नागौर। राजस्थान में कांग्रेस का गढ़ रही नागौर संसदीय सीट पर इस बार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल के कंधों पर सवार भारतीय जनता पार्टी की चुनाव प्रतिष्ठा दांव पर है जहां बेनीवाल का कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा से सीधा मुकाबला होता नजर आ रहा है।
राज्य में पिछले लोकसभा चुनाव में सभी पच्चीस सीटें जीतने वाली भाजपा ने इस बार रालोपा के साथ गठबंधन कर यह सीट बेनीवाल के लिए छोड़ दी और उनके कंधों पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार करना चाह रही है लेकिन उसके समर्थित उम्मीदवार को नागौर जिले में करीब पचास साल तक राजनीतिक दबदबा रखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा की पोती पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा कड़ी टक्कर दे रही है।
इस सीट पर 1977 के चुनाव से लगातार जाट उम्मीदवार ही जीतता आ रहा है और गत विधानसभा चुनाव में जिले की दस विधानसभा सीटों पर दो सुरक्षित सीटों को छोड़कर शेष सभी आठ सीटों पर जाट प्रत्याशियों के जीतने से जाट लैंड के रुप में उभरे जिले में इस बार भी मुख्य मुकाबला दो जाट प्रत्याशी हुनमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच हैं।
लोकसभा चुनाव में एक ही समुदाय के दो उम्मीदवार आमने सामने होने से एक बड़े वोट बैंक के बंटने की संभावना होती है लेकिन पिछले चार दशक से अधिक समय में हुए तेरह चुनावों में से अधिकतर मुकाबला दो जाट उम्मीदवार के बीच ही होता आ रहा है। इस बार भी जाटों के मतों का धुव्रीकरण होगा लेकिन जीत किस दल को नसीब होगी यह अन्य समुदायों के मतों पर निर्भर होगा।
नागौर में मुसलमान और जाटों के मत ज्यादा है, इसके बाद राजपूत एवं अनुसूचित जाति तथा मूल ओबीसी के मतदाता भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री सीआर चौधरी को फिर से चुनाव मैदान में नहीं उतारकर रालोपा के लिए सीट छोड़ी है जिसका कांग्रेस की ज्योति मिर्धा इसका फायदा उठा सकती है, क्योंकि नागौर में सर्वाधिक छह बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले उनके दादा नाथूराम मिर्धा के कारण आज भी सभी वर्गों में ज्योति के प्रति सदभावना नजर आ रही है लेकिन युवाओं का झुकाव हनुमान बेनीवाल और प्रधानमंत्री मंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ज्यादा दिख रहा है।
जिले में मीठे पानी, बिजली, कृषि कनेक्शन, बैलों के परिवहन पर रोक को हटाने, किशनगढ़-परबतसर रेलमार्ग एवं डीडवाना और नांवा में नमक उद्योग के विकास तथा जिले में सड़कों की हालत सुधारने के मुद्दे है लेकिन इस बार मोदी के बढ़ते प्रभाव के चलते ये मुद्दें जोर नहीं पकड़ पा रहे हैं और सभी जगह मुद्दों की बात आने पर मोदी का नाम आ जाता है। नागौर में अभी चुनावी माहौल किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में नजर नहीं आ रहा है।
इन दोनों उम्मीदवारों के अलावा आरपीडब्ल्यूपी के हनुमानराम तथा दस निर्दलीयों सहित कुल तेरह उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इस संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में डीडवाना, लांडनूं, परबतसर, नावां और जायल में कांग्रेस विधायक है जबकि नागौर एवं मकराना में भाजपा तथा खींवसर विधानसभा क्षेत्र से रालोपा का विधायक है।
रालोपा के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने गत विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी की घोषणा की और विधानसभा चुनाव में स्वयं सहित उसके तीन प्रत्याशियों ने चुनाव जीता। बेनीवाल ने पिछले लोकसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में लड़कर एक लाख 59 हजार 980 मत हासिल किए थे। इससे पिछले चुनाव में ज्योति मिर्धा भाजपा के सीआर चौधरी से 75 हजार 218 मतों से चुनाव हार गई।
नागौर में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में वर्ष नाथूराम मिर्धा ने सर्वाधिक छह बार 1977, 1980, 1984, 1989, 1991 एवं 1996 में चुनाव जीता। उन्होंने 1989 में जनता दल तथा शेष चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में चुनाव जीता। उनके निधन के बाद 1997 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र भानु प्रकाश मिर्धा ने भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीता।
इसके बाद 1998 एवं 1999 में कांग्रेस के रामरघुनाथ चौधरी, 2004 में भाजपा के भंवर सिंह डांगावास एवं 2009 में कांग्रेस की ज्योति मिर्धा ने चुनाव जीता। वर्ष 1984 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामनिवासी मिर्धा ने लोकसभा चुनाव जीता था। नागौर से पहला लोकसभा चुनाव निर्दलीय जीडी सोमानी ने जीता। दूसरा चुनाव कांग्रेस के मथुरा दास माथुर तथा तीसरा लोकसभा चुनाव कांग्रेस के एन के सोमनी ने जीता।