धारा 370 एकांगी बदरंगी थी
सत्तर सालो से रक्त – सनी
कश्मीरी फिज़ा दुरंगी थी।।
स्वर्णिम प्रभात तब भारत का
सन् सैंतालिस में देखा था।
स्वर्गिक प्रभात अब भारत का
सन् उन्नीस में देखा है।।
तब अगस्त अब भी अगस्त
तब लुटे लुटे और बँधे बँधे
अब मुक्त हुए सब हँसे हँसे।।
यह महामानव का महत्कायॆ
जन -जन को है स्वीकार्य ।।
ह्यूमन राइट्स ह्यूमन राइट्स
सच में है सबका अधिकार।।
जब सबके रक्त का रंग एक।
क्यों मजहबी रोटियाँ सेक।
पाक की नापाकी को सहना।
अपने अंग को कटते देखना।।
ये आस्तीन के नाग विषैले।
पत्थरबाज़ महा जहरीले ।।
भारत का अन्न ये खाते हैं।
फिर भी देखो घुर्राते हैं।।
नहीं इरादे नेक थे इनके।
वीर जवान अधीन थे इनके।।
आये दिन होता था हमला।
अब जब धारा को बंद किया
तो करते फिरते हो हल्ला।।
अब बहुत हो चुकी बर्बादी ।
सुख चैन चाहती आबादी ।।
कश्मीरी – आंसू का मूल्य
बस मोदी ने पहचाना है ।
एक विधान और एक निशान।
फिर क्यों कैसी अलग पहचान
एक देश है एक वेश है ।
तभी तो एक विधान पेश है।।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन।
सर्वत्र स्वतन्त्र अब विचरण।।
नमो नमो विकासाय भारतम्।
नमो नमो रक्षाय भारतम् ।
वंदेमातरम् , वंदेमातरम्।।
स्वरचित :डाॅ.रेखा सक्सेना