मृत्यु भोज का आमंत्रण | मृत्यु भोज एक ऐसी भारतीय परम्परा जो सदियों से चली आ रही है पर इस परम्परा का आरंभ क्यों हुआ जिसके कारण मृत्यु के पश्चात लोगो को इस भोज में आमंत्रित किया जाता है माना जाता है किसी व्यक्ति के मारने के पश्चात उसे चाहने वाले उसके घर पहुंचकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की प्रभु इनकी आत्मा को शान्ती प्रदान करे।
यदि यह प्रार्थना मन से की जाती है तो उस व्यक्ति की आत्मा प्रसन्न होती है ऐसा मानते है और परवार वालो की जिम्मदारी होती है कि वो उन लोगो को जिन्होंने तेरह दिनो तक उसकी शांति की कामना की है इसीलिए उस मरने वाले की तरफ से इन लोगो को यह भोज कराया जाता है और यदि न कराए तो उन लोगो को दुख होता है जिन्होंने मन से प्रार्थना की थी परन्तु ऐसे कितने लोग होंगे जिन्होंने मन से प्रार्थना की और प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसकी आत्मा को शांति दे दी किसी को नहीं पता यह तो सब अपने मन में जानते है।
लेकिन मृत्यु भोज वहीं पचा सकता है जिसने मन से प्रार्थना की है और यदि नहीं की तो इसे न किया जाय क्योंकि यह भोजन कष्टकारी होता है और इसका परिणाम हम को तब मिलता है जब हमारी मृत्यु होने पर कोई ईश्वर से मन से प्रार्थना न करे और हमे शांति न मिले और वह भोजन भी ग्रहण कर जाए इस तरह यह एक समस्या बन गई है जिसके कारण ये मेरे हुए लोग शांति न मिलने के कारण दूसरो की शान्ति को भंग करने का प्रयास करते हैं चाहे सफल न हों और उनके मरने की प्रार्थना ईश्वर से करते है जिनके कारण यह भटक ते है
यदि इनकी प्रार्थना उचित है तो उसे प्रभु पूरी करवाते हैं जिसके लिए वो उन मूर्ख लोगो का सहारा लेते है जो कंगाल होते है और जीने के लिए इनकी हत्या भी करते हैं चाहे लूटपाट के कारण हो या किसी और कारण इसलिए मृत्यु भोज में तभी जाए जब आपकी प्रार्थना सच्ची हो नहीं तो परिणाम ऐसा भी हो सकता है कि आपका मृत्यु भोज कार्यक्रम ही न हो सके मरने के पश्चात और आप दूसरों के लिए प्रार्थना करे।
शुभम् शर्मा (स्वतंत्र टिप्पणीकार)