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निर्भया के गुनाहगारों की फांसी पर आधी रात को सुप्रीम कोर्ट की अंतिम मोहर - Sabguru News
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निर्भया के गुनाहगारों की फांसी पर आधी रात को सुप्रीम कोर्ट की अंतिम मोहर

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निर्भया के गुनाहगारों की फांसी पर आधी रात को सुप्रीम कोर्ट की अंतिम मोहर

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने आधी रात को हुई सुनवाई में निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्याकांड के गुनाहगारों की फांसी पर अपनी अंतिम मोहर लगा दी।

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने मध्य रात्रि के बाद न्याय के सर्वोच्च मंदिर का दरवाजा खोलकर करीब एक घंटे तक गुनाहगार पवन गुप्ता की याचिका पर सुनवाई की।

न्यायालय ने पवन की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि दया याचिका पर राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत ही सीमित है और मृत्युदंड पर रोक को लेकर कोई नया तथ्य याचिका में मौजूद भी नहीं है।

न्यायमूर्ति भानुमति ने खंडपीठ की ओर से फैसला लिखवाते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के निर्णय को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ता ने कोई ठोस कानूनी आधार नहीं पेश किया है। याचिकाकर्ता ने दोषी पवन के नाबालिग होने संबंधी उन तथ्यों को रखा, जिन्हें पूर्व में ही अदालत सुनवाई करके नकार चुकी है। इसलिए उक्त याचिका खारिज की जाती है।

करीब दस मिनट की देरी से सुनवाई जैसे ही शुरू हुई, पवन के वकील एपी सिंह ने अपनी दलीलें रखते हुए दोषी की उम्र का मुद्दा फिर उठाया। उन्होंने स्कूल में दाखिले संबंधी प्रमाणपत्र का ज़िक्र किया। उन्होंने पवन गुप्ता के नाबालिग होने के दावे संबंधी अर्जी का उल्लेख करते हुए कहा कि 2017 में वसंत विहार पुलिस स्टेशन के एसएचओ को दोषी का हलफनामा सत्यापित करने को कहा था। इस केस को मीडिया ने खूब प्रचारित किया हुआ था। उसकी वजह से पुलिस ने सही से उम्र संबंधी दस्तावेजों की जांच ही नहीं की।

उनकी इन दलीलों पर न्यायमूर्ति भूषण ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि आप बार-बार वही दलील दे रहे हैं जो हर चरण में आपने दी है और कोर्ट ने हर चरण में उसे खारिज किया है। राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी ख़ारिज हो चुकी हैं। आखिर इस याचिका में नया क्या तथ्य है, जिसे लेकर आप यहां आये हैं?

सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिंह की दलीलों को इस चरण में उठाने को लेकर आपत्ति दर्ज करायी। न्यायमूर्ति भूषण ने सिंह से कहा कि आप पवन के नाबालिग होने का जो मुद्दा उठा रहे हैं, वे दस्तावेज आपने सुप्रीम कोर्ट की विशेष अनुमति याचिका में भी पेश किये थे । क्या आप उसी आधार पर आज राहत मांग रहे हैं। आप हमें हमारे फैसले पर फिर से विचार करने को कह रहे हैं?

इस पर पवन के वकील ने कहा कि यह न्यायहित में जरूरी है। इसके बाद न्यायमूर्ति भूषण एक बार फिर कहा कि न्याय हित का यह अर्थ कतई नहीं है कि आप जो चाहते हैं वह आपको मिल जाये। यह कोई राष्ट्रपति के निर्णय को चुनोती देने का आधार नहीं है।

सिंह ने विभिन्न फोरम पर याचिकाकर्ता की विभिन्न याचिकाओं के लंबित होने का मुद्दा उठाया और कहा कि जब तक इन याचिकाओं का निपटारा नहीं हो जाता तब तक फांसी रोक दी जाये। इस पर न्यायमूर्ति भानुमति ने मौखिक टिप्पणी की कि न्यायालय इस याचिका पर विचार के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इसमें कोई नया तथ्य मौजूद नहीं है।

बेंच की अध्यक्षता कर रहीं न्यायमूर्ति भानुमति ने कहा कि जब हमने पूर्व में आपकी याचिकाएं सुनी थी तब भी आपने पवन के नाबालिग होने का मुद्दा उठाया था। उस समय भी आपने पवन के उसी स्कूल सर्टिफिकेट पर भरोसा जताते हुए अपनी दलीलें दी थी। माना कि नाबालिग होने का दावा किसी भी समय किया जा सकता है। पर इसका यह मतलब नहीं कि आप इसे बार बार कोर्ट के सामने रखें।

याचिकाकर्ता के वकील ने एक बार फिर जोर देकर कहा कि दोषी की याचिकाएं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432/433 के तहत उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के यहां लंबित है। इसलिए कोर्ट से आग्रह है कि इन याचिकाओं का निपटारा होने तक फाँसी को टाला जाए।

इसके बाद खंडपीठ ने आदेश लिखवाना शुरू किया तो सिंह का साथ देने आए एक वकील शम्स ख्वाजा ने अपनी बात रखने का अनुरोध किया। न्यायालय ने उन्हें पांच मिनट में अपनी बात रखने को कहा। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमादान देने का अधिकार है, लेकिन राष्ट्रपति ने निष्पक्षता से निर्णय नहीं लिया। इस पर न्यायमूर्ति भानुमति ने कहा कि दया याचिका पर राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत ही सीमित है।

न्यायालय ने फिर से आदेश लिखाना शुरू किया, तब सॉलिसिटर जनरल ने पूछा कि क्या उन्हें सरकार का पक्ष रखना है? इस पर जस्टिस भानुमति ने कहा: इसकी जरूरत नहीं है। वह सॉलिसिटर जनरल की उपस्थिति को रिकॉर्ड में लाकर आदेश लिखवा रही हैं। उसके बाद न्यायालय ने याचिका खारिज करने का आदेश दिया।

इससे पहले न्यायपालिका के इतिहास में एक और तारीख आज उस वक्त दर्ज हो गयी, जब देश की शीर्ष अदालत किसी मामले की त्वरित सुनवाई के लिए रात को अपना दरवाजा खोलने को तैयार हुई। दिल्ली उच्च न्यायालय में मध्य रात्रि को हाईवोल्टेज ड्रामे के बीच याचिका खारिज किए जाने के बाद सिंह ने शीर्ष अदालत का रुख करने का निर्णय लिया।

याचिकाकर्ता की ओर से एपी सिंह ने उच्च न्यायालय से याचिका खारिज किये जाने के बाद मेंशनिंग रजिस्ट्रार जगत सिंह रावत के किदवई नगर स्थित सरकारी आवास पर मामले का विशेष उल्लेख किया और याचिका की त्वरित सुनवाई की मांग की। श्री सिंह ने कहा कि ये उनके मुवक्किल के जीवन का सवाल है।

रजिस्ट्रार ने उनसे कहा कि इतनी रात में ही सुनवाई के लिए मेंशनिंग क्यों कर रहे हैं। आपने याचिका तो शाम साढ़े 7 बजे के करीब दायर कर दी थी। उन्होंने इसके जवाब में कहा कि पहले निचली अदालत में अर्जी पर सुनवाई हुई। उसे हाईकोर्ट में चुनोती दी थी। उस पर हाईकोर्ट ने रात 12 बजे आर्डर किया। हाईकोर्ट के आर्डर की कॉपी प्राप्त होने के बाद सीधे आपके पास आया हूं।

उन्होंने कहा कि अगर इसे अभी नहीं सुना गया तो याचिका व्यर्थ हो जाएगी। दोषी पवन की याचिका पर अभी सुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद मेंशनिंग ऑफिसर ने मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे से निर्देश लेकर सुनवाई के लिए ढाई बजे का समय निर्धारित किया।