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राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय अब हर नागरिक के लिए खुला
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राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय अब हर नागरिक के लिए खुला

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राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय अब हर नागरिक के लिए खुला
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नयी दिल्ली । ज्ञान के खजाने राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय को आज राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया गया और अब देश का हर नागरिक इन्टरनेट या मोबाइल फोन पर मुफ्त में पुस्तकें एवं शोध ग्रन्थ तथा पत्रिकाएं पढ़ सकता है।

इस पुस्तकालय में एक करोड़ सत्तर लाख डिजिटल पाठ्य सामग्री हैं और ऑडियो पुस्तकों के अलावा वीडियो लेक्चर भी हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आईआईटी) खड़गपुर द्वारा तैयार इस डिजिटल पुस्तकालय में 200 भाषाओं में यह पाठ्य सामग्री है जिसे सिंगल विंडो पर चौबीसों घंटे पढ़ा जा सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आज यहाँ विज्ञानं भवन में इस डिजिटल पुस्तक को राष्ट्र के नाम समर्पित किया।

जावड़ेकर ने कहा कि पहले ज्ञान के लिए गुरु होते थे। अब बिना गुरु के ज्ञान ग्रन्थ द्वारा प्राप्त कर सकते हैं यानी गुरु ही ग्रन्थ है और यह ग्रन्थ आपके दरवाज़े पर है, पिछले एक साल से शुरू यह डिजिटल पुस्तकालय अब तक केवल शिक्षकों और छात्रों के लिए खुला था लेकिन आज से यह हर किसी के लिए निः शुल्क खुल गया है यानी ज्ञान का खज़ाना अब आपके सामने खोल दिया गया है और यह पुस्तकालय आपके मोबाइल में आपकी जेब में है। यह पुस्तालय हमेशा मुफ्त रहेगा और यह जनता का अधिकार है जो हमेशा रहेगा,आप कहीं भी कभी भी दुनिया की किसी किताब को पढ़ सकते हैं।

उन्होंने कहा कि अभी 35 लाख लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं और एक साल में इसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर साढ़े तीन करोड़ करने का इरादा है। उन्होंने कहा कि पहले किताबों के लिए एक दूसरे कालेज के पुस्तकालयों या शहरों में भटकना होता था पर इस पुस्तकालय से वह समस्या दूर हो गयी है। इसमें किताबों, शोध ग्रंथों और पत्रिकाओं के अलावा प्रतियोगितायों के प्रश्नपत्र भी है। उन्होंने बताया कि यह पुस्तालय मोबाइल एप्प में भी है और अभी यह एप्प तीन भाषाओं में हैं। उन्होंने प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की विशाल लाइब्रेरी को आक्रमण कारियों द्वारा जलाये एवं नष्ट किये जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि डिजिटल पुस्तालय नष्ट नहीं किया जा सकता है यहाँ तक कि बम हमले से भी इसे नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा,इस तरह ज्ञान हमेशा सुरक्षित रहेगा।

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि जब वह चिकित्सा की पढ़ाई पढ़ रहे थे तो उनके 35 साल पहले उनके पिता की मासिक आय 160 रुपए थी और तब डाक्टरी की किताब 600 रुपये में मिलती थी और हमारे पास किताब खरीदने के पैसे नहीं होते थे लेकिन तब डिजिटल पुस्तकालय नहीं होते थे। आज यह समस्या नहीं है, अब किताबें उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल पुस्तालय से ज्ञान का प्रचार प्रसार होगा इसलिए इस डिजिटल आन्दोलन को आपस में मिलकर आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने इस क्षेत्र में केरल के पी एन पणिक्कर फाउंडेशन के योगदान को रेखांकित किया।

उच्च शिक्षा मंत्री डॉ सत्यपाल सिंह ने कहा कि शिक्षा, ज्ञान और विद्या में फर्क है। ज्ञान तो रोशनी के सामान है जिस तरह सूरज की रोशनी को कैद नहीं किया जा सकता,उस तरह ज्ञान को भी कैद नहीं किया जा सकता। आयी आयी टी खड़गपुर के निदेशक डॉ पार्थम चटर्जी ने कहा कि इस पुस्तकालय में दिव्यांगों के लिए भी विशेष व्यवस्था है और इसमें मल्टी मीडिया भी है। इसमें 12 स्कूल बोर्ड की किताबें भी हैं और पांडुलिपियाँ भी है और डाटा बैंक भी है, अन्तराष्ट्रीय डिजिटल कॉपी राइट नीति के बनने से यह पुस्तकालय और समृद्ध होगा।