दूसरों को मौत के मुंह से निकाल कर जिंदगी देने वाला आखिरकार खुद मौत से हार गया। बीते दो दशकों में जेएलएन अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे न्यूरोसर्जन बीएस दत्ता के निधन की खबर सुन मन दुखी हो गया। मेरे लिए तो डाक्टर दत्ता का यूं चले जाना व्यक्तिगत क्षति है।
दत्ता ना मेरे दोस्त थे ना कोई परिचित, बस जेएलएन में रिपोर्टिंग के दौरान एक मुलाकात ने मुझे उनका मुरीद बना दिया। उसके बाद भी मिलते तो बस मरीजों, अस्पताल और सिस्टम पर ही चर्चा होती। इस तरह कई बसर गुजरते गए। मेरा अजमेर से जाना हुआ और राजस्थान पत्रिका में सेवाएं देने लगा। बीच में दत्ता साहब का भी जेएलएन से कुछ समय के लिए ट्रांसफर हुआ। लेकिन जब भी मेरा अजमेर आना होता तो मरीजों की लंबी कतार खत्म होने के बाद दत्ता साहब से मुलाकात होने पर ऐसा लगता माना रेगिस्तान में प्यास से सूख रहे कंठ को दो घूंट पानी मिल गया। स्नेह से उन्होंने मेरा नामकरण ‘प्यारे’ कर दिया।
दुनिया के लिए डाक्टर दत्ता भले ही एक सख्त मिजाजी रहे हो पर मैं इस बात का गवाह रहा हूं किे उनसे बडा दयावान, कोमल हद्यी, मनमौजी और संगीत का शौकीन कोई और हो ही नहीं सकता। अपने घर परिवार से कहीं अधिक अपने मरीजों की फिक्र करने वाले डाक्टर बिरले ही होते हैं। उन्हीं में से एक डाक्टर दत्ता भी रहे।
एक बार का वाक्या मुझे अच्छी तरह याद है। उनके पास नागौर के एक गरीब परिवार के कुछ लोग करीब 8-9 साल के एक बच्चे को दिखाने लाए थे। जांच के बाद पता चला की बच्चे को गंभीर प्रकृति का ब्रेन ट्यूमर है। वे इस बात के लिए आश्वस्त ना थे कि आपरेशन के बाद भी बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगा। उधर, डाक्टर दत्ता से मिल कर बच्चे के परिजन मान बैठे थे कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। आखिरकार डाक्टर दत्ता ने उस बच्चे का आपरेशन किया।
उसे बाद में वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। मेरा वार्ड में आना जाना बना रहता था। दत्ता साहब से मुलाकात की सहज जगह उनका वार्ड ही था जहां मिलना आसान होता था। डाक्टर दत्ता ने मुझे कहा कि ‘प्यारे’ यह बच्चा कुछ खा नहीं रहा है, तू कोशिश करके आ। यह इत्तफाक ही था कि मैं उस बच्चे के बैड पर पहुंचा और बिस्किट का पैकेट खोल कर उसकी तरफ बढाया। उसे दो पीस खिलाए। कोई हफ्ते भर बाद मेरा वार्ड में फिर जाना हुआ तो पता चला कि बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
उस बच्चे की तबीयत जानने के लिए बात ही बात में डाक्टर साहब से पूछ लिया। इतने में डाक्टर दत्ता बहुत गंभीर हो गए। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा कि मैने आपरेशन कर दिया दिया है पर ट्यूमर उस बच्चे की जान लेकर ही मानेगा। हो सकता है कि साल छह माह की जिंदगी और बढ जाए। बात वहीं खतम हो गई।
जेएलएन के नैत्र विभाग परिसर में ही एक कमरे में डाक्टर दत्ता का आउटडोर होता था। सुबह से ही लंबी कतार लग जाती थी, सारे मरीजों को देखने के बाद ही वे अस्पताल निकलते थे। अनायास मेरा उनसे मिलना हो गया। कमरे के पीछे खिडकी से अस्पताल का गेट साफ नजर आता था। मैने देखा कि छह माह पहले जिस बच्चे को आपरेशन कर डाक्टर दत्ता ने अस्पताल से छुट्टी दी दी थी वह स्वस्थ और उछलता कूदता आ रहा है।
मैने दत्ता साहब को कहा कि वही बच्चा आ रहा है, उन्हें सहसा विश्वास नहीं हुआ। कमरे से बाहर निकले और दौड पडे। बच्चे को गले लगा लिया। दत्ता साहब बोल उठे यह भगवान का चमत्कार है। अस्पताल का समय तब तक समाप्त हो चुका था। ऐसे में बच्चे को एक्सरे के निजी सेंटर पर लेकर गए तथा अपने खर्च पर करीब चार पांच एक्सरे निकाली। वहीं बच्चे का पूरा चैकअप किया और बोले कि मौत भी मात खा गई।
कैंसर और लीवर संबंधी बीमारी से जूझते हुए दूसरों को जिंदगी देने वाले डाक्टर दत्ता साहब खुद जिंदगी की जंग हार गए। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे, परिजनों को यह असीम दुख सहने की शक्ति प्रदान करे। सबगुरु न्यूज परिवार की तरफ से सादर श्रद्धांजलि।
विजय सिंह मौर्य
संपादक
सबगुरु न्यूज, जयपुर
9887907277