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Nirmala Sitharaman and Rahul Gandhi on Rafale issue in lok sabha-राफेल पर निर्मला सीतारमण और राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझाेंक - Sabguru News
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राफेल पर निर्मला सीतारमण और राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझाेंक

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राफेल पर निर्मला सीतारमण और राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझाेंक

Nirmala Sitharaman on Rafale issue in lok sabha

नई दिल्ली। लोकसभा में राफेल मुद्दे पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझोंक हुई तथा दोनों ने एक दूसरे पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया और इस मुद्दे पर अपने अपने तर्कों को सही ठहराया।

सीतारामण ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने राफेल सौदे के बहाने न केवल उन्हें बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया है और देश के प्रधानमंत्री को अपमानित करने का काम किया है तथा इस पर माफी मांगने की बजाय संसद और देश को भ्रमित किया जा रहा है।

गांधी ने पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इस सौदे में सीधे तौर पर शामिल हैं और वह इससे जुड़े सवालों का जवाब न देकर इस मुद्दे पर देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह सीतारमण पर आरोप नहीं लगा रहे हैं और ना ही पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इस मामले में प्रधानमंत्री ही सीधे तौर पर आरोपी है।

सदन में सुबह से चल रही बहस के दौरान सीतारमण और गांधी के बीच नोकझोंक की स्थिति कई बार पैदा हुई। सीतारमण ने जब फ्रांस के राष्ट्रपति से गांधी की मुलाकात के संदर्भ में कांग्रेस अध्यक्ष का नाम लेकर उनके बयान का जिक्र किया तो इस पर गांधी भड़क गए और अपनी सीट पर खड़े होकर तेज स्वर में बोलने लग गए। कांग्रेस के सभी सदस्य उनके समर्थन में खड़े होकर सीतामरण पर आक्रामक स्वर में हमला करने लगे।

रक्षा मंत्री ने बेंगलूर में एचएएल के कर्मचारियों के साथ गांधी की मुलाकात का भी जिक्र किया तो गांधी सहित कांग्रेस के अन्य सदस्य इस पर भी भड़क गए। एचएएल को लेकर रक्षा मंत्री ने कांग्रेस नेताओं पर ‘मगरमच्छ के आंसू’ बहाने का आरोप लगाया और कहा कि मोदी सरकार एचएएल को मजबूत बना रही है और तेजस जैसे विमानों के निर्माण के लिए उसे एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का काम दे रही है लेकिन कांग्रेस के समय इस तरह के कोई प्रयास नहीं किया गया था।

सीतारमण के इस बयान से भी कांग्रेस के सदस्य उत्तेजित हो गए। इस पर सीतारमण का कहना था कि कांग्रेस एचएएल की इतनी ही हिमायत कर रही है तो उसने अगस्ता हेलीकाप्टर का सौदा उसे क्यों नहीं दिया।

रक्षा मंत्री ने राफेल विमानों की खरीद के लिए किसी प्रक्रिया को नहीं अपनाने और प्रधानमंत्री पर विचार-विमर्श किए बिना सौदा तय करने के आरोप का जवाब देते हुए कहा कि इन विमानों की खरीद को अंतिम रूप देने से पहले इस मुद्दे पर 74 बैठकें हुई हैं और 2015 तथा 2016 के दौरान इस खरीद से जुड़ी प्रक्रिया पर लगातार बैठकों का दौर चलता रहा है।

उन्होंने खरीद में जल्दबाजी के कांग्रेस के आरोपों काे खारिज किया और कहा कि वह हर मुद्दे पर सिर्फ राजनीति करती है और देश की सुरक्षा से उसे लेना देना नहीं है। विमानों की कीमतों को लेकर कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि उसके नेता संप्रग के समय विमानों की कीमत का प्रस्ताव 520 करोड़ रुपए होने का दावा कर रहे हैं लेकिन इसका उल्लेख किसी दस्तावेज में नहीं किया गया है। भगवान जाने कांग्रेस नेताओं को यह आंकड़ा कहां से मिला है।

कांग्रेस नेतृत्व पर राफेल विमान की कीमतों को लेकर ठीक तरह से गृह कार्य नहीं करने का आरोप लगाते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेता भ्रमित हैं। कांग्रेस नेता जितनी बार यह मुद्दा उठा रहे हैं उतनी बार उनकी कीमत बदल रही है।

उन्होंने कहा कि 29 जनवरी को जन आक्राेश रैली में इस विमान की कीमत 700 करोड़ रुपए बताई गई। फिर 28 जुलाई को इनकी कीमत 520 करोड़ रुपए बताई गई। छत्तीसगढ के रायपुर में एक चुनावी रैली के दौरान इन विमानों की कीमत 540 करोड़ रुपए बताई गई और फिर हैदराबाद में इनकी कीमत कुछ और बताई गई।

उन्होंने राफेल सौदे को देश के हित में लिया गया मोदी सरकार का अहम फैसला बताया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। मोदी सरकार का यह फैसला पड़ोसी देशों की सामरिक गतिविधियों को देखते हुए आवश्यक था।

रक्षा मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार का इस सौदे को लेकर किया गया काम पूर्ववर्ती सरकार के इस सौदे से जुड़े प्रस्ताव की तुलना में ज्यादा अच्छा और पारदर्शी है। कांग्रेस निजी कंपनी को काम देने को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है लेकिन इसको लेकर किए गए अंतर सरकारी समझौते में किसी कंपनी का जिक्र नहीं किया गया है। कांग्रेस के पास इस मुद्दे पर गुमराह करने के आलवा कुछ नहीं है।

सीतारमण ने कहा कि 2001 में सैद्धांतिकरूप से राफेल विमान खरीदने को स्वीकृति मिल गई थी और 2006 में इससे जुड़े सेवा गुणवत्ता के मापदंड जारी किए गए थे। उन्होंने सवाल किया कि खुद को देशभक्त कहने वाली कांग्रेस की सरकार ने 2014 तक इस मुद्दे पर कदम क्यों नहीं बढाया और यह सौदा प्रस्ताव से आगे क्यों नहीं पहुंचा। इससे जाहिर है कि कांग्रेस इन विमानों की खरीद की इच्छुक ही नहीं थी और वह संसद तथा देश की जनता को गुमराह करने का काम करती रही है।

उन्होंने इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले को भी उद्धृत किया और कहा कि निर्णय में कहा है कि यह फैसला व्यक्तियों की अवधारणा पर आधारित नहीं है और इसमें सरकार की भूमिका की परिक्लपना नहीं की गई है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में उसे कहीं कुछ ऐसे तथ्य नहीं मिले जिसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने सौदे में किसी का पक्ष लिया है।