नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि कोरेाना के संक्रमण से मरने वाले व्यक्तियों के शवों को दफनाना और दाह संस्कार करने के अलावा कोई दूसरा उचित तरीका नहीं है।
पारसी समुदाय की ओर से कोविड-19 से मरने वालों के शवों को दफनाने और दाह संस्कार करने के दिशा निर्देश पर सवाल खड़े करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार ने यह जवाब दिया है।
केंद्र सरकार ने इस वैश्विक महामारी से मरने वाले पारसी समुदाय के सदस्यों के लिए एक पारंपरिक दफन के लिए दायर एक याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण से मरने वालों के शवों को अच्छी तरह से दफनाया या दाह संस्कार नहीं किया गया तो उनके पर्यावरण और जानवरों के संपर्क में आने की संभावना है।
सरकार ने अपने हलफनामे में वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (आईईओ) की इस राय का हवाला देते हुए कहा कि जिन लोगों को कोविड वायरस से संक्रमित होने का संदेह या पुष्टि होती है, उन्हें वन्यजीवों सहित जानवरों के साथ सीधे संपर्क से बचना चाहिए।
सूरत पारसी पंचायत बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने कोविड से मरने वालों के संबंध में दिशानिर्देशों पर सवाल उठाया था। उन्होंने शवों को दफनाने और दाह संस्कार करने को पारसी समुदाय की परंपरा के विरुद्ध बताया है।
नरीमन के अनुसार पारसी धर्म मानने वालों के शव को दफनाने की अनुमति नहीं है। ऐसे में शवों को दफनाना या दाह संस्कार करना अनुचित है। सरकार ने कहा कि ओआईई ने इस बात पर भी जोर दिया है कि जंगली या घरेलू जानवरों में सार्क-सीओवी-2 वैध चिंताएं हैं, जो निरंतर सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती हैं।
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में अदालत को बताया है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के परामर्श से कोविड पॉजिटिव व्यक्तियों के शवों के निपटान के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि शव को पूरी तरह से ढंका जाएगा और किसी भी स्तर उसे खुला नहीं रखा जाएगा।
सरकार के हलफनामे में कहा कि अब तक सामने आए वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार कोरोना वायरस शव, शव के तरल पदार्थ, स्राव और शव की नम कोशिकाओं में नौ दिनों तक जीवित रह सकता है।