नई दिल्ली। नोबल पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने देश में बच्चों को उठाने के संदेह तथा गौ रक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या करने की हाल की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि देश में मानवाधिकार संस्कृति के फलने-फूलने की जरूरत है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रजत जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि मानवाधिकार केवल कुछ कानूनों को लागू करने तक सीमित नहीं हैं बल्कि हमें मानव मूल्यों को जीवन में आत्मसात करते हुए मानवाधिकारों की संस्कृति पैदा करनी होगी। इसके लिए एक दूसरे के प्रति सहनशील रहने तथा बहुलता का सम्मान करना होगा।
यह केवल सरकारों, न्यायपालिका और मानवाधिकार आयोग जैसी वैधानिक संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। कानूनों के बावजूद देश में बाल अधिकारों की चुनौती समाप्त नहीं हुई। बाल तस्करी और बाल श्रम की समस्या अभी भी मौजूद है।
नोबल पुरस्कार विजेता ने बच्चों को उठाने के संदेह तथा गौ रक्षा के नाम पर भीड द्वारा पीट पीट कर हत्या करने की घटनाएं चिंता का विषय है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह तथा ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी)के महानिदेशक डा अजय माथुर के साथ मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए और कहा कि इनमें उचित हस्तक्षेप किए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि जब कड़वी सच्चाई और असहमति की आवाज की जगह कम रहती है तो मानवाधिकार आयोग जैसे संस्थानों और राज्य आयोगों की जरूरत अधिक होती है। उन्होंने कहा कि आयोग अपनी स्थापना के समय से ही मानवाधिकारों के संरक्षण और उन्हें बढावा देने का काम कर रहा है।
सिंह ने कहा कि आतंकवाद से लड़ने में राजनीतिक आम सहमति न होने से देश की आतंकवाद से लड़ने की क्षमता प्रभावित हुई है। हमें सुरक्षा चिंताओं और मानवाधिकार से संबंधित मुद्दों पर संतुलन बनाना होगा।
यह देश के लिए निराशा की बात होगी यदि हम मानवाधिकारों की लड़ाई तो जीत जाते हैं लेकिन देश की एकता और अखंडता बनाए रखने में विफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि इससे सुरक्षा बलों का मनोबल भी कम होता है। डॉ माथुर ने कहा कि देश में स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को मानवाधिकार बनाए जाने की दिशा में सहमति बनाए जाने की जरूरत है।