नई दिल्ली। न्यायमित्र अमरेंद्र शरण ने सोमवार को अपनी रपट में सुप्रीमकोर्ट से कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ी जांच में साजिश रचे जाने वाले पक्ष समेत ऐसा कुछ भी ‘मूलभूत सामग्री’ नहीं मिला, जिससे उनकी हत्या की दोबारा जांच शुरू की जाए।
शरण ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं मिला कि महात्मा गांधी की हत्या के संबंध में दोबारा जांच शुरू करने के लिए कुछ भी संदेह पैदा हो या इसके लिए एक नई तथ्यान्वेषी टीम गठित की जाए।
न्यायमित्र ने इस संबंध में दोबारा जांच की जरूरत से इंकार करते हुए कहा कि जो गोली महात्मा गांधी को लगी थी, जिस पिस्तौल से यह गोली चलाई गई थी, जिसने यह गोली चलाई थी, इसके पीछे की साजिश और जिस विचारधारा की वजह से यह साजिश रची गई थी, सबकुछ की अच्छे से पहचान हो चुकी है।
निचली अदालत के समक्ष इस संबंध में दाखिल सबूत का हवाला देते हुए शरण ने कहा कि महात्मा गांधी को तीन गोली लगी थी, जिसे एक ही रिवॉल्वर से दागी गई थी।
रपट के अनुसार समकालीन साहित्य में ऐसा कुछ भी दस्तावेजी प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि ‘फोर्स 136’ नामक किसी भी गुप्त सेवा का अस्तित्व था और जिसे महात्मा गांधी की हत्या की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसलिए, इस तरह की कहानी पर भरोसा करना निराधार है।
उल्लेखनीय है कि अभिनव भारत के पंकज कुमुदचंद्र फड़नीस ने महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। इसके बाद अदालत ने मामले में मदद के लिए छह अक्टूबर, 2017 को अमरेंद्र शरण को न्याय मित्र नियुक्त किया था।
अदालत ने भी छह अक्टूबर को कहा था कि प्रथमदृष्ट्या उन्हें भी इस मामले की जांच दोबारा शुरू करने के संबंध में कुछ नहीं मिला। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि महात्मा गांधी की हत्या में गोडसे के अलावा विदेशी खुफिया एजेंसी का भी हाथ था।
याचिकाकर्ता ने ‘फोर्स 136’ पर जोर देते हुए कहा था कि सोवियत संघ(यूएसएसआर) में भारत के राजदूत को फरवरी 1948 में सूचित किया गया था कि अंग्रेजों ने इस हत्या को अंजाम दिया है।
उनके इस दावे को खारिज करते हुए शरण ने कहा है कि दस्तावेजों की तहकीकात में गांधी की हत्या में गोडसे के शामिल होने के अलावा किसी अन्य से होने की बात के साक्ष्य नहीं मिलते। साथ ही किसी विदेशी एजेंसी का हाथ होने, दो लोगों के गोलीबारी करने और चार गोली दागे जाने के दावे बेबुनियाद हैं।