परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने हाल ही मे पीडब्ल्यूडी को गुलाबगंज-माउण्ट आबू मार्ग बनाने की संस्तुति की थी। पीडब्ल्यूडी ने इसकी स्टेटस रिपोर्ट अतिरिक्त मुख्य अभियंता को भेजी। इस स्टेटस रिपोर्ट में ही इसके नामुमकिन सा मुश्किल होने का भेद छिपा है।
लम्बे अर्से से माउण्ट आबू के पीछे की तरफ स्थित रेवदर तहसील के जैन तीर्थ ट्रस्टों समेत माउण्ट आबू व्यवसाय के लिए जाने वाले भी एक टूरिस्ट सर्किट के निर्माण के लिए इस मार्ग को बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसे संयम लोढ़ा ने आगे बढ़ाया।
-क्या है स्टेटस रिपोर्ट में?
गुलाबगंज से माउण्ट आबू जाने वाला मार्ग करीब 23 किलोमीटर लम्बा बताया गया है। वर्तमान में यहां पर 6 किलोमीटर बीटी रोड, दो किलोमीटर टूटी हुई ग्रेवल रोड और शेष 15 किलोमीटर कच्चा मार्ग है। इस स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया कि 1990 से पहले अकाल राहत कार्य में आठ किलोमीटर से 23 किलोमीटर तक के मार्ग के कच्चे मार्ग का निर्माण किया गया था।
लेकिन जीरो प्वाइंट से छह किलोमीटर से 23 किलोमीटर तक का मार्ग माउण्ट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में पडऩे के कारण वन विभाग ने इस सडक़ निर्माण कार्य को रोक दिया। उनकी दलील थी कि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की क्लीयरेंस लाए तो यह बन पाएगा। स्टेटस रिपोर्ट में लिखा है कि क्लीयरेंस और निर्माण के लिए पत्र वन विभाग को लिखा गया, लेकिन अब तक अनुमति नहीं मिली।
-इसलिए है मुश्किल
अब इस मार्ग के बनाने में आने वाली तकनीकी बाधा को समझिए। यह मार्ग गुलाबगंज से निकलेगा और गुरुशिखर मार्ग पर मिनी नक्की लेक के पास खुलेगा। यह पूरा मार्ग माउण्ट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के ब्लॉक नम्बर 2 से निकलेगा। यह इलाका भालुओं और तेंदुओं समेत अन्य वन्यजीवों के विचरण और रहने का इलाका है।
कई गुफाएं हैं, इस मार्ग पर। इस मार्ग के निर्माण के लिए इस घने जंगल में कई पहाडिय़ां काटनी और दस हजार से ज्यादा पेड़ों की बलि देनी होगी। ऐसे में इसके लिए नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड, सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से पर्यावरण क्लीयरेंस लेनी होगी।
जब हजारों लोगों के मकान निर्माण और मरम्मत पर लगी पाबंदी को सरकार तीन दशक से क्लीयर नहीं करवा पाई है तो सिर्फ पर्यटन के लिए इस मार्ग की अनुमति मिलना नामुमकिन से कम नहीं है। यही कारण है कि केन्द्र सरकार द्वारा किवरली से गुरु शिखर तक के बीच टू-वे भारतमाला प्रोजेक्ट को भी फिलहाल अनुमति नहीं मिल पाई है।
इतने नुकसान की कीमत पर एक मार्ग होते हुए दूसरे मार्ग के निर्माण की अनुमति सिर्फ इसलिए तीनों ही संस्थाएं, सुप्रीम कोर्ट और पर्यावरण प्रेमी नहीं लेने देंगे कि इससे टूरिस्ट सर्किट बनाना है। इसके अलावा इस मार्ग की लागत जो पीडब्ल्यूडी ने 21.45 करोड़ बताई है यह वन भूमि के अधिग्रहण, पहाडिय़ों को नुकसान, पेड़ों की कटाई के हर्जाने से हजार करोड़ रुपये पार जाएगी।
इतनी कीमत पर सरकार खुद भी इस प्रोजेक्ट में हाथ डालने से घबराएगी, जबकि पूर्ववर्ती सरकार ने दो सौ करोड़ रुपये लागत होने पर ही हजारों लोगों के पेयजल की सुविधा दिलवाने वाले सालगाव प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।