सबगुरु न्यूज-सिरोही। ना राम ही मिला ना विसाल-ए-वतन। आप कहेंगे कि ये क्या लाइन हुई भला। असल शेर तो ना खुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम है। लेकिन, हम सही हैं।
क्योंकि ये दर्द धर्म की नींव पर बने उस पाकिस्तान से हिंसा और अपनी रक्षा के लिए विस्थापित हुए हिंदुओं की है जो राम की धरती पर हिन्दुस्तान को अपना सनम मानकर आए थे। हमारे शब्द इनके दर्द को बयान नहीं कर सकते। इनके दर्द तो इनकी भरभराई आंखे और गिड़गिड़ाती जुबान ही बयां कर सकती हैं जो अंधे प्रशासन पर बेअसर साबित हो रही हैं।
इतना ही नहीं पाकिस्तान और हिन्दुओं के नाम पर अपना होलसेल कारोबार चलाने वाले बेशर्म भी 17 साल में इन्हें इस मुल्क का बाशिंदा नहीं बना पाए। यूं, जिला कलक्टर का कहना है कि ये शिविर नागरिकता आवेदन और आवेदन की कमियां दूर करने के लिये था। वो काम किया गया, लेकिन सवाल ये है कि न्युनतम शर्त पूर्ण करने के बाद भी ये लोग नागरिकता से वंचित क्यों हैं।
-ये है पूरा मामला
पाकिस्तान में आजादी और बंटवारे के समय कई हिन्दु परिवार वहीं रह गए थे। लेकिन, तब धार्मिक आधार पर हुई हिंसा धर्म के आधार पर बने उस मुल्क में अब भी बरकरार है। अपनी जान, बहु-बेटियों की अस्मत और बच्चों के भविष्य के लिए हिन्दुस्तान इस आशा में आ गए कि उनका वतन उन्हें अपना लेगा।
लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। पिछले सत्रह वर्षों से ये लोग यहां शरणार्थियों की जिंदगी बसर कर रहे हैं। बुधवार को जिला मुख्यालय पर इनको नागरिकता देने के लिए शिविर लगाने की घोषणा हुई थी। इसके लिए सिरोही जिले के मंडार में रहने वाले 15 परिवारों के करीब डेढ़ सौ लोग सभी दस्तावेजों और परिवार जनों के साथ सिरोही आ गए, लेकिन सिरोही में तो अधिकारी ही नदारद मिले।
शिविर के नाम पर यहां धेला नहीं दिखा। ना कलेक्टर दिखे, ना पुलिस अधीक्षक, ना एएसपी, ना एडीएम। जयपुर से गृह विभाग की ओर से भेजे गए प्रतिनिधि आए जरूर थे, लेकिन उन्हें जयपुर लौटने की इतनी जल्दी थी कि वे ट्रेन पकडऩे के लिए दोपहर को ही रवाना हो गए। ना पानी, ना टेंट और ना छाया।
-बिना नागरिकता के झेल रहे हैं ये दर्द
बिना नागरिकता के भारत में रहने वाले पाक विस्थापित नागरिकों का दर्द जानकर कोई भी सामान्य व्यक्ति दहल जाएगा। माना नागरिकता को लेकर संविधान की कुछ जरूरी मजबूरियां और शर्तें हैं, लेकिन ऐसी कौनसी शर्तें हैं कि वो अधिकारियों की नजर में पूरी ही नहीं हो पा रही हैं। 2001 में भारत आए इन लोगों को सात साल बाद यानि 2008 में ही नागरिकता मिल जानी चाहिए, लेकिन संवैधानिक समय के बीतने के 11 साल बाद भी जिले के अधिकारी इनके दर्द से पिघले नहीं।
बिना नागरिकता के ये यहां पर ना तो मकान खरीद सकते हैं, ना रोजगार पा सकते है, ना ही बेहतर शिक्षा लेने के बाद भी सरकारी नौकरी में जा सकते हैं। शादियां तो मुश्किल से हो जाती हैं, लेकिन शादी के बाद भी कहलाते पाकिस्तानी नागरिक ही हैं। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के जाहिल नफरत के सौदागरों ने नफरत को ऐसा बाजार बना दिया है कि पाकिस्तान जुड़ते ही इन्हें सीधे आतंकवादी करार दे दिया जाता है।
-जिला कलक्टर को सौंपा ज्ञापन
मंडार से बुधवार को सिरोही पहुंचे पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं ने जिला कलक्टर को ज्ञापन भी सौंपा। भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री विरेन्द्रसिंह चौहान के साथ ज्ञापन सौंपते हुए इन लोगों ने अपना जो दर्द बयान किया उससे पत्थर भी पिघल जाए।
बेटियों ने बताया कि किस तरह उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। बुजुर्गों ने बताया कि किस तरह उन्होंने अपनी जिंदगी बचाई और यहां आकर भी उस नारकीय जीवन से मुक्ति नहीं मिली। युवाओं ने बताया कि तरह उन्हें अपने भावी रोजगार के लिए कसमसाना पड़ रहा है। और बच्चे, वो तो मौन थे और टकटकाई आंखों से हाकिम के सामने अपने मां-बाप को गिड़गिड़ाते हुए देख रहे थे कि कब उन्हें हम पर दया आएगी और दिन फिरेंगे।