सबगुरु न्यूज। पूरा विश्व अभी घरों में कैद है। एक विषाणु ने लोगों को घरों में बंधक सा बना दिया है तो सामान्य जन के मन की स्थिति किस प्रकार की है, यह समझ आ रहा है। किंतु यह भी समझना होगा कि जो राष्ट्र लगभग एक हजार वर्ष परतंत्र रहा हो, उसकी सामाजिक चेतना, आत्म गौरव और मान बिंदुओं का क्या हाल हुआ होगा।
मैं यह बात इसलिए उल्लेखित कर रहा हूं क्योंकि एक हजार वर्षों की गुलामी के कारण देश की पीढ़ियां भूल गई कि उन्हें किस बात को मजाक में लेना है और किन का मान सम्मान करना है। भारतीय समाज जीवन के एक विराट व्यक्तित्व देवर्षि नारद भी षडयंत्रों तथा उपेक्षाओं के शिकार हुए हैं।
देवर्षि नारद जिन्हें हम सृष्टि का प्रथम पत्रकार भी कहते हैं, उन्हें कुछ अधकचरे लोगों ने विदूषक का रूप देने का प्रयास किया है। सिनेमा ने भी इस विषय में आग में घी डालने का काम किया है। वहीं दूसरी ओर सामान्य समाज में किन लोगों को नारद कहा जाता है, इस बात से भी हम भलीभांति परिचित हैं।
नारद होना कोई सामान्य बात नहीं है। नारद होने के लिए पहले देव ऋषि होना पड़ता है और अनथक यात्राएं करते हुए सभी प्रकार के लोगों तक पहुंचना भी होता है, चाहे सुर हो अथवा असुर। सुर और असुर इस सृष्टि के हर दौर में विद्यमान रहते हैं। नारद होने के लिए निर्भय होना पड़ता है.. अध्ययनशील, विनम्र और विद्वान होना पड़ता है।
नारद होने के लिए जिस साहस और तैयारी के साथ सज्जन शक्ति के समक्ष आप सूचनाएं पहुंचाते हैं, उसी साहस के साथ आपको वर्तमान दौर के आतंकवादियों की गुफाओं तक भी पहुंचना होता है।
देवर्षि नारद को प्रथम पत्रकार इसीलिए कहा जाता है कि तीनों लोकों की खबरें यथा स्थान पहुंचाने का कार्य उन्होंने श्रेष्ठ तरीके से किया। अपनी हर खबर के पीछे धर्म और समाज कल्याण का भाव उन्होंने सर्वोपरि रखा।
पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों के लिए देवर्षि नारद से बड़ा कोई दूसरा आदर्श नहीं हो सकता। पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों का बड़े प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा शक्तिशाली लोगों के साथ उठना बैठना होता है.. इस दौरान उन्हें किस प्रकार सजग रहना होता है, यह भी नारद जी के जीवन से सीखने को मिलता है।
जब भी कोई पत्रकार अपने कार्यक्षेत्र का, अपने संबंधों का दुरुपयोग करता है तो उसकी स्थिति भी ठीक वैसी ही हो जाती है, जिस प्रकार की देवर्षि नारद जी के जीवन में नारद मोह की लीला के माध्यम से स्पष्ट होती है।
पिछले कुछ वर्षों में देश में पत्रकारों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है। पत्रकारों के संदर्भ में अनेक अपमानजनक नाम भी सोशल मीडिया पर आए हैं। इस दिशा में भी यदि विचार करें तो ध्यान में आता है कि देश में एक विशेष प्रकार का वातावरण रहा है। एक दौर में अधिकारियों को भ्रष्टाचार का पर्याय माना जाता था।
समय आगे बढ़ा नेता शब्द गाली के रूप में प्रयुक्त होने लगा और वर्तमान दौर में कुछ पत्रकारों के निहित स्वार्थों तथा निजी एजेंडे के कारण पत्रकार जगत के लिए भी ओछे शब्दों का उपयोग होने लगा है। इन विषम परिस्थितियों में से निकलने के लिए पत्रकार जगत को भी आत्ममंथन करना होगा। किंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पत्रकारिता का कर्म श्रेष्ठ कर्म है।
आज भी जब कोरोना के डर से सारी दुनिया घरों में कैद है, उस दौर में भी चिकित्सा विभाग तथा पुलिस के साथ-साथ पत्रकारिता जगत के साथी अपनी जान हथेली पर रखकर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। ध्यान दीजिए जब भी कहीं कोई दुर्घटना होती है, कहीं कोई बम विस्फोट जैसी घटनाएं होती है, तब सामान्य समाज उस स्थान से अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए अपने घर की ओर दौड़ता है और ठीक उसी समय पत्रकार अपने घर से घटनास्थल पर जहां खतरा रहता है उस ओर दौड़ता है।
अपने जीवन को दांव पर लगाने वाला पत्रकार साधारण नहीं होता, इसलिए इस श्रेष्ठ कर्म को परिष्कृत करने के लिए आत्ममंथन भी आवश्यक है। साथ ही आवश्यक यह भी है कि देवर्षि नारद से निरंतर प्रेरणा लेते रहें, अपने मान बिंदुओं के यथार्थ का अन्वेषण करें। उन्हें उचित मान-सम्मान दें और यदि किसी स्थान पर देवर्षि नारद जैसे राष्ट्रीय चरित्रों के साथ छेड़छाड़ होती है तो हम सब की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि समाज को अवगत कराएं, क्योंकि मुंह ऊपर करके थूकने पर क्या हश्र होता है यह हम सब जानते हैं।
विवेकानंद शर्मा
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