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MLA Garasia claims, he arise Mount problem More effectively in monitoring committee than Vidhansabha! - Sabguru News
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विधानसभा में समस्या उठा नहीं पा रहे पिंडवाड़ा विधायक मोनिटरिंग कमिटी में उठाएंगे!

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विधानसभा में समस्या उठा नहीं पा रहे पिंडवाड़ा विधायक मोनिटरिंग कमिटी में उठाएंगे!
माउंट आबू

परीक्षित मिश्रा

सबगुरु न्यूज-सिरोही। भारत में दंतयुक्त दो सबसे बड़े सदन और कानून बनाने वाली संस्थान में से एक का हिस्सा होकर पिछले 4 साल में माउंट आबू की एकाध समस्या को छोड़कर मूल समस्या नहीं उठा पा रहे पिंडवाड़ा-आबू के विधायक समाराम गरासिया के बयान को इस बात का दावा माना जा सकता है कि वो मोनिटरिंग कमिटी में होते तो माउंट आबू को समस्या मुक्त करवा दिए होते।

उनका दावा रहा कि उन्हें सांसद और जिला प्रमुख को माउंट की मॉनिटरिंग कमिटी में नामित किया जाता तो वो चिराग में जिन्न की तरह माउंट आबू की समस्याओं को खत्म कर देते। जो विधायक मीडिया में इसलिए छाए रहे कि  उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ अपना ट्वीट डिलीट कर लिए थे उनका दावा है कि वो मोनिटरिंग कमिटी का हिस्सा बनते तो कांग्रेस राज में माउंट आबू की समस्या का निराकरण करवा लेते।

उनका ये दावा है कि जिन सांसद का सोशल मीडिया पर माउंट आबू की लिमबड़ी कोठी के अनियमित निर्माण का मामला उठाने को लेकर उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं के भी काम करने की बात कहने का वीडियो वायरल हुआ था, वो माउन्ट आबू के लोगों की आवाज सन्सद की बजाय मोनिटरिंग कमिटी में ज्यादा पुरजोर तरीके से उठा पाएंगे।
विधायक समाराम गरासिया शायद भूल रहे हैं कि सांसद देवजी पटेल और उनकी मौजूदगी वाली मोनिटरिंग कमेटी में ही उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में स्थानीय समिति का गठन किया गया था। जिस पर एकाधिकार जमाते हुए पूर्व उपखण्ड अधिकारी गौरव सैनी, अभिषेक सुराणा और सबसे ज्यादा कनिष्क कटारिया ने माउंट आबू के लोगों का उत्पीड़न किया और मरम्मत सामग्री के लिए भी तरसा दिया।

लिमबड़ी कोठी को आनियमित सामग्री वितरण सांसद और विधायक गरासिया की सहमति से गठित उपसमिति के अध्यक्ष ने अकेले ही दी, जिसका विरोध जताने में सांसद की नाकामी उनके वायरल वीडिओ में दिख रही है।

– मोदी सरकार के विरोध पर उतारू!
समाराम गरासिया ये भूल रहे हैं कि मोनिटरिंग कमिटी के निर्माण की अधिसूचना केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय करता है। इस मोनिटरिंग कमिटी की अधिसूचना भी केंद्र की मोदी सरकार ने किया है। अगर वो ये जानते हैं कि मोनिटरिंग कमिटी केंद्र सरकार गठित करती है तो मोनिटरिंग कमिटी के गठन का विरोध करके पिंडवाड़ा विधायक सीधे तौर पर मोदी सरकार के विवेक पर अंगुली उठा रहे हैं।

पूर्व और वर्तमान समितियों में केंद्र सरकारों ने राज्य सरकार को तीन स्थानीय सदस्य नामित करने के अधिकार दिए गए हैं। भाजपा राज में नामित सदस्यों के रूप में भाजपा के पदाधिकारी नामित किये गए थे अब कांग्रेस राज है तो कांग्रेस के लोगों को नामित किया गया है। खुद समाराम गरासिया भाजपा राज में कांग्रेस के सदस्यों को नामित करवाकर मोनिटरिंग कमिटी के राजनीतिकरण किये थे तो अभी इस मुद्दे पर बोलने का उन्हें नैतिक कारण बनता नहीं है। इतना ही नहीं भाजपा राज वाली मोनिटरिंग कमिटी को तो नए निर्माणों की इजाजत देने का भी अधिकार था। लेकिन सन्सद देवजी पटेल और विधायक समाराम गरासिया माउंट आबू के आम आदमी को उनके जर्जर भवनों के निर्माण करवाने की इजाजत नहीं दिलवा पाए।
सूचना के अधिकार के तहत निकाले गए दस्तावेज़ों से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि इनकी मौजूदगी वाली समिति में आम आदमी की जगह ताकतवर लोगों और इनके संगठनों के भवनों को ही ज्यादा राहत दी है।  मॉनिटरिंग कमिटी चाहे भाजपा राज में बनी हो या कांग्रेस राज में इसमें नेताओं की संख्या सरकारी कर्मचारियों से कम ही होती है, इनमे बहुमत सरकारी कर्मचारियों का ज्यादा इसलिए रखी गई है कि इन नेताओं के गैर कानूनी प्रस्तावों को अधिकारियो का बहुमत अस्वीकृत कर सके और जवाबदेही भी बनी रहे।
-दूसरी मोनिटरिंग कमिटी में भी केंद्र ने नहीं दिया है स्थान
एक बार को मान लिया जाए कि माउंट आबू की मॉनिटरिंग कमिटी का राज्य सरकार ने राजनीतिकरण कर दिया। उनके अनुसार माउंट आबू की मॉनिटरिंग कमिटी में सांसद, उन्हें और जिला प्रमुख को स्थान नहीं दिया गया। तो इसमे नहीं जिले में माउंट आबू सेंच्युरी के बाहर पड़ने वाले ईको सेंसेटिव जोन के 2020 को निकाले निटिफिकेशन की मोनिटरिंग कमिटी में भी सांसद, पिंडवाड़ा व रेवदर विधायक, और जिला प्रमुख को जगह नहीं दी गई है। जबकि इस वाले ईको सेंसटिव जोन में आबू-पिंडवाड़ा और रेवदर विधानसभा के 54 गांव आते हैं। (इस खबर के लिए इस लिंक पर क्लिक करें) (https://www.sabguru.com/18-22/notification-from-meof-for-eco-sensitive-zone-imposed-in-54-villages-of-sirohi-district-viraled-on-social-media/)

मोदी सरकार ने इनमे पालिकाध्यक्ष और प्रधानों को जगह दी है लेकिन सांसद, विधायक और जिला प्रमुख को स्थान नहीं दिया। दूसरी मोनिटरिंग समिति के नोटिफिकेशन के अनुसार सिरोही के जिला कलेक्टर इसके अध्यक्ष  और माउंट आबू वन्यजीव सेंच्युरी से उप वन संरक्षक इसके सदस्य सचिव बनाये गए हैं। इनके अलावा माउंट आबू, पिंडवाड़ा और रेवदर के उपखंड अधिकारी, माउंट आबू के वन्यजीव वार्डन, आबूरोड नगर पालिका का अध्यक्ष तथा आबूरोड, रेवदर और पिंडवाड़ा के प्रधान इसके सदस्य बनाये हैं। इनके अलावा राज्य सरकार द्वारा नामित तीन सदस्य बनाये जाएंगे।
कायदे से समाराम गरासिया को मोनिटरिंग कमिटी में स्थान चाहिए तो केंद्र सरकार के पास जाना चाहिए। दूसरा अगर वाकई वो माउंट आबू या उनकी विधानसभा के ईको सेंसेटिव जोन में पड़ने वाले 22 गांवों के लोगों की मदद करना चाहते हैं तो प्रदेश के सबसे बड़े सदन विधान सभा में खुद और देश के सबसे बड़े सदन लोकसभा सांसद से यहां अफसरशाही के द्वारा पैदा की जा रही मूल समस्याओं को निरंतर उठाए। इससे वो यहां के।लोगों।को ज्यादा राहत दिलवा पाएंगे। जोनल मास्टर प्लान और बिल्डिंग बायलॉज लागू होने का बाद दंतविहीन हो चुकी मोनिटरिंग कमिटी जैसी समिति का हिस्सा बनके वो कुछ नहीं कर पाएंगे।