सिरोही। सिरोही जिले में माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों की कार्यप्रणाली ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अशोक गहलोत सरकार और कांग्रेस पर हमलावर होने का मौका दिया। पिछले साढ़े तीन साल में गहलोत सरकार द्वारा माउंट आबू में लगाए गए उपखण्ड अधिकारियों के द्वारा कोई ऐसा माइलस्टोन काम नहीं किया गया है जिससे अशोक गहलोत सरकार यहां पर खुद को साबित कर सके।
इनकी कार्यप्रणाली यहां आने वाले दूसरे प्रदेश के पर्यटकों में गहलोत सरकार के विकास और जनहित की बजाय अव्यवस्था के ब्रांड अम्बेसडर के रूप में ज्यादा नजर आई।
माउंट आबू प्रवास के दौरान स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग में और बाद में होटल व्यवसाई द्वारा वसुंधरा राजे को बताया गया कि किस तरह स्थानीय अधिकारी बिल्डिंग बायलॉज के तहत स्थानीय लोगों को मिले अधिकारों का हनन कर रहे हैं और माउंट आबू में पिछले तीन सालों में एक भी डवलपमेन्ट काम नहीं किया गया है। जिससे राजे को ये कहने का मौका मिला कि ‘कांग्रेस की सरकार वैसे भी धीमी चलती है, कभी-कभी चलती ही नहीं है।’
तीन उपखण्ड अधिकारियों की शून्य उपलब्धि
माउंट आबू में पिछले तीन उपखण्ड अधिकारियों की यहां के विकास और जनहित को लेकर भूमिका में शून्य भूमिका रही है। नई पोस्टिंग ओर जो नवाचार की अपेक्षा एक नए अधिकारी से सरकार और जनता को रहती है उसमें ये नए आईएएस अधिकारी पूरी तरह से फेल रहे हैं।
गौरव सैनी से लेकर वर्तमान उपखण्ड अधिकारी कनिष्क कटारिया तक लंबे समय तो आयुक्त का कार्य भी इन्हीं के पास रहा है। दोनों पद रहते हुए भी ये लोग एक काम काम ऐसा नहीं करवा पाए जिससे अन्य राज्यों से आए पर्यटकों में ये सन्देश जाए कि कांग्रेस की कोई डवलपमेंटल अप्रोच है।
हां, अभिषेक सुराणा के उपखण्ड अधिकारी रहते हुए महात्मा गांधी की मूर्ति जरूर लगी, लेकिन वो भी ऐसी थी कि कहीं से गांधी लग नहीं रहे। वैसे इस समय आयुक्त का पदभार सुराणा के पास नहीं था।
वसुंधरा राजे के कार्यकाल में लगे उपखण्ड अधिकारियों में से अरविंद पोसवाल ने टोल नाके से एमके चौराहे तक गमलों और पौधों लगवाए जो इस मार्ग के दोनो तरफ सौंदर्य बढ़ा रहे हैं। जिनके बाद सुरेश ओला ने नक्की परिक्रमा पथ जैसे एक विजनरी प्रोजेक्ट दिया जिसे लोग आज भी सराहते हैं।
उसी कार्य को राजे के कार्यकाल में रविन्द्र गोस्वामी ने आगे बढ़ाया और रोज गार्डन का काम शुरू करवाया। ये बात अलग है कि ये काम गहलोत सरकरा में पूरा हुआ और इसके उदघाटन का श्रेय कांग्रेस ले गई। लेकिन इस प्रोजेक्ट का विजन गहलोत सरकार द्वारा लगाए उपखण्ड अधिकारियों का नहीं था। इतना ही नहीं उस समय लगे कलेक्टर्स ने भी माउंट आबू में नवाचार करने और लोगों की समस्याओं के निस्तारण में पूरी भूमिका निभाई।
इस तरह अटकाए गहलोत सरकार में काम
माउंट आबू में गौरव सैनी, अभिषेक सुराणा और कनिष्क कटारिया के समय में कोई भी डवलपमेंटल वर्क नहीं किया गया न ही नगर पालिका में किसी तरह का कोई काम हुआ। जिसके कारण गहलोत सरकार और कांग्रेस के पास माउंट आबू को लेकर वसुंधरा राजे के हमले का कोई जवाब नहीं है। भाजपा शासन में वसुंधरा राजे सरकार ने न सिर्फ जोनल मास्टर प्लान लागू किया बल्कि बिल्डिंग बायलॉज़ को भी सिर्फ 7 दिन के न्यूनतम समय में गजट नोटिफिकेशन करवा दिया।
लेकिन इस बिल्डिंग बायलॉज में कुछ तकनीकी खामियां रह गईं थी। कांग्रेस सरकार आई तो लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बामनवाड़ जी में बिल्डिंग बायलॉज लागू करवा दिया। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बायलॉज को आयुक्त के पद पर रहते हुए गौरव सैनी ने अटका दिया और कनिष्क कटारिया ने 25 अप्रैल 2022 को बिल्डिंग बायलॉज़ को अंतिम रूप मिल जाने पर भी उसको नोटिफिकेशन के नाम और अटका दिया, जिसे वर्तमान आयुक्त शिवपालसिंह भी ये जानते हुए अटकाए हुए हैं कि ये मुख्यमंत्री की मंशा है।
गंदगी का आलम है है कि सालाना 5 करोड़ रुपए कमाकर देने वाली नक्की पर जहां तीन समय सफाई होकर कचरा उठाना चाहिए वहां सुबह सात-आठ बजे तक कचरे का ढेर सड़ांध मारता रहता है और सफाई नहीं होती। सूरत से आए एक पर्यटक ने माउंट आबू को अपना सबसे फेवरेट हिल स्टेशन बताते हुए सबगुरु न्यूज से हुई बात में इस खूबसूरत जगह पर बदहाल ट्रैफिक और गंदगी के आलम पर दुख जताया।
इस गंदगी को लेकर भी वसुंधरा राजे ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया था। कुल मिलाकर उपखण्ड अधिकारियों और आयुक्तों ने माउंट आबू में मरणासन्न पड़ चुकी भाजपा को खाद देने के लिए वो हर काम कर दिया जिससे गहलोत सरकार और कांग्रेस को विफल साबित करने के भाजपा के 2023 के एजेंडे को खाद मिल सके। गहलोत सरकार में बस एक काम बड़े मन से किया और वो है सत्त्ताधारी नेता के बेटे के नाम से आवेदित लिमबड़ी कोठी में अपने संरक्षण में ईएसजेड के प्रावधानों के विपरीत जाकर निर्माण कार्य करवाने का।