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ग्रहण के मेलों में कुदरत के संदेश
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ग्रहण के मेलों में कुदरत के संदेश

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ग्रहण के मेलों में कुदरत के संदेश

सबगुरु न्यूज। इस साल पृथ्वी और चन्द्रमा की छाया के खेल ने आकाश मंडल में काफ़ी हलचल मचा दी तथा विज्ञान को खुद अपने सिद्धांतों के अनुसार खोज करने व अनुसंधान करने को विवश कर दिया।

लोक मान्यताओं में इसे पृथ्वी पर भार अर्थात भावी अज्ञात भय के कारण अनिष्टकारी मानते हुए दान पुण्य और हर संभावित खतरे को टालने के लिए कर्म किए तो खगोल विज्ञान मात्र इसे पृथ्वी तथा चन्द्र की छाया का खेल ही मानते रहे।

सत्य तो यह है कि इस साल कुदरत ने ग्रहण के मेले लगाकर अपनी तरह तरह की लीलाओं का खेल पृथ्वी पर दिखाकर मानव को सदेशे दिए हैं कि हे मानव मेरे गुणों की दुनिया को कभी भी कोई जान नहीं सका ओर ना ही जान पाएगा, केवल घटनाक्रम के आधार पर अपने सिद्धांतों को स्थापित कर मेरे बारे में टीका टिप्पणी करेगा।

ग्रहण का अर्थ है किसी के अस्तित्व की समाप्ति। चाहे वह अस्तित्व कुछ समय के लिए है या हमेशा के लिए समाप्त हो। चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण में सूर्य व चन्द्रमा का अस्तित्व कुछ समय के लिए समाप्त होता हुआ नजर आता है और बाद में वह अपने मूल स्वरूप में आ जाता है।

इस वर्ष 2018 मे पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्रमा के पांच ग्रहण होंगे। इनमें से चार ग्रहण निकल चुके हैं और पांचवा ग्रहण 11 अगस्त को होगा। इससे पूर्व 11 जनवरी 15 फरवरी 13 जुलाई तथा 27 जुलाई को हो चुके हैं और भले ही सारे ग्रहण भारत की भूमि में नहीं दिखाई दिए फिर भी पृथ्वी पर इनके प्रभाव दूसरे देशों की धरती पर पडे हैं।

प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से भारत की भूमि भी इन सब प्रभावों से प्रभावित रहीं हैं क्योंकि समूचे विश्व से हमारा किसी ना किसी प्रकार से धार्मिक सामाजिक आर्थिक राजनैतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में सम्बन्ध है।

ग्रहण भले ही किसी को प्रभावित कर पाया या नहीं तो भी प्रकृति ने समूचे विश्व को अपने आगोश में कैद कर लिया। अत्यधिक जल, प्रलय, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी, अनावृष्टि, भयंकर गर्मी और सूखे से पूरे विश्व को किसी ना किसी रूप में प्रभावित कर रखा है।

आज विश्व की यह स्थिति हर विज्ञान ओर शास्त्रों को अपना बल दिखा कर यह संदेश देती है कि हे मानव इस सृष्टि को विनाश से बचा। अपने अहंकार से अजेय बनने के स्थान पर उन अपार जीवों का संरक्षण कर ओर मानव को गुलाम बना अत्याचार मत कर उनको अनगिनत चिंताओं और पीडा से मुक्ति दिला। उनके दर्द को दबा मत व अपनी नीति ओर कूटनीति के खेल में सभ्यता ओर संस्कृति पर ग्रहण मत लगा।

सौजन्य : भंवरलाल