गांधीनगर। गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल की ‘नाराज़गी’ की अटकलें थमने का नाम नहीं ले रहीं।
एक बार फिर से सरकार के ‘मुखिया’ पद की रेस में रहने के बाद हाशिए पर रह गए पटेल जब 12 सितंबर की शाम नवनियुक्त मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के साथ राजभवन नहीं गए थे तो उनकी नाराज़गी की अटकलें तेज़ हो गई थीं। पर अगले दिन जब पटेल उनसे मिलने उनके घर पहुंचे तो मुरझाए चेहरे के बावजूद छह बार के पूर्व मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर ‘दरियादिली’ दिखाई।
जब वह यह बयान कर रहे थे कि वह नाराज़ नहीं हैं तो कभी उनकी आंखों से आंसू छलक जाते थे और कभी वह ख़ूब मज़ाक़िया बनकर उनके अकेले की ही ‘गाड़ी’ नहीं छूटने की बात कर रहे थे। 13 सितंबर को जब नए मुख्यमंत्री ने शपथ ली तो भाजपा की सांस इसी बात पर अटकी थी कि वह आएंगे या नहीं।
बहरहाल, जब ‘नीतिनभाई’ शपथ के दौरान राजभवन के मंच पर दृष्टिगोचर हुए तो सत्तारूढ़ भाजपा को बड़ी राहत मिली। पर बताया जा रहा है कि इस ‘रूष्ट’ नेता ने अब वरिष्ठ विपक्षी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी शंकरसिंह वाघेला से गुपचुप मुलाक़ात की है।
दोनों नेताओं में क्या चर्चा हुई यह तो स्पष्ट नहीं है पर स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार राज्य सरकार की ख़ुफ़िया शाखा ने इस मुलाक़ात की पुष्टि की है। इससे भाजपा के खेमे में अंदरखाने एक बार फिर खलबली है। अभी यह साफ़ नहीं है कि पटेल की ‘चिर बग़ावती’ वाघेला से मुलाक़ात उनकी भाजपा के वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं महामंत्री बीएल संतोष और केंद्रीय मंत्री सह गुजरात प्रभारी भूपेन्द्र यादव से कल मिलने से पहले हुई थी या बाद में।
भाजपा के सूत्रों ने आज बताया कि पार्टी की पटेल की गतिविधियों पर नज़र है। वर्ष 2017 में वित्त मंत्रालय नहीं दिए जाने के बाद तीन दिनों तक के उनके ज़बरदस्त बग़ावती तेवर ने आलाकमान को एक तरह से झुका दिया था। वह कोई मामूली नेता नहीं हैं, उनको एकदम हल्के में नहीं लिया जा सकता। वह पाटीदार समाज के एक क़द्दवार नेता हैं।
पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल के नाम की अचानक घोषणा से पहले जिन नामों को मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे माना जा रहा था उनमें एक राज्य के सबसे अनुभवी भाजपा नेता तथा आधा दर्जन से अधिक बार विधायक और मंत्री रह चुके नितिन पटेल का नाम प्रमुखता से शामिल था।
विधायक दल की बैठक से पहले उन्होंने पत्रकारों से कहा भी था कि मुख्यमंत्री एक बेहद अनुभवी विधायक को होना चाहिए। भूपेन्द्र पटेल के नाम की घोषणा के बाद ही उसी दिन शाम वह अपने गृह नगर महेसाणा रवाना हो गए। आम तौर पर मीडिया से ख़ूब बात करने वाले पटेल ने तब पत्रकारों से बात भी नहीं की।
इससे पहले वर्ष 2017 में जब उन्हें वित मंत्रालय का प्रभार नहीं दिया गया था तो उन्होंने लगभग खुले बग़ावती तेवर अपना लिए थे। पार्टी आलाकमान को उनके सामने झुकना पड़ा था। बताया जा रहा है कि उन्हें इस बार उत्तराखंड के राज्यपाल पद का प्रस्ताव दिया गया है।
राजनीति के माहिर नितिन पटेल सक्रिय राजनीति में बने रहना चाहते हैं। बताया जाता है कि उनके पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से भी अच्छे सम्बंध नहीं थे। रूपाणी जहां अमित शाह के पसंदीदा थे वही नितिन पटेल गुजरात की राजनीति में शाह का विरोधी खेमा मानी जाने वाली आनंदीबेन पटेल के नज़दीकी माने जाते हैं।
राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव के मद्देनज़र भाजपा पटेल की नाराज़गी की पूरी तरह अनदेखी नहीं कर सकती। ढाई दशक से अधिक समय से लगातार गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा पिछली बार के चुनाव में पाटीदार आरक्षण आंदोलन और विरोध के चलते जैसे तैसे ही सत्ता में आ पाई थी। अगले साल के चुनाव में यह किसी तरह का ख़तरा मोल नहीं लेना चाहेगी।