विजय सिंह
चुनावी मौसम में आम जनता को लुभाने को उतावली अशोक गहलोत सरकार नित नई योजनाओं और घोषणाओं के जरिए राहत का पिटारा खोल रही है। आचार संहिता लागू होने से पहले इन योजनाओं को धरातल पर लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारियों को सख्ती से झोंक दिया गया है। इन योजनाओं से सरकार के पक्ष में कितना माहौल बनेगा यह भविष्य के गर्त में छिपा है।
हाल ही में 6 सितंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भीलवाड़ा में राज्य के पशुपालकों के लिए कामधेनु योजना का शुभारंभ किया। दीगर बात यह है कि जिन पशु चिकित्सकों को इस योजना को अमलीजामा पहनाना है वे अपनी बहु प्रतीक्षित नॉन प्रैक्टिस एलाउंस की मांग को लेकर अड गए हैं। यानी जब तक पशुचिकित्सकों को उनका हक नहीं मिल जाता तब तक मुख्यमंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना एक कदम भी आगे नहीं बढ सकेगी।
बतादें कि कामधेनु बीमा योजना के अंतर्गत 80 लाख पशुओं का निःशुल्क बीमा किया जाना है। बीमा योजना लागू करने में सरकार ने 750 करोड़ रुपए खर्च किए जाने का प्रावधान किया है। इस बीमा योजना की जिम्मेदारी पशु-चिकित्सकों पर ही है। पशु चिकित्सक ही पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण कर प्रमाणपत्र जारी करेंगे साथ ही अन्य बीमा सम्बंधित कार्यवाही के सूत्रधार रहेंगे।
पशु चिकित्सकों की बहु प्रतीक्षित मांग नॉन प्रैक्टिस एलाउंस की रही है। जिसके लिए प्रदेश में पशु चिकित्सकों ने आंदोलन भी चलाया गया था। मुख्यमंत्री कार्यालय एवं पशुपालन मंत्री लाल चंद कटारिया तब उन्हें भरोसा दिया था कि वित्त विभाग ने उनकी मांग पर विचार विमर्श कर लिया है और जल्दी ही मुख्यमंत्री उन्हें उनका हक दिलवाएंगे।
इधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कामधेनु पशु बीमा योजना के साथ पशु चिकित्सकों की मुख्य मांग नॉन प्रैक्टिस एलाउंस की घोषणा नहीं की। इससे पशुचिकित्सक ठगे से रह गए। अब असंतोष का आलम यह है कि सरकार को उसकी हठधर्मिता का करारा जवाब देने के लिए पशुचिकित्सक लामबंद हो गए हैं। राजस्थान के दोनों पशु चिकित्सा संघों ने दो टूक कहा है कि पहले सरकार पशु चिकित्सकों की मांग पूरी करे उसके बाद योजना पर अमल होगा।
राजस्थान पशु-चिकित्सक संघ के प्रदेशाध्यक्ष डॉ रमेश चौधरी और वेटनरी डाक्टर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डॉ इंद्रजीत सिंह ने इस मुद्दे पर एकराय जाहिर करते हुए कहा है कि जब तक सरकार नॉन प्रैक्टिस एलाउंस की घोषणा नहीं करेगी तब तक सरकार की हर योजना का बहिष्कार किया जाएगा। मुख्यमंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना में करीब 80 लाख पशुओं का बीमा होना है। इस कार्य को मूर्तरूप देने के लिए पशुचिकित्सकों को पशुपालकों के घर घर जाना होगा। इसमें समय और श्रम दोनों लगेंगे। राजस्थान के दोनों संघों की ओर से आह्वान किया गया है कि जब तक एनपीए के आदेश राज्य सरकार पारित नहीं करती है तब तक एक भी पशु का बीमा नहीं किया जाएगा।
सरकार को समझ लेना चाहिए कि पशुपालन विभाग के पशु-चिकित्सकों के बूते ही गोपालन विभाग का कार्य भी हो रहा है। इस नाइंसाफी को भी पशु चिकित्सक झेल रहे हैं। पशुपालन विभाग के मंत्री लालचंद कटारिया तथा गोपालन विभाग के मंत्री प्रमोद जैन भाया के लिए पशुचिकित्सकों की मांग की अनदेखी भविष्य में सरकार की किरकिरी का कारण बनेगी। गोपालन विभाग के पास पशुचिकित्सकों की कोई टीम नहीं है ऐसे में सरकार के अडियल रवैये के चलते 2000 पशु चिकित्सक बहिष्कार के ऐलान पर कायम रहे तो समय पर सत्यापन ना होने से गौशालाओं का अनुदान भी रुक जाएगा।