सर्वोच्च न्यायालय ने रामजन्मभूमि के संदर्भ में ऐतिहासिक निर्णय देकर वह भूमि ‘रामलला विराजमान’ को प्रदान की। इस निर्णय से श्रीरामजन्मभूमि का वनवास समाप्त होकर रामजन्मभूमि को न्याय मिला। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय स्वागता योग्य है। कितने दशक रामभक्त हिन्दू जिसके लिए संघर्ष कर रहे थे, वह भूमि अंत में मुक्त हुई।
स्कंदपुराण में रामजन्मभूमि स्थान का महात्म्य कथन करते हुए रामजन्मस्थान का दर्शन मोक्षदायी कहा गया है परंतु इस भूमि का दर्शन लेने के लिए अब तक अनेक निर्बंध पार करने पडते थे। न्यायालय के निर्णय से वे दूर होंगे। अब यथाशीघ्र भव्य राममंदिर निर्माण का कार्य पूर्णत्व की ओर जाए और धूप-वर्षा झेल रही तंबू में रखी श्रीराममूर्ति विधिवत और वैभव से मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठापित हो।
इस निर्णय का श्रेय मंदिर के लिए अखंड लडने वाले पूर्वज, बलिदान करने वाले साधू-संत, कारसेवक और न्यायालय में मंदिर का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता, राममंदिर बनने के लिए मन:पूर्वक प्रार्थना करने वाले और सदिच्छा देने वाले सर्वसाधारण श्रद्धालुओं का भी है। वास्तविक प्रभू श्रीराम केवल भारत के आराध्यदेवता नहीं हैं, तो अन्य देशों के लिए भी पूजनीय हैं।
इंडोनेशिया, मलेशिया, थायलेंड जैसे मुसलमानबहुल देशों में श्रीरामजी को आदरयुक्त स्थान है। इंडोनेशिया की मुद्रा पर श्रीराम का चित्र छापा जाता है। वहां सरकार की ओर से एक माह श्रीरामलीला का कार्यक्रम किया जाता है। बौद्ध धर्मीय थायलें का प्रत्येक राजा स्वयं को श्रीराम का वंशज मानता है और अपने नाम के आगे ‘रामा’ लगाता है।
एक ओर ऐसा है तो दूसरी ओर प्रभू श्रीरामचंद्र जिस मिट्टी में जन्में हैं उस भारत में ही श्रीरामजी को ‘काल्पनिक पात्र’ कहकर संबोधित किया गया। सेतुसमुद्रम प्रकल्प के नामपर रामसेतू तोडने का प्रयास किया गया। इन सब के पीछे किसका हाथ’ था, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
इस संपूर्ण पार्श्वभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय ने एकमत से दिए निर्णय का विशेष महत्त्व है। इस निर्णय के कारण हिन्दुत्वनिष्ठों ने राममंदिर के निर्माण के लिए चलाए गए भारतव्यापी विशाल आंदोलन को सुवर्णविराम मिला है।
रावण के वैचारिक वंशज
इस महत्त्वपूर्ण निर्णय की पार्श्वभूमि पर देश में कडक पुलिस बंदोबस्त रखा गया था। किसी भी प्रकार का कलंक न लगे इसलिए सभी ओर ध्यान रखा गया था। निर्णय देने वाले न्यायाधिशों की सुरक्षा भी बढाई गई थी। ऐसा करने का समय आना भी दुर्भाग्य ही है। वातावरण बिगाडने वाले समाजकंटक आज भी बडे प्रमाण में हैं, यही इससे ज्ञात होता है।
निर्णय के पश्चात एमआयएम के असदुद्दीन ओवैसी ने खेद व्यक्त करते हुए तथ्यों की अपेक्षा भावनाओं की विजय हुई, इस प्रकार की प्रतिक्रिया दी। यह प्रतिक्रिया एक प्रकार से न्यायालय का अनादर ही है। रावण के वैचारिक वंशज आज भी शेष होने की यही पुष्टि है। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में मुख्य स्थान पर 5 एकड भूमि देने का न्यायालय का निर्णय प्रथमदर्शनी अनाकलनीय लगा, परंतु राममंदिर निर्मिति का मार्ग प्रशस्त होने से हिन्दुओं को हुआ आनंद अनेक गुना महत्त्वपूर्ण है।
अब लक्ष्य रामराज्य का
जिस पद्धति से विदेशी आक्रमकों के चंगुल से रामजन्मभूमि मुक्त हुई, उसी प्रकार कृष्णजन्मभूमि और काशी विश्वनाथ का स्थान भी मुक्त हो, ऐसी हिन्दूमन की अपेक्षा है। मंदिरों की निर्मिति केवल वास्तू नहीं, तो विश्व को हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक विरासत सिखाने वाला चैतन्यकेंद्र अथवा शक्तिकेंद्र के रूप में हो। राममंदिर के साथ ही रामराज्य जैसी व्यवस्था प्रस्थापित होना भी महत्त्वपूर्ण है। उस दिशा में सभी के द्वारा प्रयास करना, यह भी एकप्रकार की ईश्वर की आराधना ही है। राममंदिर के पूर्णत्व से आरंभ होने वाली यह प्रक्रिया रामराज्य की निर्मिति से सुफल-संपूर्ण हो, ऐसी प्रभू श्रीरामजी के चरणों में प्रार्थना।!
चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था