नई दिल्ली | अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने गुरुवार को कहा कि वर्ष 1986 में कांग्रेस की सरकार ने उच्चतम न्यायालय के उस समय के फैसले को बदलकर जो खता की थी उसकी सजा मुस्लिम महिलाएँ आज तक भुगत रही हैं।
नक़वी ने तीन तलाक को गैर-कानूनी बनाने संबंधी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 पर लोकसभा में जारी चर्चा में हस्तक्षेप करते हुये कहा “(शाह बानो मामले में) उच्चतम न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए एक कानून लाया गया था। आज की सरकार उसी फैसले को प्रभावी करने के लिए कानून लायी है। उस समय की कांग्रेस सरकार ने कुछ लोगों को खुश करने के लिए लम्हों की खता की थी जो सदियों की सजा बन गयी। …1986 में आपने मुट्ठी भर लोगों के दबाव में जो गलती की थी उसकी सजा लोग आज तक भुगत रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि देश में पारंपरिक कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए कानून नहीं बनाया गया है। इस देश में सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए भी कानून बनाया है। तीन तलाक भी उसी तरह की कुप्रथा, उसी प्रकार की समाजिक बुराई है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वर्ष 1986 में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को कुचलने के लिए विधेयक लाया गया था, आज उनका अधिकार दिलाने के लिए कानून लाया गया है। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई मुस्लिम देशों ने तीन तलाक को पहले ही गैर-कानूनी करार दे दिया है। सूडान ने 1929 में, मलेशिया ने 1953 में, पाकिस्तान ने 1956 में और ईराक ने 1959 में तीन तलाक की प्रथा समाप्त कर दी थी। संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, मोरक्को तथा कई अन्य देश भी इसे गैर-कानूनी बना चुके हैं।
नक़वी ने कहा “हमें 70 साल लग गये इस खत्म करने में आज जब हम इसे खत्म करने जा रहे हैं तब भी विरोध हो रहा है।” उन्होंने कहा कि पिछली लोकसभा के समय जब यह विधेयक लाया गया था उस समय विपक्षी तीन मुख्य आपत्तियाँ थीं। उनका कहना था कि इसमें जमानत और समझौते का प्रावधान नहीं है तथा कोई भी प्राथमिकी दर्ज करवा सकता है। सरकार ने उन तीनों आपत्तियों को दूर किया। उन्होंने विपक्षी सदस्यों से भी विधेयक का “ईमानदारी से” समर्थन करने की अपील की और कहा कि यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देने के लिए लाया गया है।