लखनऊ। अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के खिलाफ आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने पुर्नविचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया है।
लखनऊ के मुमताज पीजी कालेज में रविवार को बोर्ड की हुई एक बैठक में फैसला लिया गया कि मुसलमानों को अयोध्या में अन्य स्थान पर मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन की कोई जरूरत नहीं है बल्कि उसे विवादित ढांचे की जमीन ही मस्जिद के लिए चाहिए।
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जिलानी ने बैठक में लिए गए निर्णयों के बाबत यहां पत्रकारों को बताया कि बाबरी मस्जिद की जमीन के लिए मुस्लिम पक्ष की ओर से मौलाना महफूजुर्रहमान, मोहम्मद उमर और मिस्बाहुद्दीन पुर्नविचार याचिका दाखिल करेंगे। पुर्नविचार याचिका दाखिल करने के लिये 30 दिनों का समय होता है और इस समयावधि के भीतर मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट की शरण में फिर जाएगा।
उन्होंने कहा कि शरीयत के मुताबिक मस्जिद की जमीन के बदले मुसलमान कोई अन्य भूमि स्वीकार नहीं कर सकते। मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे बल्कि उन्होंने मस्जिद की जमीन वापस लेने के लिए अदालत की शरण ली थी।
जिलानी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुर्नविचार याचिका दाखिल करना मुसलमानों का संवैधानिक अधिकार है। इसे उच्चतम न्यायालय के फैसले की अवहेलना कहना कतई उचित नहीं होगा।
बाेर्ड को लगता है कि मंदिर मस्जिद जमीन विवाद में न्यायालय ने कुछ तथ्यों पर गौर नहीं किया। पुर्नविचार याचिका का क्या अंजाम होगा, इसकी परवाह किए बगैर मुस्लिम पक्ष अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग जरूर करेगा।
जमीनी विवाद के मुख्य पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड के बैठक में हिस्सा नहीं लिए जाने के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि यह किसी बोर्ड का मसला नहीं है बल्कि यह मुकदमा मुसलमानो ने दायर किया था और जब मुस्लिम इस फैसले से संतुष्ट नहीं है तो पुर्नविचार याचिका दाखिल करना जरूरी हो गया है। उन्हें भरोसा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड भी एआईएमपीएलबी के निर्णय से एतबार रखेगा।
राम मंदिर के पक्ष में बाबरी मस्जिद मुद्दई इकबाल अंसारी के बयान को राजनीति से प्रेरित बताते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन का अयोध्या के मुसलमानों पर खासा दवाब है कि वे फैसले के खिलाफ अपना मुंह कतई न खोलें।
जिलानी ने कहा कि अयोध्या में यूं तो कई मस्जिदें है और वहां नमाज भी पढ़ी जाती है लेकिन यह एक मस्जिद की जमीन का मामला है जिस पर जबरदस्ती कब्जा कर मूर्तियां रखवा दी गई। यह हक की लड़ाई है और मुसलमान अपनी जमीन को वापस लेने के लिए सभी संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करेगा।