जम्मू। प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रीय राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना के जाेर देने पर ही वर्ष 1947 में देश विभाजित हुआ।
सिंह ने जिन्ना के पैरोकारों, विशेषकर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला का नाम लिए बगैर, पर तंज कसते हुए उन्हें इतिहास फिर से पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने ऐसे वक्तव्यों को बिल्कुल ‘निराधार’ बताया जिसमें कहा गया है कि जिन्ना भारत के विभाजन के विरोध में थे।
गौरतलब है कि फारूक ने कहा है कि देश के बंटवारे के लिए जिन्ना जिम्मेदार नहीं थे। उन्होंने बंटवारे के लिए जवाहर लाल नेहरु, मौलान अब्दुल कलाम अजाद और सरदार पटेल को जिम्मेदार ठहराया है।
डा. सिंह ने इतिहास के तथ्यों के हवाले से कहा कि कई संदर्भ हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत के विभाजन की संभावना से गहरी निराशा अौर अत्यंत ही दुखी थे। बापू जिन्ना के पास एक प्रस्ताव लेकर भी गए थे कि यदि वह पाकिस्तान के निर्माण की मांग को वापस लेने पर सहमत होते है तो वह (गांधी) कांग्रेस को जिन्ना को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए राजी करेंगे।
उन्होंने कहा कि जिन्ना इस प्रस्ताव से प्रभावित नहीं थे क्योंकि उन्हें पता था कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार्यता प्राप्त करना उनके लिए आसान नहीं होगा और इसलिए, उन्होंने (जिन्ना) ने पाकिस्तान के निर्माण पर जोर दिया।
डा. सिंह ने कहा कि मुसलमान समेत बहुसंख्यक हिस्सा 1947 में विभाजन के खिलाफ था और यह मुख्य रूप से चंद राजनेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित था। यहां जम्मू विश्वविद्यालय के एक समारोह के दौरान कल उन्होंने कहा कि प्रोग्रेसिव राइटर्स फोरम के कैफी आज़मी, इस्मत चुगतई, मोहसीन भोपाली और कई अन्य सम्मानित मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी विभाजन का जोरदार विरोध किया था।
सरदार पटेल की भूमिका का जिक्र करते हुए डा. सिंह ने कहा कि यह इतिहास की विफलता है कि जब गृहमंत्री के रूप में भारतीय संघ के अन्य सभी राज्यों से निपटने के लिए पटेल को खुली छूट थी लेकिन जम्मू कश्मीर के मामले में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पटेल को वैसी आजादी नहीं दी क्योंकि नेहरू का मानना था कि वह कश्मीर को दूसरों से बेहतर जानते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि पटेल को जम्मू-कश्मीर से निपटने के लिए वैसी ही छूट दी गई होती तो आज भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास ही अलग होता और जम्मू-कश्मीर का वह हिस्सा जो वर्तमान में पाकिस्तान के अवैध कब्जे में शामिल है, भारत के साथ होता।
स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में नेशनल कांफ्रेंस और इसके संस्थापक नेता शेख अब्दुल्ला की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर डा. सिंह ने कहा कि कई अवसरवादी समायोजन किए गए हैं, जिसकी चरम सीमा 1975 में इंदिरा-शेख समझौते में नोटिस में आई। कश्मीर की वर्तमान स्थिति के लिए डा. सिंह ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों द्वारा की गई गलतियों और भ्रामक प्रयोगों की श्रृंखला का परिणाम बताया।