लखनऊ। सात दशक से अधिक समय तक भारतीय राजनीति के क्षितिज पर चमकने वाले सितारे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के जीवन के अाखिरी पडाव में कुछ घटनाओं ने उनकी छवि को चोट पहुंचाई थी।
दिग्गज कांग्रेसी नेता का गुरूवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके निधन से उत्तर प्रदेश में शोक की लहर व्याप्त हो गई है। राज्यपाल रामनाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सभी दलों के नेताओं ने तिवारी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए भारतीय राजनीति के एक अध्याय का अंत करार दिया है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर, वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कबीना मंत्री श्रीकांत शर्मा, सूर्यप्रताप शाही, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती समेत अन्य नेताओं ने तिवारी को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुए उनके निधन को भारतीय राजनीति के लिए अपूर्णनीय क्षति बताया।
अपने गृह राज्य उत्तराखंड में विकास पुत्र के नाम से विख्यात तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होने केंद्र में भी कई अहम पदों में काम किया। हालांकि जीवन के अंतिम लम्हों में उनकी उपलब्धियां तब धूमिल हुई जब आंध्र प्रदेश राजभवन में सेक्स स्कैंडल में उनका नाम सामने आया और 80 की दहलीज पार करने के बाद उनके खिलाफ पितृत्व का मुकदमा दायर किया गया।
तिवारी ने गुरूवार को अंतिम सांस ली जब परिवार उनकी 93वीं सालगिरह मना रहा था। अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत उन्होने 1952 में की जब वह सोशिलिस्ट पार्टी के टिकट पर नैनीताल विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए। एक दशक से ज्यादा समय गुजारने के बाद उन्होने 1965 में कांग्रेस की सदस्यता हासिल की जहां उन्होंने अपने जीवन का अधिकतर हिस्सा व्यतीत किया।
वर्ष 1990 में हालांकि कुछ समय के लिये वह दौर भी आया जब तिवारी ने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) की स्थापना की जबकि पिछले साल उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को खुलेआम समर्थन देने का एलान किया था।
वैसे तिवारी का राजनीतिक करियर आजादी के पहले से ही शुरू हो गया था। किशोरावस्था में उन्होने 15 महीनों की सजा नैनीताल जेल में काटी थी। ब्रिटिश हुक्मरानो ने उन्हें यह सजा सरकार विरोधी पंपलेट बांटने के आरोप में सुनाई थी। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और जल्द ही वह 1947 में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।
वर्ष 1976 में वह उत्तर प्रदेश में पहली बार मुख्यमंत्री चुने गए। इसके बाद अस्सी के दशक में उन्होने दो बार और सूबे के मुख्यमंत्री पद का निर्वहन किया। हालांकि उनके ये दोनों कार्यकाल बेहद संक्षिप्त थे मगर उन्हें राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस प्रदेश में कांग्रेस के अब तक के आखिरी मुख्यमंत्री के तौर पर याद किया जाएगा।
केन्द्र में तिवारी ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर काम किया। इसके बाद उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल में योजना, वित्त,पेट्रोलियम और बाहृय मामलो जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी उठाई। तिवारी को एक समय प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता था हालांकि 1991 में कांग्रेस ने उनके स्थान पर पीवी नरसिंहाराव को प्रधानमंत्री पद से नवाजा। एक वक्त ऐसा भी आया जब वह अपनी पारंपरिक सीट नैनीताल में महज 800 वोट से चुनाव हार गए।
तिवारी उत्तराखंड के तीसरे मुख्यमंत्री बने हालांकि वह ऐसे पहले मुख्यमंत्री भी साबित हुए जिन्होंने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया हो। वह 2002 से 2007 के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे।
जीवन के आखिरी लम्हो में तिवारी की साख पर बट्टा भी लगा। वर्ष 2007 में उन्हे आंध्र प्रदेश का राज्यपाल मनोनीत किया गया। इसके दो साल बाद एक वीडियो क्लिप जारी हुई जिसमें राजभवन में एक वयोवृद्ध को बिस्तर में तीन महिलाओं के साथ दर्शाया गया था। इस घटना के बाद उनके राजनीतिक करियर में ग्रहण लग गया। इसके बाद स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए वह देहरादून आ गए।
वर्ष 2008 में रोहित शेखर ने तिवारी के खिलाफ पितृत्व का मुकदमा दायर किया। रोहित का दावा था कि तिवारी उसके जैविक पिता है। न्यायालय के आदेश पर 2012 में हुए डीएनए टेस्ट में दावे की पुष्टि हुई। इसके बाद तिवारी ने मीडिया के सामने रोहित को अपना पुत्र स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि मुझे अपना जीवन अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है। किसी को मेरे निजी जीवन में झाकने का अधिकार नहीं है। कृपया मेरी निजिता का सम्मान करें।
वर्ष 2014 में तिवारी ने शेखर की मां उज्जवला शर्मा से लखनऊ में विवाह किया। 88 साल की उम्र में हुए इस विवाह के बाद हालांकि एक मां और बेटे की परिवार का सदस्य होने की तमन्ना पूरी हो गई। हाल ही में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद तिवारी ने अपना सरकारी आवास खाली कर दिया था।