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ह्रदय रोगियों के उपचार में मित्तल हॉस्पिटल ने स्थापित किए नए आयाम - Sabguru News
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ह्रदय रोगियों के उपचार में मित्तल हॉस्पिटल ने स्थापित किए नए आयाम

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ह्रदय रोगियों के उपचार में मित्तल हॉस्पिटल ने स्थापित किए नए आयाम

नॉन स्टेंट और डबल किस क्रश तकनीक से किया ह्रदय रोगियों का उपचार
सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट एवं हार्टफेलियर एक्सपर्ट डॉ विवेक माथुर दे रहे हैं सेवाएं
अजमेर। ऐसे ह्रदय रोगी जिन्हें पहले से एक या एक से अधिक स्टेंट(छल्ला) लगा हुआ है और फिर से ह्रदय की धमनियों में रुकावट आ गई है उन्हें उपचार के लिए किसी बड़ी सर्जरी को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसे रोगियों का अब नॉन स्टेंट तकनीक से उपचार संभव है।

यूरोपियन हार्टफेलियर एसोसिएशन द्वारा लाइफ टाइम प्रमाणित हार्टफेलियर एक्सपर्ट सीनियर कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ विवेक माथुर अजमेर के मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में इस नई तकनीक से उपचार कर रहे हैं। डॉ विवेक माथुर ने विगत कुछ माह में ही अनेक ह्रदय रोगियों का नॉन स्टेंट तकनीक से सफल उपचार किया है।

डॉ विवेक माथुर ने बताया कि ड्रग इल्यूटिंग बैलून तकनीक जिसे नॉन स्टेंट तकनीक भी कहा जाता है। यूरोपियन व अमरीकन मापदण्डों से स्वीकृत बेहद कारगर तकनीक है। इस तकनीक में दवाई युक्त बैलून ह्रदय की रुकावट वाली धमनी में पहुंचाकर रुकावट वाली जगह फुला दिया जाता है। बैलून से दवाई रुकावट वाले स्थान पर धमनी में स्थापित हो जाती है जिससे रक्त का प्रवाह सामान्य हो जाता है। इस तकनीक से छोटी नाड़ी तथा हाथ एवं पैरों के ब्लॉकेज भी खोले जाते हैं। उपचार के बाद रोगी को 48 घंटे में छुट्टी दे दी जाती है।

उन्होंने बताया कि डेगाना नागौर निवासी रेलवे से रेफर उमानाथ नामक ह्रदय रोगी को जांच के उपरांत नई तकनीक से उपचार का परामर्श दिया गया। रोगी के पूर्व में स्टेंट लगे हुए थे। नॉन स्टेंट तकनीक से एंजियोप्लास्टी की गई। हृदय की खून की नली(धमनी) जिसमें रुकावट थी उसे खोला गया।

डॉ विवेक माथुर ने बताया कि यह सर्वे से प्राप्त आंकड़ा है कि एंजियोप्लास्टी करा चुके ह्रदय रोगियों में से 10 प्रतिशत रोगियों में स्टेंट लगाए जाने के छह से एक साल के अन्तराल में फिर से धमनी में रुकावट की शिकायत हो जाती है।

डबल किस क्रश तकनीक से किया ह्रदय रोगी का उपचार

डॉ माथुर ने बताया कि ऐसे ह्रदय रोगी जिनके रुकावट का स्थान धमनी में दो राहे पर होता है वहां इस तकनीक का उपयोग बहुत ही कारगर होता है। धमनी के दो राहे पर रुकावट होने की स्थिति में वहां एंजियोप्लास्टी के जरिए स्टेंट लगाया जाना जटिल होता है। ऐसे ह्रदय रोगियों को बाइफरकेशन लीजन तकनीक जिसे डबल किस क्रश तकनीक भी कहते हैं से उपचार किया जाना बेहतर विकल्प उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर पर नॉन स्टेंट और बाइफरकेशन लीजन इन दोनों ही तकनीक से उपचार कर अनेक रोगियों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाया गया है।

परबतसर नागौर के रहने वाले शिक्षा सेवा में कार्यरत जगदीश सिंह ऐसे ही एक रोगी हैं जिनका डबल किस क्रश तकनीक से ह्रदय रोग का उपचार किया गया। जगदीश सिंह ने दूरभाष पर जानकारी दी कि वे उपचार के बाद अच्छा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम(आरजीएचएस) के अन्तर्गत उनका उपचार हुआ।