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तन्त्र शास्त्र में 'नवरात्रा' - Sabguru News
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तन्त्र शास्त्र में ‘नवरात्रा’

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तन्त्र शास्त्र में ‘नवरात्रा’
'Navratri' in Tantra Shastra
'Navratri' in Tantra Shastra
‘Navratri’ in Tantra Shastra

सबगुरु न्यूज। तंत्र की अपनी दुनियां ही निराली है। एक समय था जब तंत्रों का साधक, क्षण भर में तंत्रों के माध्यम से दुर्लभ से दुर्लभ कार्य क्षणभर में करवा लेता था। चरम विकसित इस सभ्यता का धीरे-धीरे लोप हो गया। कारण, तंत्रों के जानकार व्यक्तियों ने यह विद्या अपने बहुत ही विश्वास पात्र शिष्यों को ही दी है तथा तंत्रों को सदैव गोपनीय रखा।

ऐसी किवदान्तियां हैं कि भगवान शिव ने यह ज्ञान अपने शिष्य रावण को बताया तथा पार्वती के पूछने पर यह विद्या पार्वती को बतलाई। वैदिक तंत्र यंत्र के अतिरिक्त कई मंत्र ऐसे हैं जो कि सिद्ध पुरुषों की स्तुतियां हैं, उन्हें सावर मंत्र के रूप में जानते हैं। कभी-कभी सिद्ध आत्माएं या प्रेत किसी व्यक्ति को अपने स्थान पर ले जाकर उन्हें मंत्र सिखा कर पुनः अपने स्थान पर छोड़ आते हैं।

कभी-कभी ये सिद्ध आत्माएं स्वप्न में मंत्र सिखा उन्हें सफल तांत्रिक बना देती है। तंत्र की साधना मोक्ष को प्रदान करती है। इसके माध्यम से मनुष्य अभय, अमरत्व, युक्ति तथा युक्ति तक बड़ी सहजता से पहुंच सकता है। तंत्रों मैं तंत्र ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान और मंत्रों का वर्णन है। तंत्र सिद्धि और रक्षा दोनों ही प्रदान करते हैं तंत्र के जानकार साधक में पूर्ण पवित्रता, श्रद्धा, गुरुभक्ति, वैराग्य, विनम्रता, संतोष सहज और लौकिक प्रेम होने चाहिए। इन्हीं के माध्यम से वह शक्ति का सदुपयोग कर समुदाय को लाभ पहुंच सकता है।

तंत्र शास्त्र जादू टोना, टोटका नहीं है बल्कि वे महत्वपूर्ण साहित्य है जो सभी जाति व वर्ण के हितों के लिए है। इसका सच्चा साधक अत्यधिक बल बुद्धि तथा परमानंद को प्राप्त कर सकता है। सरलता से मानव के लिए कल्याणकारी मार्ग बताने वाली साधना ही तंत्र साधना है, तंत्र की गुप्त विधाएं आचार्यो या गुरुओं के पास बैठकर सीखनी पड़ती है और यही गुरु शिष्य परम्परा है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।

तंत्र व मंत्रों के जानकार को मांत्रिक या तांत्रिक कहा जाता है। गांव के झाड़ फूक करने वाले को ओझा, कुछ को झुमका तथा कुछ लोग परिहार तो कुछ बाबाजी कह कर पुकारते हैं।

मंत्र शास्त्र में तीन मार्गों का उल्लेख किया गया है दक्षिण मार्ग, वाम मार्ग व मिश्रित मार्ग। दक्षिण मार्ग में सात्विक देवताओं की उपासना सात्विक मंत्र व सामग्री में की जाती है। वाम मार्ग में मांस, मदिरा, मीन, मुद्रा, मैथुन आदि पांच वस्तु से भैरव साधना की जाती है। मिश्रित मार्ग में दोनों सम्मिलित रूप होता है। दक्षिण मार्ग सात्विक होने से प्रकट मार्ग तथा वाम मार्ग असात्विक होने से गुप्त मार्ग कहलाता है।

तंत्र शास्त्र में वाम मार्ग होने से पंच मक्कार का गलत प्रयोग करने से तंत्र शास्त्र बदनाम होने लगा तथा आमजन तंत्रों व तांत्रिकों को शक व हेय की नजर से देखने लगे। मानव शरीर में कुंडलिनी शक्ति जो सुशुप्तवस्था में है। उसे जागृत करने का माध्यम ही तंत्र शास्त्र है। षठचक्र मूलधारा, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्र में जो गुप्त शक्तियां विद्यमान है, उन्हें जागृत करने का ज्ञान प्राप्त करने मैं तंत्र योग अपना विशिष्ठ स्थान रखते हैं। इसके जागरण हेतु भी नवरात्रा काल विशेष फलदायी होता है।

इन्हीं नौ दिनों तक मनुष्य विशेष नियम, संयम में रह कर अपनी अंदर की शक्ति का विकास कर शक्तियों को सिद्ध कर, सिद्धि प्राप्त कर सकता है इसलिए तंत्र शास्त्र में नवरात्रा का विशेष महत्व होता है।

तंत्र शास्त्र में ऐसी मान्यता है कि मानव शरीर में ऐसी प्राकृतिक शक्ति होती है, जिसे कुण्डलिनी शक्ति कहा जाता है, वह सुशुप्तवस्था में रहती है। नाभि के नीचे और मल मूत्र स्थानों के बीच साढ़े तीन दिन वलय लिए हुए यह सर्पिणी सोई रहती है। इसके जागरण हेतु भी यह नवरात्रा काल विशेष फलदायक होता है।

भगवती दुर्गा के नव रूप है-
1 शैलपुत्री ,2 ब्रह्मचारिणी ,3 चंद्रघंटा ,4 कुष्मांडा, 5स्कंदमाता ,6 कात्यायनी, 7 कालरात्रि, 8 महागौरी 9 सिद्धि दात्री।

तंत्र शास्त्र का मुख्य सिद्धांत है शक्ति पूजा। इस ब्रह्मस्वरूप चेतन शक्ति के दो रूप है एक निर्गुण और दूसरा सगुण। यही शक्ति संसार को उत्पन्न करती है, इसी शक्ति को उपनिषदों में पराशक्ति कहा गया है। ऋग्वेद में भगवती करती है-
‘मैं रूद्र, वसु, आदित्य और विश्वे में देवो के रूप में विचरती हूं। वैसे ही मित्र, वरुण, इंद्र, अग्नि और अश्विनी कुमारों के रूप को धारण करती हूं।’

अपने अतीत में इतने ध्यानढ्य रहें इस तंत्रशास्त्र कि वर्तमान में इतनी क्यों दुर्दशा हुई, तंत्रों के जानकारों पर क्यों अविश्वास बड़ा आदि कई महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होते हैं।

प्राचीन काल में अति विकसित यह तंत्रशास्त्र सभी के लिए था। जाति धर्म को लेकर इस शास्त्र ने कभी मत भेद नहीं किया। सर्वत्र समाज में बिना जातिभेद तथा अपनी विशिष्ट प्रणाली के कारण यह शास्त्र विकसित था। धीरे-धीरे तंत्र शास्त्र में अलग-अलग मार्ग बने जैसे दक्षिण मार्ग, वाममार्ग तथा मिश्रित मार्ग।

वाममागर में कलान्तर में जाकर पंचमक्कारों ने इसके मूल स्वरूप को बदल दिया। तंत्र के जानकारों ने पंच मक्कार की व्याख्या अपने ढंग से की तथा कुछ जानकार लोग जो इंद्रियों को वश में ना रखें सके, उन लोगों ने समाज में व्यभिचार को फैला इस शास्त्र की दुर्दशा की। आम व्यक्ति वाम मार्ग और तंत्र के नाम से डरने लगा और उन पर अविश्वास करने लगा। जबकि ऐसा कुछ नहीं है, तंत्र में वाम मार्ग है और वाम मार्ग में भैरवी चक्र तथा पंचमकारों की ही प्रधानता है। वाम मार्ग से भयभीत न होकर सही अर्थों में इसे समझाना श्रेयकर है।

वाममार्ग अति कठिन और योगियों के लिए अगम्य है तो फिर इंद्रिय लोलुप जनता के लिए कैसे गम्य हो सकता है। वाम मार्ग जितेंद्रिय योगी पुरुषों का है ना की लोलुप लोगों का ऐसा हमारा  तंत्र शास्त्र के ग्रंथ बतलाते हैं। मेरू तंत्र में भी लिखा है :-

परद्रव्य परदारा तथा परापवाद से विमुख संयमी व्यक्ति ही वाम मार्ग का अधिकारी है। सर्व सिद्धियों का देने वाला वाम मार्ग इंद्रियों को अपने वश में रखने वाले योगी के लिए सुलभ है।

भाव चूड़ामणि में कहा गया कि तंत्रों के अति गूढ होने के कारण उनका भाव अत्यंत गुप्त है इसलिए इसको जानने वाला भाव का मंथन करके उद्धार करने में समर्थ हो वही वाममार्ग का अधिकारी हो सकता हैं।

ब्रह्मरन्ध्र सहस्त्र दल से जो स्त्रवित होता है उसे सुधा कहते हैं। कुंडलिनी जागरण द्वारा ही योगी जन उसका पान करते हैं, उसे ही मद्यपान कहते हैं।

पुण्य पापरूपी पशु को ज्ञानरूपी खंडग मानकर जो योगी मन को ब्रह्म में लीन करता है वही मांस है। मन आदि सारी इंद्रियों को वश में करके आत्मा में लगाने वाले को ही मीनाशी कहते हैं दूसरे तो जीव हिंसक है।

परमानन्द को प्राप्त हुई सूक्ष्म रूप वाले सुषुम्ना नाड़ी है, वही आलिग्ङ करने योग्य सेवनीचा कांता है, न कि मानवी सुंदरी। सुषम्ना का सहस्त्र चक्रान्तर्गर परब्रह्म के साथ संयोग का नाम ही मैथुन है, स्त्री संभोग का नहीं।

प्राचीन काल में तंत्र शास्त्र के ज्ञाता नवरात्रि में कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर तमाम जन कल्याण तथा मोक्षदायी सिद्धियों को प्राप्त करते थे। प्रथम दिन मां भवानी का ध्यान करके अपने मन को मूलधारा चक्र में लगा कर उसे जागृत करते थे। दूसरे दिन दूसरी देवी का ध्यान कर साधक मन को स्वाधिष्ठान चक्र में स्थापित करते हैं। तीसरे दिन योगी अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। चौथे दिन साधक मन को अनाहत चक्र में ध्यान कर साधना करते हैं। पांचवें दिन मन को विशुद्ध चक्र में स्थित करते हैं। छठे दिन साधक मन को आज्ञा चक्र में समाहित करते हैं। सातवें दिन कालरात्रि देवी का ध्यान कर मन को सहस्त्रधारा में स्थित करते हैं। आठवें दिन षष्ठाधार चक्र के सफलता पूर्वक प्रवेश के बाद मां इस दिन कुण्डली जागृत कर देती है। 9वें दिन सिद्धिदात्री मां अष्ट सिद्धि और नव निधियां प्रदान करती है।

तंत्रशास्त्र के दूसरे मार्गों में अपने-अपने मार्ग के देवी देवताओं की पूजा उपासना में तंत्र के जानकार लोग लगे रहे थे, उनके पीछे केवल यही मकसद था कि वे अपनी पीठ के देवी देवताओं को प्रसन्न कर उनसे सिद्धि प्राप्त करते थे।

तंत्र के वाम मार्ग के जानकार लोग भैरव, काली, चौसठ योगिनी, श्मशान साधना तथा अपने मार्ग के वीरों की पूजा करते उनके भेंट चढ़ा उन्हें प्रश्न रखने के उपाय करते थे।

तंत्रों की मान्यताओं के अनुसार तांत्रिक अपने-अपने देव और वीरों को नवरात्रि में सिद्ध कर उनकी पूजा भेंट चढ़ा वर्षभर में लोगों के कार्य की सिद्धि हेतु शक्तियां प्राप्त करने में लगे रहते थे।

कुछ तंत्र के जानकार 52 भैरव, 64 योगिनी, 80 मसान, 56 कलवे तथा 53 डायनों या प्रेतों को सिद्ध करते हेतु उनकी पूजा अर्चना अपनी-अपनी पीठ के नियमानुसार कर शक्ति प्राप्त करते थे।

किसी भी समस्या से ग्रसित व्यक्ति नवरात्रा में विभिन्न देवी व देव स्थान में, तांत्रिक व जानकार लोगों के पास जाकर अपने समाधान लेते हैं।

आज के वैज्ञानिक युग में भी यह मान्यता अभी भी बरकरार है। नवरात्रा में विशेष कर डोरो, ताबीज, गण्डा, यंत्र आदि तंत्रों का जानकार व्यक्ति, सिद्ध करके अपने अनुयायी को देते हैं।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्रा में ही यह समस्त उपचार की विधियां अत्यधिक कारगर होती है। तंत्र के दक्षिण मार्ग का सहारा ले अधिकांश जन देवी की स्तुतियां मंत्र घर में ही जाप लेते हैं तथा 9 दिन तक घर में ही पूजा पाठ कर आत्मिक शुद्धि कर मां भवानी को प्रसन्न कर लेते थे। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण मंत्र है जिन्हें जपने से सभी तरह के लाभ मिलना संभव है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव ये सब तंत्र शास्त्र की मान्यता है विज्ञान की दुनिया में इनका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए हे मानव तू केवल मन में कोई विकार मत रख और कर्म करके दया प्रेम तथा सहयोग की भावना रख तथा जन कल्याण में लगा रह, निश्चित तेरा हर दिन एक नए वर्ष की तरह होगा और तेरे कर्म से हर दिन बसंतीय नवरात्रा बने रहेंगे।

शुद्ध विचारों से मन के आंगन में आत्मा रूपी घट की स्थापना हो जाएगी और तेरा हर क्षण एक श्रेष्ठ मुहूर्त बन कर तुझे कल्याण कारी मार्ग की ओर बढाकर तुझे मोक्ष देगा। अन्यथा हर उत्सव व दिन हर वर्ष यू हीं मनाता रहेगा और कुछ दिन बाद तू सब कुछ भूल जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल