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प्लास्टिक और पारिस्थतिकी तंत्र में बदलाव से समुद्री जीव संकट में - Sabguru News
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प्लास्टिक और पारिस्थतिकी तंत्र में बदलाव से समुद्री जीव संकट में

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प्लास्टिक और पारिस्थतिकी तंत्र में बदलाव से समुद्री जीव संकट में

माउंट आबू। वैश्विक प्रदूषण एवं प्लास्टिक से थल एवं नभचर प्राणी ही प्रभावित नहीं हुए हैं बल्कि जलचर प्राणियों को भारी नुकसान पहुंचा है, अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो वह समय दूर नहीं समुद्री जीव इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाएंगे।

पिछले 42 वर्षों से समुद्री यात्राएं कर रहे कैप्टेन कश्मीरी लाल कैंथ ने कल राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में कहा कि चार दशक से अधिक समय तक की विभिन्न समुद्रों की लंबी यात्राओं के दौरान उन्होंने जलवायु परिवर्तन के भीषण नुकसान देखे हैं।

समुद्री जीवों पर मौत का संकट मंडरा रहा है। जिसका ज्वलंत उदाहरण है कि पहले विशालकाय व्हेल मछलियों के पहले झुंडों के झुंड अलग-अलग समूहों में व्यापक स्तर पर देखे जाते थे, जो पर्यावरण में बदलाव के चलते धीरे-धीरे कम होते गए, अब स्थिति यह है कि इनकी संख्या सैंकड़ों से घटकर दर्जनों पर आ र्गइ है। ये बहुत ही कम दिखाई देती हैं। कमोबेश यही स्थिति विभिन्न प्रजातियों के अन्य समुद्री प्राणियों की भी देखी जा रही है।

उन्होंने बताया कि इसी तरह समुद्री पंछियों, जीवों की कई प्रजातियां पर्यटकों द्वारा फेंके जाने वाले कचरे एवं प्लास्टिक के सेवन से दम तोड़ रहीं हैं। समुद्र तटीय जीव प्लास्टिक खाकर बीमार होकर दम तोड़ देते हैं। प्लास्टिक में प्रयुक्त जहरीले रसायन के चलते समुद्री जीवों के साथ ही समुद्री वनस्पतियों को भी व्यापक नुकसान हो रहा है। पानी में जहर घुलने से जीवों की संरचना तक बदलने लगी है। इसका असर पारिस्थतिकी तंत्र पर पड़ रहा है।

कैप्टेन कैंथ ने बताया कि विश्व भर में पेयजल संकट को लेकर भी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, जिसके चलते समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने की कवायद आरंभ हो चुकी है। पेयजल संकट पूरी दुनिया के कई हिस्सों को चपेट में ले चुका है। ऐसी स्थिति में समुद्र में प्लास्टिक कचरा डालने से भविष्य में विभिन्न यंत्रों के जरिए जो पेयजल प्राप्त होगा वह भी धीमे जहर जैसा होगा।

इसकी मुख्य वजह यह है कि प्यूरीफिकेशन, प्रोसेसिंग के बाद भी पेट्रोलियम जैसे कुछ तत्वों से निजात पाना संभव नहीं है, लिहाजा शुद्ध जल उपलब्ध होना संदेहास्पद है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति का सामना करने के लिये अगर अभी से सचेत नहीं हुए तो आने वाले दो-ढाई दशक में समुद्र के ऐसे ही दूषित पानी पीने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

कैप्टेन कैंथ ने बताया कि प्रदूषण से समुद्री जीवों की मौत होना भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। आने वाले दशकों में समुद्र में प्लास्टिक कचरा ज्यादा होगा, तब मछलियों सहित जलचरों के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। वर्तमान में समुद्र में लाखों टन कचरा डाला जा रहा है, इससे समुद्र में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इस रोकने के लिए हर व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण के लिए गंभीरतापूर्वक जागरूक होने की जरूरत है।

उन्होंने बताया कि मछली, कछुओं सहित कई जलीय जीव समुद्र में जलीय पौधों की कई प्रजातियों का सेवन करते हैं, लेकिन भूलवश वे प्लास्टिक का सेवन कर रहे हैं। समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक भोजन, सांस के साथ उनके पेट में पहुंच रहा है, जिसके चलते लाखों जलीय जीवों की मौत हो चुकी है। कई चोटिल भी होते हैं।

कुछ महीने पहले फिलीपींस में एक विशालकाय मृत व्हेल के पेट से करीब 40 किलोग्राम प्लास्टिक निकली थी। माइक्रोप्लास्टिक पक्षियों के लिए भी मौत का सामान सिद्ध हो रहा है। जिससे साबित हो जाता है कि प्लास्टिक ने किस तरह जलीय जीवों के जीवन को प्रभावित कर दिया है। खाड़ी में 80 फीसदी मछलियों के पेट में माइक्रोप्लास्टिक मिलती है।