नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने समायोजित सकल राजस्व (AGR) मामले में अक्टूबर 2019 के फैसले के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) से बकाया मांगने को लेकर दूरसंचार विभाग (DOT) को फटकार लगाते हुए इस पर फिर से विचार करने को कहा है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने गुरुवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग से हुई सुनवाई के दौरान डीओटी को निर्देश दिया कि वह एजीआर मामले में पिछले वर्ष अक्टूबर के फैसले के आधार पर पीएसयू से बकाया मांगने के निर्णय पर दोबारा विचार करे।
खंडपीठ ने कहा कि 2019 के फैसले को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से बकाया मांगने का आधार नहीं बनाया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि ऐसा करके डीओटी उसके फैसले का दुरुपयोग कर रहा है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने डीओटी को फटकार लगाते हुए कहा कि पीएसयू से चार लाख करोड़ रुपये के बकाये की मांग पूरी तरह अनुचित है और विभाग को इसके लिए एक हलफनामा दाखिल करके बताना चाहिए कि ऐसा क्यों किया गया? उन्होंने कहा कि हमारे फैसले का दुरुपयोग किया जा रहा है।
शीर्ष अदालत ने एजीआर बकाया के भुगतान को लेकर निजी क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों को हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा कि वे बकाये का भुगतान कैसे करेंगे? न्यायमूर्ति मिश्रा ने पूछा कि भुगतान की समय सीमा क्या होगी और इसकी क्या गारंटी है कि कंपनियां पैसे देंगी? इसके साथ ही तय समय सीमा में पैसा जमा करने का क्या तरीका होगा? क्या होगा अगर कंपनियों में से कोई लिक्विडशन (दिवालिया) में जाता है,फिर भुगतान कौन करेगा?
न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 18 जून की तारीख मुकर्रर की और इस दौरान दूरसंचार कंपनियों और डीओटी से हलफनामा दायर करने को कहा। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि वह हर दिन सोचते हैं कि उनके फैसले का किस तरह से उपयोग और दुरुपयोग किया गया है।
न्यायालय एक लाख 43 हजार करोड़ रुपए के एजीआर बकाये के भुगतान के लिए दूरसंचार कंपनियों को 20 साल का वक्त देने की डीओटी की अर्जी पर विचार कर रहा था। डीओटी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक बार में बकाये के भुगतान का दबाव बनाने से इन दूरसंचार कंपनियों की आर्थिक हालत खराब हो सकती है और इससे उपभोक्ताओं को दूरसंचार सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। मेहता ने कहा कि दूरसंचार सेवा पर इसका विपरीत असर देखने को मिल सकता है और उपभोक्ता को नुकसान उठाना पड़ सकता है। मोबाइल सेवा महंगी हो सकती है।
इस पर खंडपीठ ने 20 साल की अवधि का औचित्य जानना चाहा। उसने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि इस समय सीमा के भीतर बकाया प्राप्त हो ही जाएगा। डीओटी ने शीर्ष अदालत के 24 अक्टूबर 2019 के फैसले में संशोधन के लिए दरवाजा खटखटाया है ताकि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं से बकाए की वसूली के लिए किसी फॉर्मूले तक पहुंचा जा सके।