Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
कोरोना महामारी में हम जल संकट को न भूलें : गजेन्द्र सिंह शेखावत - Sabguru News
होम Headlines कोरोना महामारी में हम जल संकट को न भूलें : गजेन्द्र सिंह शेखावत

कोरोना महामारी में हम जल संकट को न भूलें : गजेन्द्र सिंह शेखावत

0
कोरोना महामारी में हम जल संकट को न भूलें : गजेन्द्र सिंह शेखावत

जयपुर। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि कोरोना की वैश्विक महामारी के दौरान भी हमें जल संकट पर गंभीरता से काम करना होगा। सरकार अपना काम कर रही है, लेकिन समाज को भी इस दिशा में काम करने की आवश्कता है।

राजस्थान में पिछली भाजपा सरकार के समय मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना का जिक्र करते हुए शेखावत ने कहा कि इस योजना में अच्छा काम हुआ था। इसके माध्यम से भूजल के गिरते स्तर को राज्य में रोका जा सका। लेकिन, दुर्भाग्य है कि यह योजना राजनीति की शिकार हो गई। इस पर आगे काम नहीं हुआ।

भाजपा राजस्थान द्वारा आयोजित संवाद श्रृंखला के तहत जल और पर्यावरण-हमारे जीवन की वास्तविक शक्ति विषय पर संवाद कार्यक्रम में शेखावत ने कहा कि आज पर्यावरण और जल, दोनों हमारे लिए चुनौती बनकर उभरे हैं। वर्तमान में जिस चुनौती के दौर से हम गुजर रहे हैं, उसमें प्रकृति का एक छोटा सा वायरस हमारे अस्तित्व को हिलाने की ताकत रखता है।

देश में बढ़ते जल संकट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार निकट भविष्य में भारत समेत 17 देश दुनिया में पानी के संकट का सामना करने वाले हैं। आजादी के समय हमारी प्रति व्यक्ति पानी की जरूरत 5000 क्यूबिक मीटर थी, जो अब घटकर 1540 क्यूबिक मीटर पर आ गई है।

ऐसा माना जाता है कि यदि 1500 क्यूबिक मीटर पानी से नीचे यह आंकड़ा गया तो देश को पानी की किल्लत वाला मान लिया जाएगा। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारी आबादी जो आजादी के समय 30-32 करोड़ थी, वो बढ़कर 132 करोड़ हो गई।

भूजल का अत्यधिक दोहन

केंद्रीय जलशक्ति मंत्री ने भूजल के अत्यधिक दोहन पर चिंता जताते हुए कहा कि हम प्रतिवर्ष करीब 750 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल का उपयोग कर रहे हैं, जबकि बरसात से केवल 450 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमीन में रिचार्ज होता है। मतलब हम अपनी जमा पूंजी में से हर साल पानी ले रहे हैं। नतीजा है कि 22 प्रतिशत ब्लॉक ऐसे हैं, जहां भूजल संकट है।

45 दिन ही बरसात

शेखावत ने कहा कि क्लामेंट चेंज का जो खतरा सामने खड़ा है, सारा विश्व उससे घबरा रहा है। हमारा बरसात का समय घट गया है। 45 दिनों में ही 90 प्रतिशत पानी बरस जाता है। इसलिए हमें 45 दिन में बरसे पानी को बाकी बचे हुए 320 दिन के लिए बचाकर रखने की जरूरत है। हमारे यहां जल स्रोतों की संख्या घटी है। जिन तालाबों को हमने पहले भरा देखा था, उनमें से कई लुप्त हो गए हैं। इसलिए हमें अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की जरूरत है।

2024 तक हर घर नल से पहुंचेगा जल

शेखावत ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी देश में 18 प्रतिशत ग्रामीण आवासों तक पीने का पानी नल के माध्यम से पहुंचता है। अब 2024 तक शेष आवासों तक नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। कोरोना के कारण कुछ व्यावधान जरूर आया है, लेकिन लॉकडाउन खत्म होते ही हम इस कार्य को कैसे गति दे सकते हैं, उस दिशा में काम करना हमने प्रारंभ कर दिया है।

खुद बदलें गांव की तस्वीर

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारे गांवों में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं, जहां ग्रामीणों ने, व्यक्ति विशेष ने, संस्था ने, समाज ने और सरकार ने पानी को लेकर क्षेत्र की सूरत बदल दी। राजसमंद का गांव पिपलांतरी और दौसा के गांव लापोरिया में जल संचयन को लेकर बेहतरीन काम हुआ है। लापोरिया में लक्ष्मण सिंह नाम व्यक्ति ने 40 साल में यहां और आसपास के गांवों की कायाकल्प बदल दी।

उन्होंने कहा कि सरकार करे न करे, लेकिन हमारी जिम्मेदारी है कि हम ज्यादा से ज्यादा जल का संचय कैसे करें। जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर आदि का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे यहां टांके का सिस्टम था, बरसात के प्रत्येक बूंद के पानी को सहजकर हम रखते थे, आज भी रखते हैं, उसे पूर्व वर्ष काम में लेते हैं, पूरे रेगिस्तान में ऐसी व्यवस्था थी।

गांव कमा रहे लाखों रुपए

शेखावत ने कहा कि एक बूंद पानी बचाना एक बूंद पानी बनाने के बराबर है। हमें इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है। 3-4 हजार आबादी के गांव से प्रतिदिन ढाई लाख लीटर पानी रोज निकलता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां गांव समिति ने इस पानी का शुद्धीकरण करके बागवानी में इस्तेमाल किया है, इससे गांव की वार्षिक आय 6-10 लाख बढ़ी है।

कम पानी की खेती जरूरी

शेखावत ने कहा कि देश में कुल उपयोग का पांच प्रतिशत पानी का ही घरेलू इस्तेमाल होता है। छह प्रतिशत पानी उद्योगों में इस्तेमाल होता है। शेष 89 प्रतिशत पानी खेती में उपयोग होता है। हम 2 करोड़ टन चावल सरप्लस उगाते हैं। हमारा पानी दुनिया में सबसे कम उत्पादक माना गया है। हमारे यहां एक किलो चावल 5600 लीटर पानी में उगता है, जबकि चीन समेत दूसरे कई देश 350 लीटर पानी में यही काम कर लेते हैं। यदि हम ऐसी फसलों का उपयोग करें जो कम पानी में हो जाएं या हम ऐसी विधि का उपयोग करें, जिसमें कम पानी में फसल हो जाए।

यह भी पढें
राजस्थान में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2364 पहुंची, एक मौत
अजमेर : रमजान में भी करनी होगी लॉकडाउन निर्देशों की पालना
जोधपुर : थानाधिकारी की गोली से पुलिस कमांडो की मौत