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श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने औद्योगिक विकास की नींव रखी : मोदी
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने औद्योगिक विकास की नींव रखी : मोदी

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श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने औद्योगिक विकास की नींव रखी : मोदी
Narendra Modi to share his thoughts in 45th edition of Mann Ki Baat
Narendra Modi to share his thoughts in 45th edition of Mann Ki Baat

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने ही देश के औद्योगिक विकास की नींव राखी थी और वह भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना चाहते थे।

मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मुख़र्जी को उनकी कल संपन्न पुण्यतिथि के मौके पर याद करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि दिल्ली के रोहिणी के रमण कुमार ने ‘मेरे ऐप’ पर लिखा है कि छह जुलाई को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्मदिन है और वह चाहते हैं इस कार्यक्रम में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में देशवासियों से बात मैं करूं। रमण जी सबसे पहले तो आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

भारत के इतिहास में आपकी रूचि देखकर काफी अच्छा लगा। आप जानते हैं, कल ही 23 जून को डॉ मुखर्जी की पुण्यतिथि थी। वह कई क्षेत्रों से जुड़े रहे लेकिन जो क्षेत्र उनके सबसे करीब रहे, वे थे शिक्षा प्रशासन और संसदीय मामले। बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति थे। तब उनकी उम्र मात्र 33 वर्ष थी।

उन्होंने कहा कि बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि 1937 में डॉ मुखर्जी के निमंत्रण पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कोलकाता विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह को बांग्ला भाषा में संबोधित किया था। यह पहला अवसर था, जब अंग्रेजों की सल्तनत में कोलकाता विश्वविद्यालय में किसी ने बांग्ला भाषा में दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था।

मोदी ने कहा कि 1947 से 1950 तक डॉ मुखर्जी भारत के पहले उद्योग मंत्री रहे और एक अर्थ में कहें तो उन्होंने भारत का औद्योगिक विकास का मजबूत शिलान्यास किया था, मज़बूत आधर, एक मज़बूत प्लेटफार्म तैयार किया था। वर्ष 1948 में आई स्वतंत्र भारत की पहली औद्योगिक नीति उनके विचार और दृष्टिकोण की छाप लेकर के आई थी। डॉ मुखर्जी का सपना था कि भारत हर क्षेत्र में औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर हो, कुशल और समृद्ध हो।

वह चाहते थे कि भारत बड़े उद्योगों को विकसित करे और साथ ही लघु एवं मझोले उद्योग ,हथकरघा, वस्त्र और कुटीर उद्योग पर भी पूरा ध्यान दे। कुटीर और लघु उद्योगों के समुचित विकास के लिए उन्हें वित्त और संगठनात्मक ढांचे मिले, इसके लिए 1948 से 1950 के बीच अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड और खादी ग्रामउद्योग बोर्ड की स्थापना की गई थी।

उन्होंने कहा कि डॉ मुखर्जी का भारत के रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण पर भी विशेष ज़ोर था। चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स फैक्ट्री, हिंदुस्तान एयर क्राफ्ट फैक्ट्री सिंदरी का खाद कारखाना और दामोदर घाटी निगम, ये चार सबसे सफ़ल और बड़ी परियोजनाएं तथा दूसरी नदी घटी परियोजनाओं की स्थापना में डॉ, मुखर्जी का बहुत बड़ा योगदान था।

पश्चिम बंगाल के विकास को लेकर वह काफ़ी संवेदनशील थे। उनकी समझ, विवेक और सक्रियता का ही परिणाम है कि बंगाल का एक हिस्सा बचाया जा सका और वह आज भी भारत का हिस्सा है। उनके लिए, जो सबसे महत्वपूर्ण बात थी, वो थी भारत की अखंडता और एकता और इसी के लिए 52 साल की कम उम्र में ही उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी। आइए! हम हमेशा उनकी एकता के सन्देश को याद रखें, सदभाव और भाईचारे की भावना के साथ, भारत की प्रगति के लिए जी-जान से जुटे रहें।