिविल जज सीनियर डिवीजन की फाइन्डिंग कानून की दृष्टि से सही नहीं थी। जैन का कहना था कि उन्होंने अदालत में यह भी कहा है कि भगवान की सम्पत्ति का यदि गलत तरीके से उपयोग हुआ है तो एक भक्त को अपील करने का पूरा अधिकार होता है।
इस संबंध में अयोध्या मामले का हवाला भी दिया गया था जिसमें कहा गया था कि भगवान की सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए भक्त को अदालत में मुकदमा दायर करने का पूरा अधिकार है।
जैन ने कहा कि 1968 के समझौते की जो बात कही जाती है हकीकत में वह फ्राड था क्योंकि समझौता करनेवाली दोनो पार्टियों में एक पार्टी बाहरी है तथा उसे समझौता करने का कोई अधिकार ही नही है। आज के फैसले से वे बिलकुल संतुष्ट हैं और अब ट्रायल चलेगा और न्याय की लड़ाई आगे चलेगी।