कोटा। राजस्थान में कोटा के दोनों नगर निगमों के चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के उन प्रत्याशियों के लिए आज का दिन काफी अहम रहा जहां कुछ कार्यकर्ता अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय रूप में अपना नामांकन भर के बगावत करने पर आमादा हैं।
हालांकि ऐसे प्रत्याशियों को मनाने के लिए अभी रात और कल दोपहर तक का समय ही बचा है क्योंकि कल नाम वापसी का आखिरी दिन है। कोटा के उत्तर और दक्षिण नगर निगमों ऐसे एक दर्जन से भी अधिक वार्ड है जहां काफी प्रयासों के बावजूद टिकट नहीं मिलने से खफा कार्यकर्ताओं ने अपनी-अपनी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ नामांकन पर्चा भरके ताल ठोक दी है। हालांकि दिन भर कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता ऐसे नाराज कार्यकर्ताओं से संपर्क करने में जुटे रहे।
कोटा के जिन दोनों नगर निगमों के वार्डो में बागियों ने अपना पर्चा दाखिल किया है, उनमें से अधिकतर सीटें सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित श्रेणी की हैं। खास बात यह है कि फिलहाल बागी के रूप में अपना नामांकन पर्चा दाखिल करने वाले प्रत्याशियों में ज्यादातर युवा वर्ग से हैं।
दोनों राजनीतिक दलों से बगावत करके अपने-अपने वार्डों में निर्दलीय के रूप में दावेदारी जताने वाले कार्यकर्ताओं से बातचीत करने पर यह बात सामने आई है कि लगातार पूरी निष्ठा के साथ पार्टी और अपनी-अपनी पार्टियों के कुछ प्रभावशाली नेताओं के निरंतर संपर्क में रहने, पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने के बावजूद उनकी उपेक्षा की गई। कुछ बागियों का यह भी आरोप था कि उनके वार्ड में बाहरी प्रत्याशियों को थोपा गया है अथवा सामान्य वर्ग की सीट पर आरक्षित उम्मीदवार को टिकट दे दिया गया है।
दिनभर की कोशिशों के बाद दोनों ही राजनीतिक दलों के नेताओं को कुछ प्रत्याशियों के तेवर ढीले पड़ने से कुछ राहत महसूस हुई है और नेताओं को उम्मीद है कि कुछ और कोशिशों के बाद रात तक ये प्रत्याशी अपना नाम वापस लेने को सहमत हो जाएंगे। हालांकि कल नाम वापसी तक अधिकृत प्रत्याशियों की सांसें अटकी रहेगी।
दोनों पार्टियों के राजनेता और अधिकृत प्रत्याशी इन बागी तेवर वाले प्रत्याशियों को मनाने के लिए उनके निकट संबंधियों, रिश्तेदारों और मित्रों तक का सहारा ले रहे हैं। भाजपा ने तो इन नाराज प्रत्याशियों को मनाने के लिए दोनों नगर निगम के 14 मंडलों में अपनी कुछ वरिष्ठ नेताओं को बातचीत करने के लिए कल ही समन्वयक नियुक्त कर दिये थे और वे इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए आज दिन भर सक्रिय भी रहे। ऐसे नेताओं में दो पूर्व महापौर भी शामिल हैं।
उधर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के नेता बगावती तेवर वाले कार्यकर्ताओं को यह कहकर समझा जा रहे हैं कि पार्षद का टिकट नहीं मिला तो उन्हें अन्य पदों पर समायोजित किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि नगर निगम में चुनाव के बाद पार्षद मनोनीत होंगे। नगर विकास न्यास जैसे अन्य कई संस्थान ऐसे हैं जहां राजनीतिक नियुक्तियां दी जा सकती हैं।