अजमेर। राजस्थान में अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की नगरी में मंगलवार को मुस्लिम संप्रदाय करबला के मंजर को याद करते हुए गमगीन माहौल के बीच परंपरागत मोहर्रम की रस्में अदा की गईं।
मोहर्रम की अंतिम 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की याद में जहां विभिन्न क्षेत्रों की मस्जिदों के साथ दरगाह शरीफ से ताजियों की सवारी निकाली गई वहीं करबला के मंजर को साकार करते हुए तलवारों से परंपरागत तरीके से अंदरकोट में हाईदौस भी खेला गया।
हिंदुस्तान में हाईदौस की यह परंपरा केवल अजमेर में ही निभाई जाती है। इसके अलावा यह रस्म पाकिस्तान में भी अदा की जाती है। हाईदौस खेलने से पहले प्रशासनिक स्वीकृति से तोप भी दागी गई। इसी दौरान तलवारों से हाईदौस खेलने के दौरान घायल हुए मुस्लिम युवकों का मौके पर ही उपचार किया गया।
इधर, खादिमों की संस्था अंजुमन की ओर से तैयार चांदी के ताजिए की जियारत का सिलसिला दिनभर जारी रहा। दरगाह के निजाम गेट पर शाम चार बजे मौरूसी अमले ने शागिर्द पेश किया तथा हमीद उस्ताद के अखाड़े के पट्टेबाजों ने प्रदर्शन किया। चांदी के ताजिए की सवारी का जुलूस पूरी रात क्षेत्र में घूमा और तड़के सुबह चार बजे दरगाह स्थित झालरे में इसे सैराब करने की परंपरा निभाई गई।
इसी के साथ मोहर्रम और मोहर्रम के मौके पर आयोजित मिनी उर्स का विधिवत समापन हो गया। लेकिन मुस्लिम संप्रदाय मोहर्रम की एक तारीख से चालीस दिन तक गमगीन माहौल में ही रहेगा और ‘चेलम’ के बाद मुस्लिम परिवारों में खुशियां लौट सकेंगी।